अनुभव का उपहार


समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर,
मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर।


मुँह पर ढकना दीजिए, वक्ता होए शांत,
मन के मुँह को ढाँकना, कारज कठिन नितांत।


दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।


भाँति-भाँति के सर्प हैं, मन जाता है काँप,
सबसे जहरीला मगर, आस्तीन का साँप।


हो अतीत चाहे विकट, दुखदायी संजाल,
पर उसकी यादें बहुत, होतीं मधुर रसाल।


विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।


प्राकृत चीजों का सदा, कर सम्मान सुमीत,
ईश्वर पूजा की यही, सबसे उत्तम रीत।

                       
                                                                             -महेन्द्र वर्मा





13 comments:

Bharat Bhushan said...
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Bharat Bhushan said...

सरल, सरस और शाश्वत सत्य----

प्राकृत चीजों का सदा, कर सम्मान सुमीत,
ईश्वर पूजा की यही, सबसे उत्तम रीत।

वाह! क्या बात है महेंद्र जी.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

वाह ...सहज और अर्थपूर्ण बातें लिए पंक्तियाँ

रश्मि प्रभा... said...

भाँति-भाँति के सर्प हैं, मन जाता है काँप,
सबसे जहरीला मगर, आस्तीन का साँप। ... बड़ी सच्ची बात

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

हर बार की तरह प्रेरक दोहे.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... लाजवाब शिक्षाप्रद दोहे ...
गहरी बात कहता हुआ हर दोहा ...

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे....

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय महेन्दर जी
आपके दोहे जब भी पढ़े हमेशा ही कुछ नया सिखने को मिला .....शिक्षाप्रद दोहे पढ़वाने के लिए आभार आपका

kavita verma said...

badhiya ...

Satish Rawat said...

bahut sundar dohe hain sir.

pushpendra dwivedi said...

waah bahut khoob behtareen rachna

Prabhakar said...

sunder vichar.

Amrita Tanmay said...

दर्पण समान ।