संत ललित किशोरी


(हमारे देश में ऐसा भी समय था जब लोग लाखों-करोड़ों की पैतृक संपत्ति को त्याग कर सन्यासी बन जाया करते थे और आज का समय है जब लोग तथाकथित सन्यासी बन कर करोड़ों-अरबों की संपत्ति एकत्रित करने में लगे रहते हैं।)



संत ललित किशोरी का जन्म समय अज्ञात है किंतु ये भारतेंदु हरिश्चंद्र के समकालीन थे। लखनउ के प्रसिद्ध जौहरी शाह गोविंद दास के दो पुत्र हुए, शाह कुंदनलाल और शाह फुंदनलाल।  संवत 1913 विक्रमी में दोनों भाई लखनउ छोड़कर वृंदावन चले आए और भगवद्भक्ति में लीन हो गए। शाह कुंदन लाल ललित किशोरी के नाम से और शाह फुंदन लाल ललित माधुरी के नाम से भक्तिपदों की रचना करने लगे। इन्होंने लगभग दस हजार पदों की रचना की। ललित किशोरी जी का देहावसान कार्तिक शुक्ल 2, संवत 1930 विक्रमी को हुआ।

प्रस्तुत है, ललित किशोरी जी का एक पद-

दुनिया के परपंचों में हम, मजा कछू नहिं पाया जी,
भाई बंधु पिता माता पति, सब सों चित अकुलाया जी।
छोड़ छाड़ घर गांव नांव कुल, यही पंथ मन भाया जी,
ललित किशोरी आनंदघन सों, अब हठि नेह लगाया जी।


क्या करना है संतति संपति, मिथ्या सब जग माया है,
शाल दुशाले हीरा मोती, में मन क्यों भरमाया है।
माता पिता पती बंधू सब, गोरखधंध बनाया है,
ललित किशोरी आनंदघन हरि, हिरदे कमल बसाया है।


बन बन फिरना बिहतर हमको, रतन भवन नहिं भावे है,
लता तरे पड़ रहने में सुख, नाहिन सेज सुहावे है।
सोना कर धरि सीस भला अति, तकिया ख्याल न आवे है,
ललित किशोरी नाम हरी का, जपि जपि मन सचि पावे है।


तजि दीनो जब दुनिया दौलत, फिर कोइ के घर जाना क्या,
कंद मूल फल पाय रहें अब, खट्टा मीठा खाना क्या।
छिन में साही बकसैं हमको, मोती माल खजाना क्या,
ललित किशोरी रूप हमारा, जानैं ना तहं जाना क्या।


अष्टसिद्धि नवनिद्धि हमारी, मुट्ठी में हरदम रहती,
नहीं जवाहिर सोना चांदी, त्रिभुवन की संपति चहती।
भावे न दुनिया की बातें, दिलबर की चरचा सहती,
ललित किशोरी पार लगावे, माया की सरिता बहती।

31 comments:

Sushil Bakliwal said...

संत ललित किशोरी के जीवन परिचय के साथ उनकी आनंदमय कृति का पाठ करवाने हुतु आभार सहित...

Rakesh Kumar said...

भावे न दुनिया की बातें, दिलबर की चरचा सहती,
ललित किशोरी पार लगावे, माया की सरिता बहती।

आपकी शानदार भक्तिपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
ललित किशोरी जी के बारे में जानकर बहुत सुखद अनुभव हुआ.

संगीता पुरी said...

संत ललित किशोरी के जीवन परिचय के साथ उनकी आनंदमय कृति का पाठ करवाने हुतु आभार !!

ZEAL said...

महेंद्र जी , बहुत सुन्दर परिचय कराया आपने ललित किशोरी जी का। उनकी रचना में एक वैराग्य है। शायद इस दौर से कुछ लोग गुज़रते हैं। कुछ माया मोह में फंसे रह जाते हैं।

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

ललित किशोरी जी के विषय में जानना सुखद रहा,
सार्थक एवं प्रभावी प्रस्तुति के लिए सादर आभार...

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

संत ललित किशोरी जी के बारे में बताने के लिए धन्यवाद!

संतोष त्रिवेदी said...

हम जैसे अज्ञानियों को भूले-बिसरे रत्नों की याद दिलाने का शुक्रिया !

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई महेंद्र जी आप द्वारा संतों भारतीय मनीषियों के बारे में संत परम्परा के कवियों के बारे में अद्भुत जानकारी दी जा रही है बधाई और शुभकामनाएं |

Rahul Singh said...

विचारणीय और प्रेरक.

उपेन्द्र नाथ said...

संत ललित किशोरी जी जैसे महान व त्यागी व्यक्तित्व का मिलना आज के समय मेँ कठिन है। एक सार्थक सन्देश देती हुई सुन्दर प्रस्तुति....

Dinesh pareek said...

अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

महेंद्र जी, आपने कोष्ठक के मध्य जो लिखा वही अगर समझ जाएँ लोंग तो कई समस्याओं की जद से समाप्ति हो जाए.. इन संत कवियों का परिचय सुनकर यही लगा कि पत्थर था वो सब जो वह छोड़ आये, असली संपत्ति तो वह है जो उन्होंने जगत के लिए छोड़ी.. आपकी यह श्रृंखला अद्भुत है!!

Amit Chandra said...

इनकी जानकारी और अमुल्य पदों को पढ़वाने के लिए धन्यवाद।

मनोज कुमार said...

संत ललित किशोरी जी का प्रेरक जीवन परिचय और उतनी ही प्रेरक रचना बहुत अच्छी और सार्थक लगी।

Patali-The-Village said...

संत ललित किशोरी जी के बारे में बताने के लिए धन्यवाद!

रचना दीक्षित said...

संत ललित किशोरी जी का जीवन परिचय और रचना दोनों बहुत अच्छी लगी. एक सार्थक सन्देश देती हुई सुन्दर प्रस्तुति. बधाई.

राज भाटिय़ा said...

एक कवि बम्बे से कई साल पहले हमारे यहां आये थे शेखर सुमन उन के मुख से हम ने पहली बार ललित किशोरी जी का नाम ओर उन की एक रचना सुनी थी, ओर आप ने ललित किशोरी जी का पुरा परिचाय दिया, बहुत अच्छा लगा धन्यवाद

संजय @ मो सम कौन... said...

प्रेरक व्यक्तित्व से परिचय कराने के लिये आभार। हमारे देश में ऐसे बहुत से संत मनीषी हुये हैं, आवश्यकता है हम उनके बारे में जाने और उनके उपदेशों पर चलें।

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
नमस्कार !
किशोरी जी जैसे महान व त्यागी व्यक्तित्व का मिलना आज के समय मेँ कठिन है। एक सार्थक सन्देश देती हुई सुन्दर प्रस्तुति....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

संत ललित किशोरी जी की सुंदर रचना और परिचय के लिए आभार ........

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

इस सुन्दर रचना के साथ संत ललित किशोरी जी के परिचय के लिए धन्यवाद !

Kailash Sharma said...

अष्टसिद्धि नवनिद्धि हमारी, मुट्ठी में हरदम रहती,
नहीं जवाहिर सोना चांदी, त्रिभुवन की संपति चहती।
भावे न दुनिया की बातें, दिलबर की चरचा सहती,
ललित किशोरी पार लगावे, माया की सरिता बहती।

...संत ललित किशोरी जी और उनकी सुन्दर रचना से परिचय कराने के लिये धन्यवाद..

ashish said...

आप चुन चुन कर मोती निकालते है . आभार ऐसे मोतियों से परिचय कराने का .

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

ललित किशोरी जी को साष्टांग प्रणाम और आप को अनेक साधुवाद इस सत्कर्म के लिए

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

आदरणीय महेंद्र जी ,
आपका इस तरह का खोजी लेखन बहुत ही सराहनीय है |
माया मोह त्यागकर कृष्ण की सखी भक्ति में लीन हो जाने वाले 'ललित किशोरी जी' के बारे में जानकारी देकर और उनका सुन्दर पद प्रस्तुत करके आपने स्तुत्य कार्य किया है |

Satish Saxena said...

यह जानकारी मेरे लिए नवीन है ...अच्छा लगा जानकार ! हार्दिक आभार !!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

ललित जी के विचारों से अवगत कराने का शुक्रिया।

............
ब्‍लॉग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्‍वासी लोग आज भी रत्‍न धारण करते हैं।

हरकीरत ' हीर' said...

दुनिया के परपंचों में हम, मजा कछू नहिं पाया जी,
भाई बंधु पिता माता पति, सब सों चित अकुलाया जी।
छोड़ छाड़ घर गांव नांव कुल, यही पंथ मन भाया जी,
ललित किशोरी आनंदघन सों, अब हठि नेह लगाया जी।

ललित किशोरी जी के रोचक पद हैं ....

रंजना said...

क्या बात कही है आपने...एक एक शब्द अपने मन के भावों को प्रतिध्वनित करते लगे...

सचमुच क्या समय है..कभी लोग अतुल धन त्याग सन्यासी बनते थे..आज संन्यास वेश धारण कर,कुछेक चमत्कार दिखा अतुल्य धन जुटाते हैं...

सात्विक आनंद मिला पदों को पढ़कर...

आभार...

Shalini kaushik said...

अष्टसिद्धि नवनिद्धि हमारी, मुट्ठी में हरदम रहती,
नहीं जवाहिर सोना चांदी, त्रिभुवन की संपति चहती।
भावे न दुनिया की बातें, दिलबर की चरचा सहती,
ललित किशोरी पार लगावे, माया की सरिता बहती।
bahut sundar prastuti.mahendra ji aapke blog ko hamne aaj ye blog achchha laga par liya hai.aap bhi aayen aur apne vicharon se hamara margdarshan karen.

Amrita Tanmay said...

चित्ताकर्षक लगी ...