तेरा मुझसे क्या नाता है, पूछ रही है सारी दुनिया,
अपनी मर्जी का मालिक बन, अड़ी खड़ी है सारी दुनिया।
बारूदी पंखुड़ी लगा कर, काल उड़ रहा आसमान में,
नागासाकी न हो जाए, डरी डरी है सारी दुनिया।
जाने कितने पिण्ड सृष्टि के, ब्लैक होल में बदल गए,
धरती उसमें समा न जाए, सहम गयी है सारी दुनिया।
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।
संबंधों के फूल महकते, थे जो सारे सूख गए हैं,
ढाई आखर के मतलब को भूल चुकी है सारी दुनिया।
आंधी तूफां तो जीवन में, आते जाते ही रहते हैं,
नई नई उम्मीदों से भी, भरी भरी है सारी दुनिया।
मां की ममता के आंगन में, थिरक रहा है बचपन सारा,
उसके आंचल के कोने से, नहीं बड़ी है सारी दुनिया।
- महेन्द्र वर्मा