मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी


ग़ज़ल
रचनाकार में पूर्व प्रकाशित

कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था,
हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था।


मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी, 
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।


ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था।


लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से, 
छुपाता बगल में छुरा लग रहा था।


मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।


जो होने लगे हादसे रोज इतने,
सुना है ख़ुदा भी डरा लग रहा था।


ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।

                                                              -महेन्द्र वर्मा