दोहे


दुनिया अद्भुत ग्रंथ है, पढ़िये जीवन माहिं,
एक पृष्ठ भर बांचते, जो घर छोड़त नाहिं।


दुर्जन साथ न कीजिए, यद्यपि विद्यावान,
सर्प भले ही मणि रखे, विषधर ही पहचान।


पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्ति में, लगते वर्ष अनेक,
पर कलंक की क्या कहें, लगता है पल एक।


प्रसन्नता को जानिए, जैसे चंदन छाप,
दूसर माथ लगाइए, उंगली महके आप।


पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर,
किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर।


प्रेम भाव को मानिए, सर्वश्रेष्ठ वरदान,
जीवन सुरभित हो उठे, गूंजे सुखकर गान।


व्यथा सिखाती है हमें, सीख उसे पहचान,
ग्रंथों में भी न मिले, ऐसा अनुपम ज्ञान।

                                                                    -महेन्द्र वर्मा