दोहे: तन-मन-धन-जन-अन्न


जहाँ-जहाँ पुरुषार्थ है, प्रतिभा से संपन्न, 
संपति पाँच विराजते, तन-मन-धन-जन-अन्न।


दुख है जनक विराग का, सुख से उपजे राग,
जो सुख-दुख से है परे, वह देता सब त्याग।


ऐसी विद्या ना भली, जो घमंड उपजात,
उससे तो मूरख भले, जाने शह ना मात।


ईश्वर मुझको दे भले, दुनिया भर के कष्ट,
पर मिथ्या अभिमान को , मत दे, कर दे नष्ट।


जो भी है इस जगत में, मिथ्या है निस्सार,
माँ की ममता सत्य है,  करें सभी स्वीकार।


                                                                              -महेन्द्र वर्मा