सूरज का हरकारा दिन,
फिरता मारा-मारा दिन।
कहा सुबह ने हँस लो थोड़ा,
फिर रोना है सारा दिन।
जिनकी किस्मत में अँधियारा,
तब क्या बने सहारा दिन।
इतराता आया पर लौटा,
थका-थका सा हारा दिन।
रात-रात भर गायब रहता,
जाने कहाँ कुँवारा दिन।
मेरे ग़म को वह क्या समझे,
तारों का हत्यारा दिन।
-महेन्द्र वर्मा