गीतिका



यादों को विस्मृत कर देना बहुत कठिन है,
ख़ुद को ही धोखा दे पाना बहुत कठिन है।

जाने कैसी चोट लगी है अंतःतल में,
टूटे दिल को आस बंधाना बहुत कठिन है।

तैर रही हो विकट वेदना जिनमें छल-छल,
उन आंखों की थाह जानना बहुत कठिन है।

नादानों को समझा लेंगे कैसे भी हो,
समझदार को समझा पाना बहुत कठिन है।

जीवन सरिता के इस तट पर दुख का जंगल,
क्या होगा उस पार बताना बहुत कठिन है।

झूठ बोलने वालों ने आंखें दिखलाईं,
ऐसे में सच का टिक पाना बहुत कठिन है।

मौत किसे कहते हैं यह तो सभी जानते,
जीवन को परिभाषित करना बहुत कठिन है।
                                                                       -महेन्द्र वर्मा