उर की प्रसन्नता




दोनों हाथों की शोभा है दान करने से अरु,
मन की शोभा बड़ों का मान करने से है।
दोनों भुजाओं की शोभा वीरता दिखाने अरु,
मुख की शोभा तो प्यारे सच बोलने से है।
कान की शोभा है मीठी वाणी सुनने से अरु,
आंख की शोभा तो अच्छे भाव देखने से है।
चेहरा शोभित होता उर की प्रसन्नता से,
मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है।

                                         -
महेन्द्र वर्मा

बिना बोले



विपत बनाती मनुज को, दुर्बल न बलवान,
वह तो केवल यह कहे, क्या है तू, ये जान।

कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप,
सहज विवेकी बन रहें, कम होगा संताप।

मूर्खों के सम्मुख स्वयं, जो बनते विद्वान,
विद्वानों के सामने, वही मूर्ख पहचान।

क्रोध जीतिए शांति से, मृदुता से अभिमान,
व्यर्थवादिता मौन से, लोभ जीतिए दान।

बड़े बिना बोले बचन, करते यों व्यवहार,
विनय सिखाते लघुन को, करते पर उपकार।


                                                                          
                                                                      -महेन्द्र वर्मा

संत बाबा किनाराम


                                   बनारस  जिले की चंदौली तहसील के रामगढ़ गांव में अकबर सिंह और मनसा देवी के घर जिस बालक ने जन्म लिया वही प्रसिद्ध संत बाबा किनाराम हुए। 12 वर्ष की अवस्था में इन्होंने गृह त्याग कर अध्यात्म की राह पकड़ी। बलिया जिले के कारों गांव निवासी बाबा शिवराम इनके गुरु थे। काशी में इन्होंने केदार घाट के बाबा कालूराम अघोरी से दीक्षा प्राप्त की। अपने गुरु की स्मृति में इन्होंने 4 मठों का निर्माण कराया। इनकी जन्मस्थली रामगढ़ में बाबा किनाराम का आध्यात्मिक आश्रम है।
                                  ये कवि भी थे। इनकी प्रधान रचना ‘विवेकसार‘ है। अन्य प्रकाशित रचनाएं ‘रामगीता‘, ‘गीतावली‘, ‘रामरसाल‘ आदि हैं। इनकी रचनाओं से इनके अवधूत मत का सहज ही अनुमान हो जाता है।

प्रस्तुत है बाबा किनाराम रचित एक पद-

कथें ज्ञान असनान जग्य व्रत, उर में कपट समानी।
प्रगट छांडि करि दूरि बतावत, सो कैसे पहचानी।
हाड़ चाम अरु मांस रक्त मल, मज्जा को अभिमानी।
ताहि खाय पंडित कहलावत, वह कैसे हम मानी।
पढ़े पुरान कुरान वेद मत, जीव दया नहिं जानी।
जीवनि भिन्न भाव करि मारत, पूजत भूत भवानी।
वह अद्ष्ट सूझ नहिं तनिकौ, मन में रहै रिसानी।
अंधहि अंधा डगर बतावत, बहिरहि बहिरा बानी।
राम किना सतगुरु सेवा बिनु, भूलि मरो अज्ञानी।।