नेह का दीप

सहमे से हैं लोग न जाने किसका डर है,
यही नज़ारा रात यही दिन का मंजर है।

दुनिया भर की ख़ुशियां नादानों के हिस्से,
अल्लामा को दुख सहते देखा अक्सर है।

सच कहते हैं लोग समय बलवान बहुत है,
रहा कोई महलों में लेकिन अब बेघर है।

हसरत भरी निगाहें तकतीं नील गगन में,
मगर कहां परवाज हो चुके हम बेपर हैं।

अच्छी सूरत वालों ने इतिहास बिगाड़ा,
सीरत जिसकी अच्छी बेशक वह सुंदर है।

मैं तो हूं बंदे का मालिक मेरा क्या है,
जहां नेह का दीप जले मेरा मंदर है।

मेरे मन की बात समझ न पाओगे तुम,
तेरे मेरे दुख में शायद कुछ अंतर है।

                                                   
- महेन्द्र वर्मा

उर की प्रसन्नता




दोनों हाथों की शोभा है दान करने से अरु,
मन की शोभा बड़ों का मान करने से है।
दोनों भुजाओं की शोभा वीरता दिखाने अरु,
मुख की शोभा तो प्यारे सच बोलने से है।
कान की शोभा है मीठी वाणी सुनने से अरु,
आंख की शोभा तो अच्छे भाव देखने से है।
चेहरा शोभित होता उर की प्रसन्नता से,
मानव की शोभा शुभ कर्म करने से है।

                                         -
महेन्द्र वर्मा

बिना बोले



विपत बनाती मनुज को, दुर्बल न बलवान,
वह तो केवल यह कहे, क्या है तू, ये जान।

कौन, कहां मैं, किसलिए, खुद से पूछें आप,
सहज विवेकी बन रहें, कम होगा संताप।

मूर्खों के सम्मुख स्वयं, जो बनते विद्वान,
विद्वानों के सामने, वही मूर्ख पहचान।

क्रोध जीतिए शांति से, मृदुता से अभिमान,
व्यर्थवादिता मौन से, लोभ जीतिए दान।

बड़े बिना बोले बचन, करते यों व्यवहार,
विनय सिखाते लघुन को, करते पर उपकार।


                                                                          
                                                                      -महेन्द्र वर्मा