जिस पर तेरा नाम लिखा हो




लम्हा  एक  पुराना  ढूंढ,
फिर खोया अफ़साना ढूंढ।

वे गलियां वे घर वे लोग,
गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ।

भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद  एक  सयाना  ढूंढ।

लोग बदल से गए यहां के,
कोई  और  ठिकाना  ढूंढ।

कुदरत में है तरह तरह के,
  सुंदर  एक  तराना ढूंढ।

दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा  इक  पैमाना   ढूंढ।

जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा   कोई   दाना   ढूंढ।



                                          - महेन्द्र वर्मा

डरता है अंधियार

जगमग हर घर-द्वार  कि अब दीवाली आई,
पुलकित  है  संसार  कि  अब  दीवाली आई।


दुनिया के  कोने-कोने  में  दीप  जले हैं, 
डरता है अंधियार कि अब दीवाली आई।


गीत प्यार के गीत मिलन के गीत ख़ुशी के, 
गाओ  मेरे   यार   कि  अब   दीवाली  आई।


जी भर जी लो गले लगालो सबको हंसकर,
जीवन के  दिन  चार  कि अब दीवाली आई।


दुनिया से  अब  द्वेष  मिटाकर ही दम लेंगे,
दिल में रहे बस प्यार कि अब दीवाली आई।


सुख समृद्धि स्वास्थ्य संपदा मिले सभी को,
यही  कामना   चार  कि   अब दीवाली आई।


धरती  सागर  जंगल सरिता गगन पवन पर,
हो सबका  अधिकार कि  अब  दीवाली आई।


खुद  भी  जियो   और   दूसरों को जीने दो,
जीवन  का यह सार कि अब  दीवाली  आई।



जीवन के इस महा समर में दुआ करें हम,
हो न किसी की हार कि अब दीवाली आई।


अक्षत  रोली  और  मिठाई  ले  आया  हूं,
स्वीकारो  उपहार  कि अब दीवाली  आई।

दीपावली की अशेष शुभकामनाओं के साथ...

                                       -महेन्द्र वर्मा

जानना और समझना

                                   जो जानते हैं, जरूरी नहीं कि वे समझते भी हों। लेकिन जो समझते हैं, वे जानते भी हैं। जानना पहले होता है, समझना उसके बाद। यह तत्काल बाद भी हो सकता है और बरसों भी लग सकते हैं । कभी-कभी जानना और समझना साथ-साथ चलता है। जानते हुए समझना से ज्यादा बेहतर है- समझते हुए जानना। जानना आसान है, समझना कठिन। जानना सतही होता है, एक विमीय होता है, जबकि समझने में कर्इ आयामों से गुजरना पड़ता है। वैसे, गहनता और गंभीरतापूर्वक जानना को समझना कह सकते हैं।
                                   जानने की प्रक्रिया  ज्ञान ग्रहण करने वाले अंगों और मस्तिष्क के सहयोग से कुछ ही समय में सम्पन्न हो जाती है। कोर्इ व्यकित स्वयं अपने प्रयासों से चीजोंतथ्यों के बारे में जान सकता है या फिर, दूसरों के अनुभवों को सुनकर, किताबों से पढ़कर या आधुनिक संचार माध्यमों के जरिए जान सकता है। लेकिन इन्हीं चीजोंतथ्यों के बारे में समझना भी हो तो  केवल ज्ञान ग्रहण करने वाले अंगों और मस्तिष्क का उपयोग व्यर्थ साबित होगा।
                                    समझने की प्रक्रिया में जिसका भरपूर योगदान होता है, वह है- बुद्धि।  बुद्धि का प्रमुख काम यह है कि यह उनको सोचने के लिए प्रेरित और कभी-कभी बाध्य भी करती है, जिनके पास यह होती है। होती तो सभी मनुष्यों के पास है, किंतु स्तर या मात्रा में भिन्नता होती है। बुद्धि के स्तर में अंतर होने के कारण सोचने के स्तर में भी अंतर हो ही जाता है। सोचने के इस अंतर के कारण समझने में फर्क आना स्वाभाविक है। सोचने और फिर समझने की इस प्रक्रिया में व्यकित का पूर्वज्ञान, पूर्व अनुभव और विवेक की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
                     समझ का यही अंतर विवादों का जनक होता है।
एक बात और- बिना जाने समझना संभव नहीं है लेकिन बिना समझे जानना व्यर्थ है, निरर्थक है।
                                                                                                                                                                                                                                -                                                                                                                         * महेन्द्र वर्मा