तेरा-मेरा-सब का

सबसे ज्यादा अपना है, 
वह जो मेरा साया है।

मन की आंखें खुल जातीं,
दिल में अगर उजाला है।

कुछ आखर कुछ मौन बचा,
यह मेरा सरमाया है।

दुनियादारी है क्या शै,
धुंआ-धुंआ सा दिखता है।

आंसू मुस्कानों से रिश्ता,
तेरा मेरा सब का है।

सुर में या बेसुर लेकिन,
जीवन सब का गाता है।

इतनी तेरी धूप, ये मेरी,
ये कैसा बंटवारा है।

                                                       -महेन्द्र वर्मा

ग़ज़ल






उतना ही सबको मिलना है,
जिसके हिस्से में जितना है।

क्यूं ईमान सजा कर रक्खा,
उसको तो यूं ही लुटना है।

ढोते रहें सलीबें अपनी, 
जिनको सूली पर चढ़ना है।

मुड़ कर नहीं देखता कोई, 
व्यर्थ किसी से कुछ कहना है।

जंग आज की जीत चुका हूं,
कल जीवन से फिर लड़ना है।

सूरज हूं जलता रहता हूं,
दुनिया को ज़िंदा रखना है।

बोल सभी लेते हैं लेकिन,
किसने सीखा चुप रहना है।

                                              -महेन्द्र वर्मा

आभास



लगता है सत्य कभी
अथवा आभास,
तिनके-से जीवन पर
मन भर विश्वास।

स्वप्नों की हरियाली
जीवन पाथेय बनी,
जग जगमग कर देती
आशा की एक कनी।

डाल-डाल उम्र हुई
पात-पात श्वास।

जड़ता खिलखिल करती
बैद्धिकता आह !
अमरत्व मरणशील
कहानी अथाह।

चिदाकाश करता है,                 
मानो उपहास।

                                                                                    -महेन्द्र वर्मा