ख़ामोशी

तन्हाई में जिनको सुकून-सा मिलता है,
आईना भी उनको दुश्मन-सा लगता है।

दिल में उसके चाहे जो हो तुझको क्या,
होठों से तो तेरा नाम जपा करता है।

तेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
बात हुई क्या उनमें अब सावन बसता है।

वो तो दीवाना है उसकी बातें छोड़ो,
अपने ग़म को ही अपनी ग़ज़लें कहता है।

ख़ामोशी भी कह देती है सारी बातें,
दिल की बातें कब कोई मुंह से कहता है।

                                                 
                                                  -महेन्द्र वर्मा

सद्गुण ही पर्याप्त है

   
पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर,
किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर ।

ग्रंथ श्रेष्ठ गुरु जानिए, हमसे कुछ नहिं लेत,
बिना क्रोध बिन दंड के, उत्तम विद्या देत ।

मान प्रतिष्ठा के लिए, धन आवश्यक नाहिं,
सद्गुण ही पर्याप्त है, गुनिजन कहि कहि जाहिं ।

जो जो हैं पुरुषार्थ से, प्रतिभा से सम्पन्न,
संपति पांच विराजते, तन मन धन जन अन्न ।

पाने की यदि चाह है, इतना करें प्रयास,
देना पहले सीख लें, सब कुछ होगा पास ।

आलस के सौ वर्ष भी, जीवन में है व्यर्थ,
एक वर्ष उद्यम भरा, महती इसका अर्थ ।

विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का संसार ।

                                             
                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

बुरा लग रहा था



कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था,
हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था।

मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी,
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।

ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था।

लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से,
छुपाता बगल में छुरा लग रहा था।

मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।

जो होने लगे हादसे रोज इतने,
सुना है ख़ुदा भी डरा लग रहा था।

ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।

                                                              -महेन्द्र वर्मा