श्रद्धा की आंखें नहीं

जंगल तरसे पेड़ को, नदिया तरसे नीर,
सूरज सहमा देख कर, धरती की यह पीर ।

मृत-सी है संवेदना, निर्ममता है शेष,
मानव ही करता रहा, मानवता से द्वेष ।

अर्थपिपासा ने किया, नष्ट धर्म का अर्थ,
श्रद्धा की आंखें नहीं, सत्य हुआ असमर्थ ।

‘मैं’ से ‘मैं’ का द्वंद्व भी
,सदा रहा अज्ञेय,
पर सबका ‘मैं’ ही रहा, अपराजित दुर्जेय ।

उर्जा-समयाकाश है, अविनाशी अन्-आदि,
शेष विनाशी ही हुए, जल-थल-नभ इत्यादि ।

अंधकार के राज्य में, दीये का संघर्ष,
त्रास हारता है सदा, विजयी होता हर्ष ।

कहीं खेल विध्वंस का, कहीं सृजन के गीत,
यही सृष्टि का नियम है, यही जगत की रीत ।
                                                                         -महेन्द्र वर्मा

गाता हुआ वायलिन

                              गाता हुआ वायलिन यानी "singing violin" पूरे विश्व में केवल दो कलाकारों के पास है। एक- पद्मभूषण विदुषी एन. राजम् और दूसरी, उनकी भतीजी, विदुषी कला रामनाथ के पास। दोनों हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत  की विश्वप्रसिद्ध और बहुश्रुत विदुषी हैं। वास्तव में गायकी के अंदाज में वायलिन वादन की उनकी अनूठी और अप्रतिम शैली के कारण संगीत प्रेमियों ने उनके वादन को "singing violin" का खिताब दिया है।

                                सन् 1938 में चेन्नई में जन्मी विदुषी एन. राजम् के पिता विद्वान ए.नारायण अय्यर  कर्नाटक शैली के विख्यात वायलिन वादक थे। 3 वर्ष की उम्र में ही जन्मजात प्रतिभाशालिनी राजम् ने अपने पिताजी से वायलिन सीखना प्रारंभ कर दिया था। हिंदुस्तानी शास्त्रीय शैली में वायलिन वादन उन्होंने ग्वालियर घराने के प्रख्यात गायक पं. ओन्कार नाथ ठाकुर से सीखा जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के प्रथम विभागाध्यक्ष भी रहे। एक प्रख्यात गायक से संगीत सीखने के कारण ही उनके वायलिन वादन में अनूठी गायकी शैली समृद्ध  हुई।
                          
                           एन. राजम् के बड़े भाई संगीत कलानिधि श्री टी.एन.कृष्णन कर्नाटक शैली के विख्यात वायलिन वादक हैं। उनके एक और संगीतकार भाई श्री टी.एन. मणि की सुपुत्री हैं- विदुषी कला रामनाथ। इनका जन्म सन् 1967 में हुआ और 1970 से उन्होंने अपनी बुआ श्रीमती एन. राजम् से वायलिन सीखना प्रारंभ किया। तत्पश्चात उन्होंने मेवाती घराने के प्रख्यात गायक पद्मविभूषण पं. जसराज से संगीत की शिक्षा ग्रहण की । हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के इन दो महान विभूतियों से संगीत सीखने और अपनी जन्मजात प्रतिभा के कारण श्रीमती कला रामनाथ के वायलिन से भी गायकी के अंदाज में राग सृजित होने लगे। देश-विदेश में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित श्रीमती कला रामनाथ ने पश्चिमी और अफ्रीकी संगीतकारों के साथ भी अनेक सराहनीय कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं।
 
                                विदुषी एन. राजम् की सुपुत्री तथा शिष्या श्रीमती संगीता शंकर और इनकी दो प्रतिभाशाली बेटियां रागिनी और नंदिनी शंकर भी गायकी शैली में वायलिन वादन की अप्रतिम विभूतियां हैं। एक ही परिवार की निरंतर चार पीढि़यों ने वायलिन वादन के क्षेत्र में जो वैश्विक ख्याति अर्जित की है वह अपनी तरह का पहला उदाहरण है।
 
                               इतना ही नहीं, विदुषी एन.राजम् के एक और भाई पं. नारायण गणेश सरोद वादक हैं तथा चौथे भाई टी.एन. रामचंद्रन की सुपुत्री श्रीमती इंदिरा रामानी कर्नाटक शैली की प्रसिद्ध गायिका हैं। बड़े भाई श्री टी.एन.कृष्णन की सुपुत्री श्रीमती विजी कृष्णन नटराजन और सुपु़त्र श्रीराम कृष्णन भी प्रसिद्ध संगीतज्ञ हैं।
 
                           विदुषी एन.राजम के पिता विद्वान ए.नारायण अय्यर के पूर्व की तीन पीढि़यां भी केरल राजघराने के संगीतगुरु रहे। सात पीढि़यों के संगीत साधकों का यह सुरीला संकुल भविष्य में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत की सतत् श्रीवृद्धि करता रहेगा, निस्संदेह।
 
                                                          " इन विभूतियों को प्रणाम "

                                ( इस चित्र में वे सभी हैं, जिनका उल्लेख इस आलेख में है )
[मुझे विदुषी एन.राजम्, श्रीमती संगीता शंकर और श्रीमती कला रामनाथ के वायलिन वादन की मंचीय प्रस्तुति देखने-सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ]
                                                                                                                             - महेन्द्र वर्मा

                                                                                                                                                                     

शुभ की कामना


घर का कोना-कोना उजला हुआ करे तो अच्छा हो,
मन के भीतर में भी दीपक जला करे तो अच्छा हो।

कहते हैं कुछ लोग कि कोई ऊपर वाला सुनता है,
तेरा मेरा उसका सबका भला करे तो अच्छा हो।

बैठे-ठालों के घर पर क्यों धन की बारिश होती है,
मिहनतकश लोगों के आँँगन गिरा करे तो अच्छा हो।

ढोंग और पाखंड तुले हैं नाश उजाले का करने,
एक दिया इनके मरने की दुआ करे तो अच्छा हो।

स्वस्थ-सुखी-समृद्ध सभी हों कहती है ये दीवाली,
शुभ की यही कामना सबको फला करे तो अच्छा हो।

त्योहारें  तो  मौसम-से  हैं  आते  जाते  रहते हैं,
अंतस्तल में रोज दिवाली हुआ करे तो अच्छा हो।


केवल वे ही सुन पाते हैं जिनको सुनना आता है,
इन बातों को सुनकर कोई जिया करे तो अच्छा हो।



 सभी मित्रों को दीपावली की अशेष शुभकामनाएँँ।

                                                               
                                                                                   -महेन्द्र वर्मा