औषधि ये ही तीन हैं

श्रेष्ठ विचारक से अगर, करना हो संवाद,
उनकी पुस्तक बांचिए, भीतर हो अनुनाद।

जिनकी सोच अशक्त है, वे होते वाचाल,
उत्तम जिनकी सोच है, नहीं बजाते गाल।

सुनना पहले सीखिए, फिर देखें हालात,
बुरे वचन में भी दिखे, कोई अच्छी बात।

स्वविश्वास सहेजिए, कभी न होती हार,
तुष्टि विजय यश आत्मबल, अनुगामी हों चार।

महापुरुष जो दे गए, निज कर्मों से सीख,
भूल गई दुनिया उन्हें, कहीं न पड़ती दीख।

स्वाभिमानियों का सदा, ऊँचा रहता माथ,
दंभी तब तक हाँकते, जब तक सत्ता साथ।

प्रकृति समय अरु धीरता, कभी न होते नष्ट,
औषधि ये ही तीन हैं, हरते सारे कष्ट।


                                           
-महेन्द्र वर्मा

सम्मोहन

अगर मैं ये कहूँ
कि
धर्म से हटा दो
आडम्बर पूरी तरह
तो
क्या तुम मुझे
जीने नहीं दोगे
और
अगर मैं ये कहूँ
कि
मैं धर्म में
मिला सकता हूं
कुछ और सम्मोहनकारी आडम्बर
तो
क्या तुम मुझे
महामंडलाधिपति बना दोगे !


                                                   -महेन्द्र वर्मा

कृष्ण विवर

कुछ भी नहीं था
पर शून्य भी नहीं था
चीख रहे उद्गाता ।

जगती का रंगमंच
उर्जा का है प्रपंच,
अकुलाए-से लगते
आज महाभूत पंच,

दिक् ने ज्यों काल से
तोड़ लिया नाता।

न कोई तल होगा
न ही कोई शिखर,
अस्ति और नास्ति को
निगलेगा कृष्ण विवर,

तुम्ही जानते हो
न जानते विधाता।

                    
-महेन्द्र वर्मा