पूजा से पावन





                 जाने -पहचाने  बरसों के  फिर  भी   वे अनजान लगे,
                 महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे ।

                इक दिन मैंने अपने ‘मैं’ को अलग कर दिया था ख़ुद से,
                अब जीवन  की  हर  कठिनाई  जाने क्यों आसान लगे ।

                 चेहरे  उनके  भावशून्य  हैं  आखों  में  भी  नमी  नहीं,
                 वे  मिट्टी  के  पुतले  निकले  पहले  जो  इन्सान  लगे ।

                 उजली-धुँधली यादों की जब चहल-पहल सी रहती है,
                 तब  मन  के  आँगन का कोई कोना क्यों वीरान लगे ।

                  होते  होंगे  और कि जिनको भाती है आरती अज़ान,
                  हमको  तो  पूजा  से  पावन बच्चों की मुस्कान लगे ।

                                                                                                                            -महेन्द्र वर्मा

तितलियों का ज़िक्र हो





प्यार का, अहसास का, ख़ामोशियों का ज़िक्र हो,
महफ़िलों में अब ज़रा तन्हाइयों का ज़िक्र हो।


मीर, ग़ालिब की ग़ज़ल या, जिगर के कुछ शे‘र हों,
जो कबीरा ने कही, उन साखियों का ज़िक्र हो।


रास्ते तो और भी हैं, वक़्त भी, उम्मीद भी,
क्या ज़रूरत है भला, मायूसियों का ज़िक्र हो।


फिर बहारें आ रही हैं, चाहिए अब हर तरफ़,
मौसमों का गुलशनों का, तितलियों का ज़िक्र हो।


गंध मिट्टी की नहीं ,महसूस होती सड़क पर,
चंद लम्हे गाँव की, पगडंडियों का ज़िक्र हो।


इस शहर की हर गली में, ढेर हैं बारूद के,
बुझा देना ग़र कहीं, चिन्गारियों का ज़िक्र हो।


दोष सूरज का नहीं है, ज़िक्र उसका न करो,
धूप से लड़ती हुई परछाइयों का ज़िक्र हो।

                                                                            -महेन्द्र वर्मा                                            

ऊबते देखे गए



भीड़ में अस्तित्व अपना खोजते देखे गए,
मौन थे जो आज तक वे चीखते देखे गए।

आधुनिकता के नशे में रात दिन जो चूर थे,
ऊब कर फिर ज़िंदगी से भागते देखे गए।

हाथ में खंजर लिए कुछ लोग आए शहर में,
सुना हे मेरा ठिकाना पूछते देखे गए।

रूठने का सिलसिला कुछ इस तरह आगे बढ़ा,
लोग जो आए मनाने रूठते देखे गए।

लोग उठ कर चल दिए उसने सुनाई जब व्यथा,
और जो बैठे रहे वे ऊबते देखे गए।

बेशऊरी इस कदर बढ़ती गई उनकी कि वे,
काँच के शक में नगीने फेंकते देखे गए।

कह रहे थे जो कि हम हैं नेकनीयत रहनुमा,
काफिले को राह में ही लूटते देखे गए।

                                                                           
                                                                       



 -महेन्द्र वर्मा

तबला वादन में ख्यातिलब्ध महिलाएँ






             हिंदुस्तानी संगीत में तालवाद्यों में तबला सबसे अधिक प्रतिष्ठित वाद्ययंत्र है । शास्त्रीय संगीत हो या सुगम, गायन-वादन हो या नृत्य, एकल वादन हो या संगत, लोकगीत हो या सिनेगीत, सभी में तबले की श्रेष्ठ भूमिका सदैव रही है । सदियों से इस तालवाद्य पर पुरुषों का एकाधिकार रहा है । यह माना जाता था कि तबला वादन एक कठिन कला है ,इसमें अन्य वाद्यों की तुलना में अधिक शारीरिक और मानसिक परिश्रम की आवश्यकता होती है इसलिए इसे महिलाएँ नहीं बजा सकतीं।

              किंतु यह मान्यता अब टूट चुकी है । देश और विदेश की अनेक महिलाएँ आज शास्त्रीय तबला वादन के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिष्ठा और ख्याति अर्जित कर रही हैं, एकल वादन और संगतकार, दोनों रूपों में ।
आइए, जानें कुछ प्रसिद्ध महिला तबला वादकों का संक्षिप्त परिचय -


डॉ. अबन मिस्त्री
डॉ. अबन मिस्त्री

आज से लगभग 5 दशक पूर्व स्व. डॉ. अबन ई. मिस्त्री (1940-2012 ) को मंच पर    एकल तबला वादन करते हुए देख कर लोग आश्चर्यचकित हुए थे । इन्हें प्रथम महिला तबला वादक होने का गौरव प्राप्त हुआ । तबला विषय पर पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त करने और अपने तबला वादन का एलबम जारी करने वाली ये पहली महिला कलाकार थीं । ये अन्य महिला कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनीं ।







अनुराधा पाल

डॉ. मिस्त्री के पश्चात तबला वादन के क्षेत्र में जिन्होंने विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की, वे हैं पं. अनुराधा पाल ( जन्म 1975, निवास मुंबई ) जिन्हें ‘तबला क्वीन’ और ‘लेडी ज़ाकिर हुसैन’ भी कहा जाता है । इन्होंने उस्ताद अल्लारक्खा ख़ाँ और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन से तबले की शिक्षा ग्रहण की थी । अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पं. अनुराधा पाल ‘स्त्री शक्ति’ और ‘रिचार्ज’ नामक संगीत मंडली संचालित करती हैं । देश और विदेश के अनेक बड़े आयोजनों में ये प्रसिद्ध संगीतविदों के साथ तबला संगत करने के अलावा एकल वादन और अपनी संगीत मंडली के कार्यक्रमों की प्रस्तुति करती रही हैं ।





रिम्पा सिवा 

‘प्रिंसेस ऑफ तबला’ के नाम से चर्चित डॉ. रिम्पा सिवा ( जन्म 1986 ) निवास कोलकाता तबला वादन के नए आयाम गढ़ रही हैं । 14 वर्ष की आयु में पं. हरिप्रसाद चौरसिया जी के साथ तबला संगत करने वाली ये युवा कलाकार देश-विदेश में एक हज़ार से अधिक कार्यक्रम   प्रस्तुत कर चुकी हैं । अपने पिता और गुरु प्रो. स्वपन सिवा से 3 वर्ष की आयु से ही तबला सीखने वाली रिम्पा सिवा का तबला वादन सुनकर आश्चर्य होता है कि क्या तबला ऐसा भी बज सकता है !





सावनी तलवलकर

प्रसिद्ध तबला वादक तालयोगी पं. सुरेश तलवलकर और विदुषी पद्मा तलवलकर की सुपुत्री सावनी तलवलकर नई पीढ़ी की   तबला वादक हैं । इनके पिताजी ही इनके तबला गुरु भी हैं । उनके एकल वादन कार्यक्रमों में सावनी तबले पर जुगलबंदी करती रही हैं । कौशिकी चक्रवर्ती की संगीत मंडली ‘सखी’ में सावनी तबले पर संगत करती हुई देश-विदेश में ख्याति अर्जित कर रही हैं ।
        




सुनयना घोष

1979 में कोलकाता में जन्मीं सुनयना घोष प्रसिद्ध तबला वादक पं. शंकर घोष की शिष्या हैं । रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता की प्रत्येक डिग्री परीक्षा में सुनयना घोष ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया । भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्धारा यूरोप और अमेरिका में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाली संगीत मंडली में 10 युवा कलाकारों का चयन किया गया था जिसमें सुनयना घोष भी सम्मिलित थीं ।



  रेशमा पंडित 

रायपुर, छ.ग. के जाने-माने तबला वादक पं. संपत लाल की पोती 26 वर्षीया रेशमा पंडित ने 10 वर्ष की उम्र से ही अपने पिता कुमार पंडित से तबला सीखना प्रारंभ किया । रेशमा अब तक 300 से अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी हैं । इनके एकल वादन में बोलों की सुस्पष्ट और सुंदर प्रस्तुति चमत्कृत करती है ।



               इनके अतिरिक्त पायल कोटगीरकर,नजीमाबाद, अश्विनी वाघचौरे, पुणे, विजेता हेगड़े, होन्नावर कर्नाटक, संजीवनी हसब्नीस, पुणे, मिठू टिकदर, प. बंगाल आदि भी तबलावादन के क्षेत्र में कला-साधना कर रही हैं ।

                विदेश में भारतीय मूल की और अन्य देशों की महिला कलाकार भी तबलावादन में ख्याति अर्जित कर रही हैं । उनमें से कुछ के केवल नाम और चित्र से परिचय प्रस्तुत है -



सुफला पाटनकर
यू.एस.ए.
हिना पटेल
कनाडा
सेजल कुकाडिया
यू.एस.ए.










                                                                               

                                                      

अयाको इकेदा
जापान

समीरा वारिस
पाकिस्तान
अन्ना सोबेल
यू.एस.ए.
संस्कृति श्रेष्ठ
नेपाल


                              








                                        


                             














जिन वान
द. कारिया



 ( तथ्य एवं चित्र विभिन्न वेबसाइट से संकलित )

जो भी होगा अच्छा होगा



जो  भी   होगा  अच्छा   होगा,
फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।

भले  राह  में  धूप  तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।

दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा  सूरज  काला  होगा ।

पाँव  सफ़र  मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।

कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे   घर   आईना   होगा ।
 

-महेन्द्र वर्मा

अनुभव का उपहार


समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर,
मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर।


मुँह पर ढकना दीजिए, वक्ता होए शांत,
मन के मुँह को ढाँकना, कारज कठिन नितांत।


दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।


भाँति-भाँति के सर्प हैं, मन जाता है काँप,
सबसे जहरीला मगर, आस्तीन का साँप।


हो अतीत चाहे विकट, दुखदायी संजाल,
पर उसकी यादें बहुत, होतीं मधुर रसाल।


विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।


प्राकृत चीजों का सदा, कर सम्मान सुमीत,
ईश्वर पूजा की यही, सबसे उत्तम रीत।

                       
                                                                             -महेन्द्र वर्मा





कुछ और

मेरा कहना था कुछ और,
उसने समझा था कुछ और ।

धुँधला-सा है शाम का  सफ़र,
सुबह उजाला था कुछ और ।

गाँव जला तो बरगद रोया,
उसका दुखड़ा था कुछ और ।

अजीब नीयत धूप की हुई,
साथ न साया, था कुछ और ।

जीवन-पोथी में लिखने को,
शेष रह गया था कुछ और ।

 

-महेन्द्र वर्मा

बरगद माँगे छाँव




सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग,
बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग।

भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव,
पानी प्यासा हो गया, बरगद माँगे छाँव।
 

सूरज बोला  सुन जरा, धरती मेरी बात,
मैं ना उगलूँ आग तो, ना होगी बरसात।

सूरज है मुखिया भला, वही कमाता रोज,
जल-थल-नभचर पालता, देता उनको ओज।

पेड़ बाँटते छाँव हैं, सूरज बाँटे धूप,
धूप-छाँव का खेल ही, जीवन का है रूप।

धरती-सूरज-आसमाँ, सब करते उपकार,
मानव तू बतला भला, क्यों करता अपकार।

जल-जल कर देता सदा, सबके मुँह में कौर,
बिन मेरे जल भी नहीं, मत जल मुझसे और।

                                                                               

  -महेन्द्र वर्मा