सच क्या है


आज से तीन-चार लाख वर्ष पूर्व, जब मनुष्य अपने विकास की प्रारंभिक अवस्था में था, तब किसी समय एक घटना घटित हुई । इस घटना की प्रतिक्रिया दो रूपों में व्यक्त हुई ।

उस घटना को पहले जान लें -

जंगल में दो मनुष्य भोजन की तलाश में जा रहे थे । उन्होंने देखा कि कुछ दूरी पर एक मनुष्य कंदमूल खोज रहा था तभी झाड़ियों में छिपे एक शेर ने उस पर आक्रमण कर दिया और उसे मार डाला । दोनों मनुष्य भयभीत हो गए । वे तत्काल अपनी गुफा में लौट आए ।

चूंकि उनमें अन्य प्राणियों की तुलना में कुछ अधिक सोचने की क्षमता विकसित हो गई थी इसलिए उन दोनों के मन में भयजनित सोच की एक प्रक्रिया शुरू हुई कि शेर किसी दिन उन पर भी आक्रमण कर देगा और उन्हें खा जाएगा । वे सोचने लगे कि शेर की भयकारक शक्ति से बचाव कैसे किया जाए । आत्मरक्षा की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से उनमें थी ।

उन दोनों की सोचने की दिशा अलग-अलग थी । एक ने सोचा, शेर किसी अदृश्य शक्ति द्वारा प्रेरित है । यदि उस शक्ति को किसी तरह प्रसन्न कर दिया जाए तो उसके द्वारा प्रेरित वह शेर मुझ पर आक्रमण नहीं करेगा । उस मनुष्य ने अदृश्य शक्ति को प्रसन्न करने के लिए मन ही मन एक ‘प्रार्थना’ बनाई । अगले दिन कुछ कंदमूल लेकर वह एक स्थान पर गया, कंदमूल उस अदृश्य को समर्पित करते हुए प्रार्थना की कि आप इस भयानक शेर से मेरी रक्षा करें । वह निश्चिंत हो गया कि शेर अब मुझ पर आक्रमण नहीं करेगा । मनुष्य के मन में कुछ शांति की अनुभूति हुई ।

लेकिन दूसरा मनुष्य कुछ अलग सोच रहा था । वह शेर को ही पराजित करने का उपाय सोच रहा था । जंगल में घूमते समय उसे अनुभव हुआ था कि जब शरीर पर कांटा चुभता है तो कष्ट होता है । फिसल कर गिर जाएं तो नुकीले पत्थरों से चोट लग जाती है । इसी अनुभव से प्रेरित होकर उसने सोचा कि यदि शेर पर भी नुकीले पत्थर से वार किया जाए तो शेर भयभीत हो सकता है । अपने इस विचार पर उसने ‘प्रयोग’ किया । लकड़ी के  सीघे टुकड़े के एक छोर पर उसने एक नुकीला पत्थर लताओं से बांध दिया । उसे एक पेड़ की तरफ जोर से फेंका । वह यह देखकर संतुष्ट हुआ कि पत्थर का टुकड़ा पेड़ के तने में घंस गया है ।

दोनों अगले दिन जंगल में जा रहे थे । वह शेर फिर दिखा । शेर ने उन दोनों को देख लिया और उनकी तरफ तेजी से दौड़ा । पहला मनुष्य आंख बंद कर ‘प्रार्थना’ करने लगा । दूसरे ने अपना स्वनिर्मित साधन शेर की ओर फेंका । शेर को चोट लगी । वह डरकर भाग गया । पहले मनुष्य ने आंखें खोलीं, देखा, शेर वहां नहीं था । अदृश्य शक्ति के प्रति उसके मन में ‘आस्था’ उत्पन्न हुई । उसे विश्वास हुआ कि उसकी ‘अदृश्य शक्ति से प्रार्थना’ के कारण ही शेर डर गया । लेकिन सत्य क्या है, ये दूसरा मनुष्य ही जानता था जिसे अपनी ‘तार्किक शक्ति’ पर विश्वास था ।


विज्ञान और धर्म का ‘रोपण’ आदिम मनुष्यों के द्वारा एक ही समय में हुआ ।

पहले मनुष्य ने जिस पौधे का रोपण किया उसके वंशजों ने उसे सिंचित किया, बड़ा किया । लेकिन पांच हजार वर्ष पूर्व उस वृक्ष की कलमें काट-काट कर लोग अपने-अपने क्षेत्र में लगाने लगे और उसे भिन्न-भिन्न नाम भी देने लगे।  । ‘प्रार्थनाएं‘ भी अलग-अलग बन गईं और अलग-अलग ‘कंदमूल’ भी ।

दूसरे मनुष्य ने जो पौधा रोपा उसे भी उसके वंशजों ने सिंचित किया । लेकिन उसकी कलमें काट कर किसी ने अलग पौधा नहीं उगाया । आज भी संसार के सभी लोग उसी आदिम वृक्ष की छांव में एक साथ खड़े हैं ।
धर्म भेदभाव करता है, विज्ञान नहीं ।

उस मनुष्य ने जो ‘प्रार्थना’ की वह कौन-सी थी, आज कोई नहीं जानता । लेकिन दूसरे मनुष्य ने जो साधन बनाया वह वास्तव में आज के यांत्रिक भौतिकी के छः मूलभूत सरल मशीनों में से दो के प्रयोग की शुरुआत थी जिनको 
विज्ञान का प्रत्येक विद्यार्थी जानता है ।

सत्य की ‘कलमें’ नहीं लगाई जा सकतीं ।

-महेन्द्र वर्मा

धूप, चांदनी, सीप, सितारे




सच्चाई की बात करो तो, जलते हैं कुछ लोग,
जाने कैसी-कैसी बातें, करते हैं कुछ लोग।

धूप, चांदनी, सीप, सितारे, सौगातें हर सिम्त,
फिर भी अपना दामन ख़ाली, रखते हैं कुछ लोग।

उसके आँगन फूल बहुत है, मेरे आँगन धूल,
तक़दीरों का रोना रोते रहते हैं कुछ लोग।

इस बस्ती से शायद कोई, विदा हुई है हीर,
उलझे-उलझे, खोए-खोए, दिखते हैं कुछ लोग।

ख़ुशियाँ लुटा रहे जीवन भर, लेकिन अपने पास,
कुछ आँसू, कुछ रंज बचाकर, रखते हैं कुछ लोग।

इतना ही कहना था मेरा, बनो आदमी नेक,
हैराँ हूँ , यह सुनते ही क्यूँ , हँसते हैं कुछ लोग।

जुल्म ज़माने भर का जिसने, सहन किया चुपचाप,
उसको ही मुज़रिम ठहराने लगते हैं कुछ लोग।


                                                                -महेंद्र वर्मा

भविष्यकथन - एक दृष्टि









आजकल टेलीविज़न के चैनलों में भविष्यफल या भाग्य बताने वाले कार्यक्रमों की बाढ़ आई हुई है । स्क्रीन पर विचित्र वेषभूषा में राशिफल या लोगों की समस्याओं के समाधान बताते ये लोग भविष्यवक्ता कहे जाते हैं । क्या ये सचमुच भविष्य की घटनाओं को पहले से जान लेते हैं ? क्या इनके पास सचमुच कोई ऐसी विद्या है जिससे ये लोगों के भविष्य को जानकर उसमें आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए उपाय भी बता सकें ?

इन प्रश्नों के उत्तर मनुष्य की प्रकृति और स्वभाव में निहित हैं।

अपने भविष्य के बारे में जानने की इच्छा मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है ।  वह यह देखता आया है कि प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सुख और दुख, शांति और अशांति जैसी सकारात्मक और नकारात्मक स्थितियां अनिवार्य रूप से आती जाती रहती हैं । किंतु वह सुख की चाह की अपेक्षा इस बात की कामना अधिक करता है कि उसके जीवन में दुख न आए । उसके अवचेतन मन में भविष्य में आ सकने वाले दुख और अशांति के प्रति भय और चिंता बनी रहती है । यही भय उसे यह जानने के लिए प्रवृत्त करता है कि उसका भविष्य कैसा होगा, सुख-शांति की स्थितियां अधिक होंगी या दुख-अशांति की ।

हज़ारों साल पहले से मनुष्य पशु-पक्षी की आवाजों के साथ भविष्य में होने वाली घटनाओं का संबंध जोड़ने लगे थे । फिर जैसे-जैसे उसकी समझ, साथ ही नासमझी भी, बढ़ती गई वैसे-वैसे भविष्य जानने के नए-नए तरीके भी ईजाद होने लगे । आज पूरी दुनिया में भविष्य जानने के सैकड़ों तरीके प्रचलन में हैं । भारत में ही भविष्य बताने के 150 से अधिक विधियां प्रचलित हैं । जन्म कुंडली, हस्तरेखा, रमल, टैरो कार्ड, क्रिस्टल बॉल, अंक ज्योतिष, स्वप्न, मुखाकृति आदि से लेकर तोता, बैल, उल्लू, गधा आदि के माध्यम से भी भविष्यफल बताए जाते हैं ।

भविष्यफल बताने के ये तरीके तब और फलने-फूलने लगे जब भविष्यवक्ताओं ने अशुभ फलों को दूर करने या कम करने के उपाय भी बताना शुरू किया । हज़ारों साल पहले टोटेम के रूप में शुरू हुई इस परम्परा को बाद में भविष्यवक्ताओं ने शास्त्र कहा और अब वे इसे विज्ञान कहने लगे हैं । लेकिन वैज्ञानिकों ने इस ‘विद्या’ को कभी विज्ञान मानने लायक नहीं समझा क्योंकि यह विज्ञान है ही नहीं ।

भविष्यकथन विज्ञान न होने के बावजूद लोगों को क्यों कुछ भविष्यफल बिल्कुल सही प्रतीत होते हैं । इसका कारण है -भविष्य कथन की भाषा । इसकी भाषा कुछ इस प्रकार की होती है कि पढ़ने-सुनने वाला  उस कथन के अर्थों की  संगति स्वयं के साथ  आसानी से स्थापित कर लेता है । कुछ उदाहरण देखिए - आपका व्यक्तित्व आकर्षक है/आप अपनी ज़िंदगी अपने अंदाज़ में जीना चाहते हैं/व्यापार में सावधानी बरतें/बाधाएं आएंगी किंतु प्रयास करेंगे तो सफलता निश्चित है/अमुक अवधि में आपको अकस्मात धनलाभ होगा/व्यय पर नियंत्रण रखें/किसी परिजन के बीमार होने के कारण आप चिंतित रहेंगे/इस महीने व्यय की अधिकता रहेगी, आदि ।

ये ऐसे कथन हैं जिन्हें दुनिया का कोई भी व्यक्ति पढ़ेगा या सुनेगा तो उसे लगेगा कि ये उसके बारे में बिल्कुल सही कहा जा रहा है । आप में से जो भविष्यफल पढ़ने में रुचि रखते हैं वे कभी सभी बारह राशियों का भविष्यफल पढ़ कर देखें, आपको लगेगा कि सभी कथन आप पर भी लागू हो सकते हैं । भविष्यवक्ताओं द्वारा जानबूझ कर ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाता है ।

कुछ भविष्यकथन बिल्कुल सही होते देखे गए हैं । इसका कारण है संभाव्यता, अर्थात किसी घटना के घटित होने की संभावना । यदि किसी भविष्यवक्ता ने अपने 100 ग्राहकों को यह बताया कि अगले वर्ष आपके विवाह का योग है तो इस स्थिति में प्रत्येक के लिए केवल दो संभावनाएं हैं - विवाह होगा या नहीं होगा, इनमें से एक सही होगा ही । अर्थात 2 संभावनाओं में से 1 निश्चित ही घटित होगा । यानी 100 में से 50 या 50 प्रतिशत । इसी संभाव्यता के कारण कुछ भविष्यकथन सही होते पाए गए हैं । लेकिन इसमें ज्योतिषी के ज्ञान की कोई भूमिका नहीं है । साधारण शब्दों में ये तीर-तुक्का वाली बात है ।

यदि कोई भविष्यफल नकारात्मक हो तो उसके निवारण के लिए कई प्रकार के उपाय भविष्यवक्ताओं के द्वारा बताए जाते हैं । जो लोग उपाय करते हैं उनमें से कुछ को सफलता मिल जाती है, इसके पीछे भी संभाव्यता और संयोग का सिद्धांत लागू होता है । एक कारण और है- उपाय करने के बाद लोग आश्वस्त हो जाते हैं, उनका आत्मविश्वास और आत्मबल बढ़ जाता है । फलस्वरूप वे कार्य की सफलता या लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अधिक प्रयास  करते हैं और कुछ को सफलता मिल भी जाती है । इस सफलता में उपाय की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती बल्कि व्यक्ति द्वारा किया गया प्रयास ही मुख्य कारक होता है ।

स्वामी विवेकानंद ने कुछ सोचकर ही ये कहा होगा - ‘‘फलित ज्योतिष को  महत्व देना  अंधविश्वास है, इसने मनुष्यों को बहुत हानि पहुंचाई है (The Complete Works of Swami Vivekananda/Volume 8/Notes Of Class Talks And Lectures/Man The Maker Of His Destiny ) ।’’

-महेन्द्र वर्मा