दुनिया भरम भूल बौराई
मारवाड़ प्रदेश के जैतारन गांव में संत दरिया साहेब का जन्म संवत 1733 में हुआ था। इनके समसामयिक एक अन्य संत दरिया भी थे जो दरिया साहेब बिहार वाले के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां आज हम दरिया साहेब मारवाड़ वाले की चर्चा कर रहे हैं। अपने पिता का देहांत हो जाने के कारण ये परगना मेड़ता के रैनगांव में अपने मामा के यहां रहने लगे थे। इन्होंने संवत 1769 में बीकानेर प्रांत के खियानसर गांव के संत प्रेम जी से दीक्षा ग्रहण की थी।
संत दरिया साहेब के अनुयायी इन्हें संत दादूदयाल का अवतार मानते हैं। इनकी वाणियों की संख्या एक हजार कही जाती है। इनकी रचनाओं का एक छोटा सा संग्रह प्रकाशित हुआ है जिससे इनकी विशेषताओं का कुछ पता चलता हे। इनके पदों एवं साखियों के अंतर्गत इनकी साधना संबंधी गहरे अनुभवों के अनेक उदाहरण मिलते हैं। इनका हृदय बहुत ही कोमल और स्वच्छ था। इनकी भाषा पर इनके प्रांत की बोलियों का अधिक प्रभाव नहीं है। अपने पदों में अनेक स्थानों पर इन्होंने स्त्रियों की महत्ता व्यक्त की है।
प्रस्तुत है, संत दरिया साहेब मारवाड़ वाले का एक पद-
संतो क्या गृहस्थ क्या त्यागी।
जेहि देखूं तेहि बाहर भीतर, घट-घट माया लागी।
माटी की भीत पवन का खंबा, गुन अवगुन से छाया।
पांच तत्त आकार मिलाकर, सहजैं गिरह बनाया।
मन भयो पिता मनस भइ माई, सुख-दुख दोनों भाई।
आसा तृस्ना बहनें मिलकर, गृह की सौज बनाई।
मोह भयो पुरुष कुबुद्धि भइ धरनी, पांचो लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटुंबी मिलकर, कलहल बहुत मचाया।
लड़कों के संग लड़की जाई, ताका नाम अधीरी।
बन में बैठी घर घर डोलै, स्वारथ संग खपी री।
पाप पुण्य दोउ पार पड़ोसी, अनंत बासना नाती।
राग द्वेष का बंधन लागा, गिरह बना उतपाती।
कोइ गृह मांड़ि गिरह में बैठा, बैरागी बन बासा।
जन दरिया इक राम भजन बिन,घट घट में घर बासा।
मारवाड़ प्रदेश के जैतारन गांव में संत दरिया साहेब का जन्म संवत 1733 में हुआ था। इनके समसामयिक एक अन्य संत दरिया भी थे जो दरिया साहेब बिहार वाले के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहां आज हम दरिया साहेब मारवाड़ वाले की चर्चा कर रहे हैं। अपने पिता का देहांत हो जाने के कारण ये परगना मेड़ता के रैनगांव में अपने मामा के यहां रहने लगे थे। इन्होंने संवत 1769 में बीकानेर प्रांत के खियानसर गांव के संत प्रेम जी से दीक्षा ग्रहण की थी।
संत दरिया साहेब के अनुयायी इन्हें संत दादूदयाल का अवतार मानते हैं। इनकी वाणियों की संख्या एक हजार कही जाती है। इनकी रचनाओं का एक छोटा सा संग्रह प्रकाशित हुआ है जिससे इनकी विशेषताओं का कुछ पता चलता हे। इनके पदों एवं साखियों के अंतर्गत इनकी साधना संबंधी गहरे अनुभवों के अनेक उदाहरण मिलते हैं। इनका हृदय बहुत ही कोमल और स्वच्छ था। इनकी भाषा पर इनके प्रांत की बोलियों का अधिक प्रभाव नहीं है। अपने पदों में अनेक स्थानों पर इन्होंने स्त्रियों की महत्ता व्यक्त की है।
प्रस्तुत है, संत दरिया साहेब मारवाड़ वाले का एक पद-
संतो क्या गृहस्थ क्या त्यागी।
जेहि देखूं तेहि बाहर भीतर, घट-घट माया लागी।
माटी की भीत पवन का खंबा, गुन अवगुन से छाया।
पांच तत्त आकार मिलाकर, सहजैं गिरह बनाया।
मन भयो पिता मनस भइ माई, सुख-दुख दोनों भाई।
आसा तृस्ना बहनें मिलकर, गृह की सौज बनाई।
मोह भयो पुरुष कुबुद्धि भइ धरनी, पांचो लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटुंबी मिलकर, कलहल बहुत मचाया।
लड़कों के संग लड़की जाई, ताका नाम अधीरी।
बन में बैठी घर घर डोलै, स्वारथ संग खपी री।
पाप पुण्य दोउ पार पड़ोसी, अनंत बासना नाती।
राग द्वेष का बंधन लागा, गिरह बना उतपाती।
कोइ गृह मांड़ि गिरह में बैठा, बैरागी बन बासा।
जन दरिया इक राम भजन बिन,घट घट में घर बासा।
संत दरिया साहब के बारे में जानकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteजैतारन के संत दरिया साहब के बारे में जानकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteबडी त्यागमय वाणी है।
संत का कर्म-क्षेत्र कोनसा रहा?
संतो क्या गृहस्थ क्या त्यागी।
ReplyDeleteजेहि देखूं तेहि बाहर भीतर, घट-घट माया लागी।
सुन्दर पोस्ट संत दरिया साहब के बारे में
इनके बारे में आज पहली बार आपसे जाना ...अच्छा लगा ! आपका धन्यवाद !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है और उनका यह पद भी अच्छा लगा ... हालाँकि कुछ जगहों पर समझ नहीं आई ...
ReplyDeleteलड़कों के संग लड़की जाई, ताका नाम अधीरी।
बन में बैठी घर घर डोलै, स्वारथ संग खपी री।
सुज्ञ जी,
ReplyDeleteइनका कर्मक्षेत्र मारवाड़ ही रहा।
सैल जी,
ReplyDeleteलड़कों से तात्पर्य पांच कर्मेन्द्रियों से और लड़की का तात्पर्य अधीरता से है।
महेन्द्र जी जो काम आप कर रहे हैं वह ब्लॉग जगत में इतिहास रचेगा। इन संतो के बारे में जानकारी और उनके पदों को पढना एक उपलब्धि है मेरे लिए।
ReplyDeleteहां, ‘सैल’ जी की बातों से एक सुझाव देने का मन तो बन ही गया। इनका अर्थ भी साथ-साथ देते चलते तो पाठकों का और भला होता।
महेंद्र जी! आपने तो ऐसे संत कवियों से परिचय करवाया जिनसे सर्वथा अनभिज्ञ था मैं! सचमुच यह परिचय एक पूँजी है हमारे लिए!
ReplyDeleteदादूदयालजी के बारे में सुन रखा है.....
ReplyDeleteआज विस्तार से भी पढ़ा अच्छा लगा......
बहुत अच्छा लगा इस पोस्ट को पढकर, हालाँकि कुछ-कुछ जगहों पर अर्थ समझने में मुश्किल हो रही थी.
ReplyDeletebahut hi durlabh jankariya prastut kar rahen hai anaytha kabeer;soor tulsi se aage badh hi nahi pate pathhak.
ReplyDeleteजेहि देखूं तेहि बाहर भीतर, घट-घट माया लागी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ... आभार महेंद्र जी आपका ... हमारे साथ बांटने के लिए ....
Achhi jankari
ReplyDeleteआप सब ने इस ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साहवर्द्धन किया, इसके लिए आप सब के प्रति हृदय से आभार।
ReplyDeletewaah..... naya drishtikon mila
ReplyDelete[मूल्यांकन से बाहर पोस्ट]
ReplyDeleteसंत दरिया साहब के बारे में जानकर सुखद अनुभूति हुयी
बेहतर होता अगर आपने पाठकों के लिए प्रस्तुत पदों का भावार्थ भी दिया होता.
इतने अवतार..इतने संत...इतने सन्यासी..हमने ग्रहण क्या किया ?
संत दरिया साहब के बारे में जानकारी अच्छी लगी. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
संत दरिया साहब के बारे में अच्छी जानकारी है । धन्यवाद।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर कुछ शांति मिलती है. संत वाणी देने के लिए आभार.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है !--धन्यवाद।
ReplyDeleteयही होता है हमारा कुटुंब कबीला । मन, मनसा, आसा तृष्णा, काम क्रोध मद मत्सर लोभ, सुख दुख वासना अधीरता इन पर काबू पाना कितना दुस्तर है । सुंदर आलेख ।
ReplyDeleteऐसी जानकारियाँ प्राप्त कर यदि लोग केवल वाह -वाही ही न करके अमल करने का संकल्प ले तो बहुत लाभदायक उनके लिए है
ReplyDeleteराजस्थान का नागौर जिला शुरु से संतों व भक्तों की पावनभूमि के रुप में जाना जाता रहा है। इन संतों ने विविध संप्रदायों को अस्तित्व में लाया। इन संप्रदायों में रामस्नेही संप्रदाय बहुत बड़ा अवदान रहा है।रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्त्तक सन्त दरियाव साहब थे। उनका प्रादुर्भाव १८ वीं शताब्दी में हुआ। साधारण जन को लोकभाषा में धर्म के मर्म की बात समझाकर, एक सुत्र में पिरोने में इस संप्रदाय से जुड़े लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन संतों ने हिंदू- मुसलमान, जैन- वैष्णव, द्विज- शूद्र, सगुण-निर्गुण, भक्ति व योग के द्वन्द्व को समाप्त कर एक ऐसे समन्वित सरल मानवीय धर्म की प्रतिष्ठापना की जो सबके लिए सुकर एवं ग्राह्य था। आगे चलकर मानवीय मूल्यों से सम्पन्न इसी धर्म को "रामस्नेही संप्रदाय' की संज्ञा से अभिहित किया गया।रेण- रामस्नेही संप्रदाय में शुरु से ही गुरु- शिष्य की परंपरा चलती आयी है। इनका सिद्धांत संत दरियाजी के सिद्धांतों पर आधारित उनके अनुयायियों ने इनका प्रचार- प्रसार देश के विभिन्न भागों में निरंतर करते रहे। इस संप्रदाय के प्रमुख संतों का उल्लेख इस प्रकार है -
ReplyDeleteदरियाव जी / दरिया साहब नागौर जिले में रामस्नेही संप्रदाय की परंपरा संत दरियावजी से आरंभ होती है। इनका जन्म राजस्थान राज्य के जैतारण गाँव में वि.सं. १७३३ ( ई. १६७६ ) की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, बुधवार को हुआ था। इनके पिता का नाम मानसा तथा माता का नाम गीगा था। ये पठान धुनिया थे।
मुरधर देस भरतखण्ड मांई, जैतारण एक गाँव कहाई।जात पठाण रहत दोय भाई, फतेह मानसा नाम कहाई।।
-- दरियाव महाराज के जन्म चरण की परची
पिता मानसा सही, माता गीगा सो कहिये।बण सुत को घर बुदम जात धुणियां जो लहिये।।
-- दरियाव महाराज की जन्मलीला( ह.ग्रंथ, रा.प्रा.वि.प्रतिष्ठान, जोधपुर )
खुद दरिया साहब ने अपनी बाणी में कहा है -
जो धुनियां तो भी मैं राम तुम्हारा।अधम कमीन जाति मतिहीना, तुम तो हो सिरताज हमारा।।
-- दरिया बाणी पद
प्रेमदास की कृपा से दरिया के सारे जंजाल मिट गये --
सतगुरु दाता मुक्ति का दरिया प्रेमदयाल।किरपा कर चरनों लिया मेट्या सकल जंजाल।।
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राम सनेही जद कहे , रटे राम ही राम
जीवन अर्पण राम को, राम करे सब काम
घट रामायण मे इनका उल्लेख हैं
ReplyDeleteये सतलोक मे चले गए ऐसा वर्णन हैं