पृथ्वीराज रासो और राम-रावण युद्ध
चंदबरदाई अजमेर और दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि और मित्र थे। इनका जन्म 30 सितंबर 1149 को राजस्थान में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान लाहौर मानते हैं। चंदबरदाई भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंदशास्त्र, ज्योतिष, पुराण, नाटक आदि विषयों के विद्वान थे।
शहाबुद्दीन गौरी को पृथ्वीराज ने सोलह बार पराजित किया। सत्रहवें युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ। गौरी उसे बंदी बनाकर गजनी ले गया और उनकी आंखें निकाल ली। चंदबरदाई ने एक दोहा पढ़कर शब्दभेदी बाण के द्वारा पृथ्वीराज के हाथों गौरी का अंत करवाया। सन्1200 ई. में चंदबरदाई का निधन हुआ।
चंदबरदाई हिंदी साहित्य के आदिकाल के सबसे महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इन्हें हिंदी का पहला कवि भी कहा जाता है। पृथ्वीराज रासो चंदबरदाई का प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है। इसमें 69 अध्याय और 10,000 छंद हैं जिनमें पृथ्वीराज चौहान की शौर्यगाथा है। इसके लघु रूपांतर में 19 सर्ग और 3500 छंद हैं जो बीकानेर के अनूप संस्कृत पुस्तकालय में सुरक्षित है। इसी प्रबंध काव्य में चंदबरदाई ने रामकथा के कुछ प्रसंगों का भी वर्णन किया है। हिंदी में रामकथा का यह प्रथम और मौलिक वर्णन माना जाता है। विजयादशमी के अवसर पर प्रस्तुत है चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो में वर्णित राम-रावण युद्ध प्रसंग पर आधारित यह रचना-
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु मच्छीगिरि तारिय।
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु पत्थर जल धारिय।
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु चक चक्की चाहिय।
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु लंका पुर दाहिय।
जब राम चढ़े दल बनरन,
भिरन राम रावन परिय।
भिर कुंभ मेघ राखिस रसन,
सीत काम कारन करिय।
भावार्थ -जब भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की तब मैनाक पर्वत और पत्थर जल पर तैराए जाने लगे। धूलि उड़ने से दिन में ही रात्रि का भ्रम होने के कारण चक्रवाक दंपति एक दूसरे की प्रतीक्षा करने लगे। लंका जलाई जाने लगी और स्वयं राम के साथ इस पृथ्वी पर रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण आदि राक्षसों का युद्ध हुआ। रावण के नाश को रामजी ने सीताजी को पाने का हेतु बनाया।
चंदबरदाई अजमेर और दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि और मित्र थे। इनका जन्म 30 सितंबर 1149 को राजस्थान में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान लाहौर मानते हैं। चंदबरदाई भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंदशास्त्र, ज्योतिष, पुराण, नाटक आदि विषयों के विद्वान थे।
शहाबुद्दीन गौरी को पृथ्वीराज ने सोलह बार पराजित किया। सत्रहवें युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ। गौरी उसे बंदी बनाकर गजनी ले गया और उनकी आंखें निकाल ली। चंदबरदाई ने एक दोहा पढ़कर शब्दभेदी बाण के द्वारा पृथ्वीराज के हाथों गौरी का अंत करवाया। सन्1200 ई. में चंदबरदाई का निधन हुआ।
चंदबरदाई हिंदी साहित्य के आदिकाल के सबसे महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इन्हें हिंदी का पहला कवि भी कहा जाता है। पृथ्वीराज रासो चंदबरदाई का प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है। इसमें 69 अध्याय और 10,000 छंद हैं जिनमें पृथ्वीराज चौहान की शौर्यगाथा है। इसके लघु रूपांतर में 19 सर्ग और 3500 छंद हैं जो बीकानेर के अनूप संस्कृत पुस्तकालय में सुरक्षित है। इसी प्रबंध काव्य में चंदबरदाई ने रामकथा के कुछ प्रसंगों का भी वर्णन किया है। हिंदी में रामकथा का यह प्रथम और मौलिक वर्णन माना जाता है। विजयादशमी के अवसर पर प्रस्तुत है चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो में वर्णित राम-रावण युद्ध प्रसंग पर आधारित यह रचना-
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु मच्छीगिरि तारिय।
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु पत्थर जल धारिय।
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु चक चक्की चाहिय।
जब सु राम चढ़ि लंक,
तब सु लंका पुर दाहिय।
जब राम चढ़े दल बनरन,
भिरन राम रावन परिय।
भिर कुंभ मेघ राखिस रसन,
सीत काम कारन करिय।
भावार्थ -जब भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की तब मैनाक पर्वत और पत्थर जल पर तैराए जाने लगे। धूलि उड़ने से दिन में ही रात्रि का भ्रम होने के कारण चक्रवाक दंपति एक दूसरे की प्रतीक्षा करने लगे। लंका जलाई जाने लगी और स्वयं राम के साथ इस पृथ्वी पर रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण आदि राक्षसों का युद्ध हुआ। रावण के नाश को रामजी ने सीताजी को पाने का हेतु बनाया।
बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक...बधाई.
ReplyDeleteआभार आपका, आपने महाकवि चंद्र बरदाई की याद दिला दी।
ReplyDeleteउस काल में उनके समकक्ष कोई कवि नहिं हुआ।
सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteआपको
दशहरा पर शुभकामनाएँ ..
महेंद्र जी,सामयिक पोस्ट... आभार विस्मृत विभूतियों से साक्षात्कार के लिए!! दशहरे की शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteसुन्दर ज्ञानवर्धक प्रस्तुति...
ReplyDeleteआप सबके प्रति हार्दिक आभार।
ReplyDeleteसुंदर रचना बधाई
ReplyDeleteसामयिक पोस्ट । चंदबरदाई जी को पढने का अवसर दिया आपने । आभार । विजया दशमी की शुभ कामनाएं ।
ReplyDeletemahendra ji 'vijay-dashmi' ki hardik shubhkamnay.ram-charit ke ati sundar chitran se sakshatkar karane v pad ka bhavarth saral shabdon me pratut karne hetu hardik dhaniywad!
ReplyDeleteइतने महान रचियता की पंक्तियाँ पढ़ने का मौका दिया .... महेन्द्रजी
ReplyDeleteआभार
आपके ब्लॉग पर अच्छा साहित्य पढ़ने को मिल जाता है. आपको धन्यवाद
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दशहरा में चलें गाँव की ओर-प्यासा पनघट
Mahendraji,
ReplyDeleteSahi samay per sahi rachna prastut ki hai aapne.
Aapko yah bhi yad dila dun ki Chandrbardaiji ek
jyotshi bhi th.
हिंदी में रामकथा का यह प्रथम और मौलिक वर्णन माना जाता है।
ReplyDeleteइस जानकारी हेतु हार्दिक आभार..........
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत ही सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुति, आभार ।
ReplyDeletebahut khub
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