क्षणिकाएँ


1.
हम तो  
अक्षर हैं
निर्गुण-निरर्थक
तुम्हारी जिह्वा के खिलौने
अब 
यह तुम पर है कि
तुम हमसे
गालियाँ बनाओ
या
गीत




2.
मैंने तो 
सबको दिया
वही धरा
वही गगन
वही जल-अगन-पवन
अब तुम 
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह

                                                    -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

  1. वाह! अद्भुत!!
    कम शब्दों में बहुत ही गंभीर बातें। हमारे प्रयोग करने से ही जहां स्वर्ग हो सकता है, या नर्क।

    ReplyDelete
  2. अब तुम
    चाहे जिस तरह जियो
    बुद्ध की तरह
    या
    बुद्धू की तरह

    बहुत बढ़िया ...

    ReplyDelete
  3. बहुत सुदर क्षणिकाएं, आभार

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुंदर और सारगर्भित क्षणिकाएं, आभार....

    ReplyDelete
  5. क्षणिकाओं के माध्यम से गम्भीर चिंतन ,आत्म-मंथन का सहज संदेश.

    ReplyDelete
  6. सबको दिया
    वही धरा
    वही गगन
    वही जल-अगन-पवन
    अब तुम
    चाहे जिस तरह जियो

    बहुत सुदर क्षणिकाएं,गम्भीर संदेश

    ReplyDelete
  7. अर्थ पूर्ण सौदेश्य विचार कणिकाएं .सुन्दर मनोहर .आत्म विश्लेषण और आत्मालोचन को उकसाती सी .

    ReplyDelete
  8. गंभीर और सीधी सीधी बात.

    सुंदर प्रस्तुति. आभार.

    ReplyDelete
  9. एक और अच्छी प्रस्तुति ||
    आभार ||

    ReplyDelete
  10. अब तुम
    चाहे जिस तरह जियो
    बुद्ध की तरह
    या
    बुद्धू की तरह

    ye bhi khoob rahi ...
    sunder rachna ...

    ReplyDelete
  11. सुन्दर सारगर्भित रचना , सुना है बुद्ध को नक़ल करने वाले को बुद्धू कहा जाने लगा था .

    ReplyDelete
  12. गागर में सागर !

    ReplyDelete
  13. देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर …………दोनो ही लाजवाब्।

    ReplyDelete
  14. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    ReplyDelete
  15. बहुत अच्छी बात कही आपने...शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  16. खूबसूरत क्षनिकाएं. सार्थक रचना.

    ReplyDelete
  17. great philosophy hidden in the lovely lines...

    ReplyDelete
  18. व्यक्ति की सार्थकता उसकी रहनी में है कि वह कैसा रहता है. बहुत सुंदर क्षणिकाएँ महेंद्र जी.

    ReplyDelete
  19. अब तुम
    चाहे जिस तरह जियो
    बुद्ध की तरह
    या
    बुद्धू की तरह

    दोनों ही क्षणिकाएँ लाजवाब!

    ReplyDelete
  20. सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !

    ReplyDelete
  21. बहुत खूब! लाज़वाब क्षणिकाएं ....

    ReplyDelete
  22. गालियाँ बनाओ या गीत....

    वाह... आदरणीय महेंद्र भईया....
    सशक्त क्षणिकाएं हैं....
    सादर.

    ReplyDelete
  23. कम शब्दों में गंभीर सारगर्भित बहुत सुंदर क्षणिकायें.......

    मेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........

    नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
    देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
    इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
    इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,

    अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने....
    मुझे अपार खुशी होगी........धन्यबाद....

    ReplyDelete
  24. शब्दों कको अपव्यय से बचाकर एक कविता की रचना आपसे सीखता हूँ.. चाहे किसी भी विधा में लिखें आप शब्दों की गरिमा बरकरार रहती है!!

    ReplyDelete
  25. वाह महेंद्र जी ... क्या बात कह दी है ... ये सच है जीवन को कैसे जीना ये अपने आप पर ही निर्भर है ... कमाल का लिखा है ...

    ReplyDelete
  26. महेन्द्र जी नम्स्कार , कम शब्द पर गम्भीर भाव्।

    ReplyDelete
  27. आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  28. सुंदर और सारगर्भित क्षणिकाएं...आभार....

    ReplyDelete
  29. बहुत सुन्दर लिखा है |
    आशा

    ReplyDelete
  30. BAHUT SATEEK BAT KAHI HAIN .AABHAR

    ReplyDelete
  31. हम तो
    अक्षर हैं
    निर्गुण-निरर्थक
    तुम्हारी जिह्वा के खिलौने
    अब
    यह तुम पर है कि
    तुम हमसे
    गालियाँ बनाओ
    या
    गीत...kamaal kee kshanika

    ReplyDelete
  32. laajawab lekhan .
    gagar me sagar .

    ReplyDelete
  33. दोनो ही क्षणिकाएं, बहूत ही सुंदर है ...
    और अच्छे संदेश देती है...

    ReplyDelete