शुक्र का पारगमन- एक दुर्लभ घटना



                                   ‘भोर का तारा‘ या ‘सांध्य तारा‘ के रूप में सदियों से परिचित शुक्र ग्रह अर्थात ‘सुकवा‘ 6 जून, 2012 को एक विचित्र हरकत करने जा रहा है। आम तौर पर पूर्वी या पश्चिमी आकाश में दिखाई देने वाला यह ग्रह 6 जून को मध्य आकाश में दिखाई देगा, वह भी दिन में ! अन्य दिनों में हम शुक्र के सूर्य से प्रकाशित भाग को चमकता हुआ देखते हैं लेकिन उस दिन शुक्र का अंधेरा भाग हमारी ओर होगा, फिर भी उसे हम ‘देख‘ सकेंगे। जब सूर्य शुक्र के सामने से गुजरेगा तो शुक्र हमें सूर्य पर छोटे-से काले वृत्त के रूप में दिखाई देगा। एक अद्भुत दृश्य होगा वह-जैसे सूरज के चेहरे पर काजल का सरकता हुआ टीका।

                                         खगोल शास्त्र की शब्दावली में इस घटना को ‘शुक्र का पारगमन‘ कहते हैं। दुर्लभ कही जाने वाली यह घटना सौरमंडल के करोड़ों वर्षों के इतिहास में लाखों बार घट चुकी है लेकिन मनुष्य जाति इसे केवल छह बार ही देख पाई है। हम सौभाग्यशाली हैं कि इक्कीसवीं सदी के इस दूसरे और अंतिम शुक्र पारगमन को देख सकेंगे। बीसवीं सदी में ऐसा एक बार भी नहीं हुआ। दरअसल शुक्र पारगमन गण्तिीय गणना के अनुसार कभी 105 और कभी  121 वर्ष 6 माह बाद घटित होता है लेकिन आठ वर्षों के अंतराल में दो बार। पिछली बार इस घटना को 6 जून, 2004 को देखा गया ।

                                    शुक्र पारगमन के बारे में सबसे पहले जर्मन गणितज्ञ जोन्स केपलर ने बताया कि 1631 ई. में शुक्र ग्रह सूर्य के सामने से गुजरेगा और इसे पृथ्वी से देखा जा सकता है। किंतु इस घटना को न तो वह स्वयं देख सका न कोई और। पारगमन के एक वर्ष पूर्व 1630 ई. में केपलर का देहांत हो गया। इनकी गणितीय गणना में कुछ त्रुटि हो जाने के कारण वैज्ञानिक भी सही समय पर शुक्र-संक्रमण नहीं देख सके।
                                        
                                      आठ वर्ष बाद दुहराई जाने वाली इस घटना को लेकर अंग्रेज खगोल शास्त्री जेरेमिया होराक्स काफी उत्सुक था और पहले से सतर्क भी। उसने 4 दिसंबर 1639 को शुक्र पारगमन को लगभग 7 घंटे तक देखा। किसी मनुष्य द्वारा शुक्र पारगमन देखे जाने का यह पहला अवसर था। उसके बाद 6 जून 1761, 3 जून 1769, 9 दिसम्बर 1874, 6 दिसम्बर 1882 और 8 जून 2004 के शुक्र पारगमन को अनेक वैज्ञानिकों और खगोल प्रेमियों ने देखा।

                                       चूंकि शुक्र पारगमन एक दुर्लभ घटना है इसलिए दुनियादारी के सब काम छोड़कर खगोलशास्त्री किसी भी तरह उसे देखना चाहते हैं। इसी संदर्भ में एक रोचक और मार्मिक प्रसंग उल्लेखनीय है। सन् 1761 ई. का शुक्र पारगमन भारत में अच्छी तरह देखा जा सकता था। एक फ्रांसीसी खगोलशास्त्री जी. लेजेन्तिल इसे देखने के लिए पानी के जहाज से पांडिचेरी के लिए रवाना हुआ। जब वह पांडिचेरी पहुंचा तो ब्रिटिश सैनिकों ने उसे गिरफतार कर लिया क्योंकि उस समय ब्रिटेन और फ्रांस के बीच युद्ध जारी था। लेजेन्तिल शुक्र पारगमन नहीं देख सका। 1769 ई. के अगले पारगमन को देखने के लिए वह 8 वर्ष भारत में रहा। 3 जून 1769 ई. के दिन लेजेन्तिल को फिर निराश होना पड़ा। बादल छाए रहने के कारण उस दिन सूर्य दिखा ही नहीं। हताश लेजेन्तिल पेरिस के लिए रवाना हुआ। 1874 ई. का अगला पारगमन देखना अब उसके जीवन में संभव नहीं था। दुर्भाग्य ने अभी उसका पीछा नहीं छोड़ा था। रास्ते में दो बार उसका जहाज क्षतिग्रस्त हुआ। जब वह पेरिस पहुंचा तो उसके परिजन उसे मृत समझकर उसकी सम्पत्ति का बंटवारा करने में लगे थे।

                                   1761 ई. के शुक्र पारगमन का अवलोकन रूसी वैज्ञानिक मिखाइल लोमोनोसोव ने सूक्ष्मता से किया और पहली बार दुनिया को बताया कि शुक्र ग्रह पर वायुमंडल भी है। इस पारगमन को दुनिया के हजारों वैज्ञानिकों ने देखा लेकिन शुक्र पर वायुमंडल होने की जानकारी किसी को नहीं हुई। आश्चर्य की बात यह थी कि लोमोनोसोव ने इस घटना का अवलोकन किसी वेधशाला से नहीं बल्कि अपने कमरे की खिड़की से अपनी ही बनाई दूरबीन से किया था।

                                       शुक्र पारगमन की घटना ने वैज्ञानिकों को सदैव नई खोजों के लिए प्रेरित किया है। 200 साल पहले पृथ्वी से सूर्य की दूरी जानना वैज्ञानिकों के लिए एक समस्या थी। जेम्स ग्रेगोरी ने सुझाव दिया कि शुक्र पारगमन की घटना से पृथ्वी से सूर्य की दूरी का परिकलन किया जा सकता है। एडमंड हेली ने 1874 और 1882 में शुक्र पारगमन के समय प्रेक्षित आकड़ों से सूर्य की दूरी का परिकलन करने का प्रयास किया था। प्राप्त परिणाम बहुत हद तक सही था।

                                        शुक्र पारगमन हमारे लिए भले ही अद्भुत घटना हो लेकिन अंतरिक्ष के संदर्भ में यह एक सामान्य घटना है। यह लगभग वेसी ही घटना है जैसे सूर्यग्रहण। सूर्यग्रहण के समय सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा एक सीध में होते हैं और चन्द्रमा बीच में होता है। चन्द्रमा की ओट में हो जाने के कारण सूर्य का आंशिक या कभी-कभी पूरा भाग ढंक जाता है। शुक्र पारगमन के समय सूर्य, शुक्र और पृथ्वी एक सीध में होते हैं, शुक्र बीच में होता है। इस स्थिति में शुक्र अपने दृश्य आकार के बराबर का सूर्य का भाग ढंक लेता है। यद्यपि सूर्य की तुलना में शुक्र का दृश्य आकार 1500 गुना छोटा है- एक बड़े तरबूज के सामने मटर के दाने जैसा।

                                    6 जून 2012 को होने वाला शुक्र पारगमन भारत में पूर्वाह्न लगभग 5 बजकर 20 मिनट पर प्ररंभ होगा और लगभग 10 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगा। सूर्य की चकती पर शुक्र ग्रह छोटी सी काली बिंदी के रूप में एक चापकर्ण बनाते हुए गुजरेगा। यह नजारा लगभग 5 घंटे तक देखा जा सकेगा।
   
                                        शुक्र पारगमन हमें हर वर्ष दिखाई देता यदि शुक्र और पृथ्वी के परिक्रमा पथ एक ही सममतल पर होते किंतु ऐसा नहीं है। शुक्र और पृथ्वी के परिक्रमा पथों के मध्य 3 अंश का झुकाव है। यह झुकाव और शुक्र तथा पृथ्वी की गतियां शुक्र पारगमन को दुर्लभ बनाती हैं।
                                    
                                           6 जून को प्रकृति की इस अनोखी घटना को मानकीकृत फिल्टर से अवश्य देखें। शुक्र को जब आप सूर्य के सामने से गुजरता हुआ देखें तो शुक्र के साहस को सराहिए मत क्योंकि वह हमेशा की तरह सूर्य से लगभग 10 करोड़ कि.मी. दूर होगा। अंत में एक बात और, यदि 6 जून को दिन भर बादल छाए रहें तो इस  शताब्दी की तीन-चार पीढ़ी शुक्र पारगमन को नहीं देख पाएगी क्योंकि अगला शुक्र पारगमन सन् 2117 ई. में घटित होगा।

                                                                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

25 comments:

  1. शुक्र पारगमन के बारे में बेहतरीन जानकारी के लिये
    आभार,,,,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

    ReplyDelete
  2. आपकी इस विशेषज्ञता से परिचित न था। आपने बहुत ही काम की जानकारी दी है। अब तो छह जून का शिद्दत से इंतज़ार है।

    ReplyDelete
  3. ज्ञानवर्धक ,विद्वतापूर्ण रोचक व सरल आलेख के लिए ,बहुत -२ आभार वर्मा जी /

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन जानकारी के लिये बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  5. विस्तार से अच्छी जानकारी दी ...आभार

    ReplyDelete
  6. अच्छी जानकारी मिली ,6 जून की प्रतीक्षा रहेगी.,देखेंगे जब यहाँ अमेरिका के पश्चिमी भाग में यह संयोग घटित होगा .
    आभार !

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छी जानकारी.....
    अब तो बस इन्तेज़ार है....
    शुक्रिया

    अनु

    ReplyDelete
  8. ‘भोर का तारा‘ या ‘सांध्य तारा‘ के रूप में सदियों से परिचित शुक्र ग्रह अर्थात ‘सुकवा‘ 6 जून, 2012 को एक विचित्र हरकत करने जा रहा है। आम तौर पर पूर्वी या पश्चिमी आकाश में दिखाई देने वाला यह ग्रह 6 जून को मध्य आकाश में दिखाई देगा, वह भी दिन में ! अन्य दिनों में हम शुक्र के सूर्य से प्रकाशित भाग को चमकता हुआ देखते हैं लेकिन उस दिन शुक्र का अंधेरा भाग हमारी ओर होगा, फिर भी उसे हम ‘देख‘ सकेंगे। जब सूर्य शुक्र के सामने से गुजरेगा तो शुक्र हमें सूर्य पर छोटे-से काले वृत्त के रूप में दिखाई देगा। एक अद्भुत दृश्य होगा वह-जैसे सूरज के चेहरे पर काजल का सरकता हुआ टीका।
    भाषा शैली और कथ्य और तथ्य दोनों ही द्रष्टि से एक उत्तम आलेख अद्यतन जानकारी मुहैया करवाई है आपने साहित्यिक अंदाज़ में .

    ReplyDelete
  9. रोचक जानकारी..आभार

    ReplyDelete
  10. महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
  11. thanks for the information sir
    ujjain mein vedhshala mein ise dikhaya jayega...main jaunga aur fir photos upload karunga

    ReplyDelete
  12. बेहतरीन जानकारी ... ६ जून का दिन खास है इस सदी के लोगों के लिए ... ये नज़ारा दुबारा १०५ वर्ष बाद आने वाला है ...

    ReplyDelete
  13. बहुत रोचक जानकारी दी है...आभार

    ReplyDelete
  14. बेहतरीन जानकारी के लिये बहुत बहुत बधाई.....वर्मा जी

    ReplyDelete
  15. रोचक जानकारी सर... ६ जून का इन्तजार बेसब्री से है बस ये बदलियाँ उत्पात न करें.... :)))
    सादर...

    ReplyDelete
  16. आपके आलेख से जानकारी बढ़ी है. आपका आभार.

    ReplyDelete
  17. ज्ञानवर्धक एवं बेहतरीन जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

    ReplyDelete
  18. रोचक जानकारी....
    अपुन ये अद्भुत नजारा देखने से वंचित रह गये...

    ReplyDelete
  19. लेज़न्तिल वाली बात से लगता है कि मुहावरा बदला जा सकता है 'तारे तारे पर लिखा है देखने वाले का नाम' :)

    रोचक जानकारी, दुर्भाग्य से ये मौक़ा हमने मिस कर दिया, जब तक होश आया आदित्य नारायण प्रखर रूप से चमक रहे थे :(

    ReplyDelete
  20. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
    आपको हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  21. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
    आपको हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  22. बहुत विस्तृत जानकारी मिली इस आलेख से। विज्ञान प्रसार नामक वेबसाइट से लाइव टेलीकास्ट देखने का प्रयास किया था लेकिन अनुपलब्ध मिला। अब १०५ वर्षों बाद घटेगी ये घटना। शायद हमारे नाती पोते देख सकेंगे।

    ReplyDelete
  23. aadarniy sir
    is aalekh dwaraa kaffi mahtv purn jaan kaari mili.der se aapke post par aai agar pahle aa jaati to ye durlabh najaara jaroor dekh leti-------bahut bahut hi behtreen v gyan-vardhak aalekh
    sadar naman
    poonam

    ReplyDelete