सन् 1905 में एक माँ ने जिस बालक को जन्म दिया, वह हिंदी साहित्याकाश में नक्षत्र बन कर चमका। उस बालक को हिंदी और हिंदी साहित्य का ककहरा उसकी माँ ने ही सिखाया। माँ स्वयं एक भावप्रवण कवयित्री थीं। काव्य-सृजन का मर्म समझने और अपने बालक को कविता का संस्कार देने वाली उस माँ का नाम था- राजरानी देवी।
यह माना जाता है कि जिस प्रकार पुरुष कवियों में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता का एक नया युग उपस्थित किया था उसी प्रकार राजरानी देवी ने महिला कवियों में एक नए संसार की सृष्टि की थी।
राजरानी देवी का जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के पिपरिया गांव में हुआ था। 12 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह नरसिंहपुर के लक्ष्मीप्रसाद जी से हुआ जो बाद में डिप्टी कलेक्टर हुए। प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रामकुमार वर्मा इन्हीं के पुत्र थे।
प्रस्तुत है, राजरानी देवी की एक लंबी रचना के अंश जो एक शताब्दी बाद भी समाज के लिए प्रेरणाप्रद है-
नव-हरिद्र-रंजित अंग में, सर्वदा सुख में तुम्ही लवलीन हो,
ग्रंथि-बंधन के अनूप प्रसंग में, दूसरे के ही सदा अधीन हो।
बस तुम्हारे हेतु इस संसार में, पथ प्रदर्शक अब न होना चाहिए,
सोच लो संसार के कान्तार में, बद्ध होकर यदि जिए तो क्या जिए।
कर्म के स्वच्छन्य सुखमय क्षेत्र में, किंकिणी के साथ भी तलवार हो,
शौर्य हो चंचल तुम्हारे नेत्र में, सरलता का अंग पर मृदु भार हो।
सुखद पतिव्रत धर्म-रथ पर तुम चढ़ो, बुद्धि ही चंचल अनूप तरंग हांे,
दिव्य जीवन के समर में तुम लढ़ो, शत्रु के प्रण शीघ्र ही सब भंग हों।
हार पहनो तो विजय का हार हो, दुंदुभी यश की दिगंतों में बजे,
हार हो तो बस यही व्यवहार हो, तन चिता पर नाश होने को सजे।
मुक्त फणियों के सदृश कच-जाल हों, कामियों को शीघ्र डसने के लिए,
अरुणिमायुत हाथ उनके काल हों, सत्य का अस्तित्व रखने के लिए।
सार्थक और जानकारी से भरी पोस्ट पढवाने के लिए आभार .....
ReplyDelete.सार्थक जानकारी भरी पोस्ट आभार क्या हैदराबाद आतंकी हमला भारत की पक्षपात भरी नीति का परिणाम है ?नहीं ये ईर्ष्या की कार्यवाही . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeleteसच में प्रेरणादायी भाव...... आभार साझा करने का
ReplyDeleteसोच लो संसार के कान्तार में, बद्ध होकर यदि जिए तो क्या जिए।
ReplyDeleteप्रेरक और सार्थक पोस्ट ...आभार साझा करने के लिए
बहुत आभार...ऐसे आलेखों की जरुरत है-जानकारी देते...प्रेरणादायक!!
ReplyDeleteसुन्दरप्रस्तुति
ReplyDeleteपरिचय मिला ।
आभार भाई जी -
सादर नमन --
sundar nd sargarbhit prastuti....
ReplyDeleteहार पहनो तो विजय का हार हो, दुंदुभी यश की दिगंतों में बजे,
ReplyDeleteहार हो तो बस यही व्यवहार हो, तन चिता पर नाश होने को सजे। ..
प्रेरणा भाव लिए ... प्रेरक रचना ... शुक्रिया इस साझा करने के लिए ...
हार पहनो तो विजय का हार हो, दुंदुभी यश की दिगंतों में बजे,
ReplyDeleteहार हो तो बस यही व्यवहार हो, तन चिता पर नाश होने को सजे।
प्रणाम भाई साहब आपके इस सुन्दर प्रेरणादायी पोस्ट के लिए साथ ही माता राजरानी जी को प्रणाम जिन्होंने रामकुमार वर्मा जैसे कथाकार को जन्म दिया ..
सार्थक सृजन
ReplyDeleteअनमोल कृति से परिचय कराने आभार
ReplyDeleteराजरानी देवी को जानना व उनकी रचना को पढ़ना हमारी विरासत पर गर्व की अनुभूति कराता है.
ReplyDeleteबहुत प्रेरक रचना...
ReplyDeleteहार पहनो तो विजय का हार हो, दुंदुभी यश की दिगंतों में बजे,
हार हो तो बस यही व्यवहार हो, तन चिता पर नाश होने को सजे
रचना और रचनाकार से परिचय के लिए धन्यवाद.
प्रेरक व्यक्तित्व का परिचय देने का आभार ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,
ReplyDeleteजानकारी से भरी पोस्ट पढवाने के लिए आभार
ReplyDelete