अब न कहना

सबने उतना पाया जिसका हिस्सा जितना, क्या मालूम,
मेरे भीतर
कुछ  मेरा है या  सब उसका, क्या मालूम ।

कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक,
शायद यूँ सब करते हैं पत्थर का सिजदा क्या मालूम ।

जीवन के उलझे-से ताने-बाने बिखरे इधर-उधर,

एक लबादा बुन पाता मैं काश खुरदरा क्या मालूम ।

झूठ हमेशा कहने वाला बोला - मैं तो झूठा हूँ,
उसके कहने में सच कितना झूठा कितना क्या मालूम ।

दानिशमंदी की परिभाषा जाने किसने यूँ लिख दी,
साजि़श कर के अपना उल्लू सीधा करना, क्या मालूम ।

फ़सल उगा सब को जीवन दूँ, मुझ भूखे को मौत मिली,
कब देंगे वे देशभक्त का मुझको तमग़ा क्या मालूम ।

मैंने तो इंसान बना कर भेजा सब को धरती पर,
जाति-धर्म में किसने बाँटा, अब न कहना क्या मालूम ।
 

                                                                                -महेन्द्र वर्मा

10 comments:

  1. बहुत ही शानदार रचना प्रस्तुत की है आपने। अच्छी रचना के लिए आपका आभार।

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  2. कि़स्मत का आईना बेशक होता है बेहद नाज़ुक,
    शायद यूँ सब करते हैं पत्थर का सिजदा क्या मालूम ।
    झूठ हमेशा कहने वाला बोला - मैं तो झूठा हूँ,
    उसके कहने में सच कितना झूठा कितना क्या मालूम ।

    बात कहने की निराली शैली. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.

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  3. मैंने तो इंसान बना कर भेजा सब को धरती पर,
    जाति-धर्म में किसने बाँटा, अब न कहना क्या मालूम ।
    ...बहुत खूब...सच को आइना दिखाता बहुत ख़ूबसूरत और सटीक चिंतन...बहुत सुन्दर

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  4. अर्थपूर्ण बात लिए अभिव्यक्ति ... बेहतरीन पंक्तियाँ हैं

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  5. फ़सल उगा सब को जीवन दूँ, मुझ भूखे को मौत मिली,
    कब देंगे वे देशभक्त का मुझको तमग़ा क्या मालूम ...
    वैसे तो हर शेर अर्थपूर्ण है ... अपनी बात को प्रखर तरीके से रखता हुआ ... और ये शेर तो ख़ास कर ... बहुत लाजवाब ....

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  6. दिखाया जो आपने आईना क्या मालूम भी मालूम हुआ । बेमिसाल ....

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  7. क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....

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  8. lovely poem,very heart touching lines ,I appreciate your to your poems..

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  9. दिल को छू लेने वाली बेहद भाव पूर्ण पंक्तियाँ .

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  10. मेरे भीतर कुछ मेरा है या सब उसका, क्या मालूम । बहुत खूब आदरणीय

    किसानों के मर्म को भी बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया आपने सादर नमन

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