तूफ़ाँ बनकर वक़्त उमड़ उठता है अक्सर,
खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर ।
उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं,
मेरी साँसों का हिसाब रखता है अक्सर ।
वक़्त ने गहरे हर्फ़ उकेरे जिस किताब पर,
उस के सफ़्हे वो छू कर पढ़ता है अक्सर ।
सहरा हो या शहर तपन है राहों में,
जख़्मी पाँवों से चलना पड़ता है अक्सर ।
अपने हिस्से की बूँदों को ढूँढ रहा हूँ,
दरिया का ही नाम लिखा दिखता है अक्सर ।
-महेन्द्र वर्मा
खोना ही है जो कुछ भी मिलता है अक्सर ।
उसके माथे पर कुछ शिकनें-सी दिखती हैं,
मेरी साँसों का हिसाब रखता है अक्सर ।
वक़्त ने गहरे हर्फ़ उकेरे जिस किताब पर,
उस के सफ़्हे वो छू कर पढ़ता है अक्सर ।
सहरा हो या शहर तपन है राहों में,
जख़्मी पाँवों से चलना पड़ता है अक्सर ।
अपने हिस्से की बूँदों को ढूँढ रहा हूँ,
दरिया का ही नाम लिखा दिखता है अक्सर ।
-महेन्द्र वर्मा
http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/02/blog-post_28.html
ReplyDeleteदिनांक 02/03/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
दिखा भी तो दरिया नाम ही केवल.
ReplyDeleteअपने हिस्से की बूँदों को ढूँढ रहा हूँ,
दरिया का ही नाम लिखा दिखता है अक्सर ।
ये पंक्तियां टीस छोड़ जाती हैं.
अपने हिस्से की बूँदों को ढूँढ रहा हूँ,
ReplyDeleteदरिया का ही नाम लिखा दिखता है अक्सर ।
>>>वाह...लाज़वाब। बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
अपने हिस्से की बूँदों को ढूँढ रहा हूँ,
ReplyDeleteदरिया का ही नाम लिखा दिखता है अक्सर ।
बहुत खूबसूरत
वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
bahut khoob ... lajawab gazal hai ... har sher kamaal ka ...
ReplyDeleteसहरा हो या शहर तपन है राहों में,
ReplyDeleteजख़्मी पाँवों से चलना पड़ता है अक्सर ।
अपने हिस्से की बूँदों को ढूँढ रहा हूँ,
दरिया का ही नाम लिखा दिखता है अक्सर ।
बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय
साथॆक प्रस्तुतिकरण......
ReplyDeleteमेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....
सहरा हो या शहर तपन है राहों में,
ReplyDeleteजख़्मी पाँवों से चलना पड़ता है अक्सर ।
खूबसूरत बहुत शानदार ग़ज़ल
पढ़ना अच्छा लग रहा है ।
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