देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन
मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन।
निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल
इतराता सा वह चला, लेकर रंग गुलाल।
कलियों के संकोच से, फागुन हुआ अधीर
वन-उपवन के भाल पर, मलता गया अबीर।
फागुन आता देखकर, उपवन हुआ निहाल,
अपने तन पर लेपता, केसर और गुलाल।
तन हो गया पलाश-सा, मन महुए का फूल,
फिर फगवा की धूम है, फिर रंगों की धूल।
ढोल मंजीरे बज रहे, उड़े अबीर गुलाल,
रंगों ने ऊधम किया, बहकी सबकी चाल।
कोयल कूके कान्हड़ा, भँवरे भैरव राग,
गली-गली में गूँजता, एक ताल में फाग।
रंगों की बारिश हुई, आँधी चली गुलाल,
मन भर होली खेलिए, मन न रहे मलाल।
उजली-उजली रात में, किसने गाया फाग,
चाँद छुपाता फिर रहा, अपने तन के दाग।
टेसू पर उसने किया, बंकिम दृष्टि निपात
लाल लाज से हो गया, वसन हीन था गात।
अमराई की छांव में, फागुन छेड़े गीत
बेचारे बौरा गए, गात हो गए पीत।
फागुन और बसंत मिल, करे हास-परिहास
उनको हंसता देखकर, पतझर हुआ उदास।
पूनम फागुन से मिली, बोली नेह लुटाय
और माह फीके लगे, तेरा रंग सुहाय।
नेह-आस-विश्वास से, हुए कलुष सब दूर,
भीगे तन-मन-आत्मा, होली का दस्तूर।
आतंकी फागुन हुआ, मौसम था मुस्तैद
आनन-फानन दे दिया, एक वर्ष की क़ैद।
शुभकामनाएं
- महेन्द्र वर्मा
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 1 मार्च 2018 को प्रकाशनार्थ 958 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर फागुन गीत ! होली के सभी रंग और सारी मस्ती समाई हुई है इस गीत में. महेंद्र वर्मा जी, आपने तो होली के एक दिन पहले ही हम पर होली का ख़ुमार चढ़ा दिया, अब उसे उतारने के लिए कल की धमाचौकड़ी के बाद कोई जतन अवश्य कीजिएगा.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह्ह्ह....बेहद उम्दा👌
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह!!!!!! बहुत सुन्दर और सुकोमल भी!!! बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteशुभकामनाएं स्वीकारें, सपरिवार
ReplyDeleteबहुत लाजवाब.....
ReplyDeleteवाह!!!
होली की शुभकामनाएं...
बहुत सुंदर रंग बिरंगे दोहे !
ReplyDeleteहोली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आपके दोहों में भरे हुए रंगों की गिनती होली के रंगों से कहीं अधिक है.
ReplyDeleteनेह-आस-विश्वास से, हुए कलुष सब दूर,
भीगे तन-मन-आत्मा, होली का दस्तूर।
यही तो असली होली है.
होली और प्राकृति के सुंदर रंग लिए हर दोहा लाजवाब है ... अनुपम दृश्य खड़ा कर रहा है रंग का ... मस्ती भरे इस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
ReplyDeleteअहा ! अति सुंदर ।
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