बाँसुरी हो गई







 इल्म की चाह ही बंदगी हो गई,
अक्षरों की छुअन आरती हो गई ।

सामना भी हुआ तो दुआ न सलाम,
अजनबी की तरह ज़िंदगी हो गई ।

प्यास ही प्यास है रेत ही रेत भी,
उम्र की शाम सूखी नदी हो गई ।

चुप रहूँ तो कहें बोलते क्यों नहीं,
बदज़ुबानी मगर,आह की,हो गई ।

खोखली है मगर छेड़ती सुर मधुर,
ज़िंदगी भी गज़ब बाँसुरी हो गई ।

-महेन्द्र वर्मा   

9 comments:

  1. आपकी लेखनी से बेहद प्रभावित हुआ...ये रचना बहुत अच्छी लगी तो बार बार पढ़ी गयी.
    आपके ब्लॉग तक पहली बार पहुंचना हुआ...
    आप भी आइयेगा मेरे ब्लॉग तक..ख़ुशी होगी नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/10/2018 की बुलेटिन, 'स्टेंड बाई' मोड और रिश्ते - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सामना भी हुआ तो दुआ न सलाम,
    अजनबी की तरह ज़िंदगी हो गई ।

    क्या कहने...ग़ज़ल की सादगी मन भा गई.

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  4. खोखली है मगर छेड़ती सुर मधुर,
    ज़िंदगी भी गज़ब बाँसुरी हो गई ।सत्य को अभिव्यक्त
    करती है आपकी रचना 🙏

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  5. खोखली है मगर छेड़ती सुर मधुर,
    ज़िंदगी भी गज़ब बाँसुरी हो गई ...
    बहुत दूर तक जाने वाला शेर ... जिंदगी मधुर रहे और क्या बात है इससे बड़ी ...
    हर शेर लाजवाब है ग़ज़ल का देवेन्द्र जी ... बहुत उम्दा ....

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  6. खोखली है मगर छेड़ती सुर मधुर,
    ज़िंदगी भी गज़ब बाँसुरी हो गई ।
    बेहद खूबसूरत बात कही आपने , यूं तो ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है मगर ये शेर....,मन को छू गया ।

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  7. Har khwahish ki khwahish yahi
    Kyu Puri adhoori ho gayi
    ,,,,,,,,,,,,,Kotishah pranam

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  8. बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
    ज़िंदगी भी गज़ब बाँसुरी हो गई ।
    बेहद खूबसूरत ..... ग़ज़ल का ये शेर बेहद उम्दा है

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