जल से काया शुद्ध हो, सत्य करे मन शुद्ध,
ज्ञान शुद्ध हो तर्क से, कहते सभी प्रबुद्ध।
धरती मेरा गाँव है, मानव मेरा मीत,
सारा जग परिवार है, गाएँ सब मिल गीत।
ज्ञानी होते हैं सदा, शांत-धीर-गंभीर,
जहाँ नदी में गहनता, जल अति थिर अरु धीर।
जीवन क्या है जानिए, ना शह है ना मात,
मरण टले कुछ देर तक, बस इतनी सी बात।
कभी-कभी अविवेक से, हो जाता अन्याय,
अंतर की आवाज से, होता सच्चा न्याय।
तीन व्यक्तियों का सदा, करिए नित सम्मान,
मात-पिता-गुरु पूज्य हैं, सब से बड़े महान।
यों समझें अज्ञान को, जैसे मन की रात,
जिसमें न तो चाँद है, न तारे मुसकात।
जीवन क्या है जानिए, ना शह है ना मात,मरण टले कुछ देर तक, बस इतनी सी बात''
ReplyDeleteक्या बात है ! बहुत खूब
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ReplyDeleteजीवन क्या है जानिए, ना शह है ना मात,मरण टले कुछ देर तक, बस इतनी सी बात।बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआदरणीय महेंद्र जी!
भारतीय साहित्य एवं संस्कृति
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteअति सुन्दर दोहे।
ReplyDeleteSabhi dohe bahut achchhe aur arthpuurn hain.
ReplyDeletegood dohe
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