शाश्वत शिल्प
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धरती
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बरगद माँगे छाँव
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सूरज सोया रात भर, सुबह गया वह जाग, बस्ती-बस्ती घूमकर, घर-घर बाँटे आग। भरी दुपहरी सूर्य ने, खेला ऐसा दाँव, पानी प्यासा हो गया, बरगद माँ...
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जाने किसकी नज़र लग गई
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कभी छलकती रहती थीं बूँदें अमृत की धरती पर, दहशत का जंगल उग आया कैसे अपनी धरती पर । सभी मुसाफिर इस सराय के आते-जाते रहते हैं, आस नहीं...
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