शाश्वत शिल्प

विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति

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तीन मणिकाएं

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1. तुम्हारा झूठ उसके लिए सच है मेरा सच किसी और के लिए झूठ है ऐसा तो होना ही था क्योंकि सच और झूठ को तौलने वाला तराजू अलग-अलग है हम सबका...
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विमोचन

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छ.ग. प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, ज़िला इकाई, बेमेतरा के तत्वावधान में मेरा काव्य संग्रह ‘ ‘ श्वासों का अनुप्रास’ ’ का विमोचन देश के स...
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होली का दस्तूर

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 देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन। निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल इतराता सा वह चला, लेकर ...
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फूल हों ख़ुशबू रहे

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दर रहे या ना रहे छाजन रहे, फूल हों ख़ुशबू रहे आँगन रहे । फ़िक्र ग़म की क्यों, ख़ुशी से यूँ अगर, आँसुओं से भीगता दामन रहे । झाँक...
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ग्रेगोरियन कैलेण्डर

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                                                                                                                                तिथि, म...
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पूजा से पावन

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                 जाने -पहचाने  बरसों के  फिर  भी   वे अनजान लगे,                  महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे ।    ...
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तितलियों का ज़िक्र हो

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प्यार का, अहसास का, ख़ामोशियों का ज़िक्र हो, महफ़िलों में अब ज़रा तन्हाइयों का ज़िक्र हो। मीर, ग़ालिब की ग़ज़ल या, जिगर के कुछ शे‘र ह...
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ऊबते देखे गए

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भीड़ में अस्तित्व अपना खोजते देखे गए, मौन थे जो आज तक वे चीखते देखे गए। आधुनिकता के नशे में रात दिन जो चूर थे, ऊब कर फिर ज़िंदगी से भा...
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महेन्‍द्र वर्मा
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