शाश्वत शिल्प
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शिवसिंह सरोज
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‘शिवसिंह सरोज’, एक पुस्तक का नाम है, जिसकी रचना आज से 143 वर्ष पूर्व जिला उन्नाव, ग्राम कांथा निवासी शिवसिंह सेंगर नाम के एक साहित्यानुरा...
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एक बस्तरिहा गीत और झपताल
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परंपरागत जनजातीय गीतों की कुछ अपनी विशिष्टताएं होती हैं । पहली, इनमें 3, 4 या कहीं-कहीं 5 स्वरों का ही उपयोग होता है । आधुनिक संगीत म...
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तीन मणिकाएं
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1. तुम्हारा झूठ उसके लिए सच है मेरा सच किसी और के लिए झूठ है ऐसा तो होना ही था क्योंकि सच और झूठ को तौलने वाला तराजू अलग-अलग है हम सबका...
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विमोचन
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छ.ग. प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, ज़िला इकाई, बेमेतरा के तत्वावधान में मेरा काव्य संग्रह ‘ ‘ श्वासों का अनुप्रास’ ’ का विमोचन देश के स...
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होली का दस्तूर
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देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन। निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल इतराता सा वह चला, लेकर ...
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फूल हों ख़ुशबू रहे
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दर रहे या ना रहे छाजन रहे, फूल हों ख़ुशबू रहे आँगन रहे । फ़िक्र ग़म की क्यों, ख़ुशी से यूँ अगर, आँसुओं से भीगता दामन रहे । झाँक...
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ग्रेगोरियन कैलेण्डर
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तिथि, म...
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पूजा से पावन
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जाने -पहचाने बरसों के फिर भी वे अनजान लगे, महफ़िल सजी हुई है लेकिन सहरा सा सुनसान लगे । ...
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