भक्तिमती सहजोबाई
प्रसिद्ध संत कवि चरणदास की शिष्या भक्तिमती सहजोबाई का जन्म 25 जुलाई 1725 ई. को दिल्ली के परीक्षितपुर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिप्रसाद और माता का नाम अनूपी देवी था। ग्यारह वर्ष की आयु में सहजो बाई के विवाह के समय एक दुर्घटना में वर का देहांत हो गया। उसके बाद उन्होंने संत चरणदास का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया और आजीवन ब्रह्मचारिणी रहीं। सहजो बाई चरणदास की प्रथम शिष्या थीं। इन्होंने अपने गुरु से ज्ञान, भक्ति और योग की विद्या प्राप्त की।
कवयित्री और साधिका सहजोबाई के जीवन काल में ही उनके साहित्य का प्रचार-प्रसार देश के विभिन्न क्षेत्रों, दिल्ली, राजस्थान, बुंदेलखंड और बिहार में हो चुका था। इनके द्वारा लिखित एकमात्र ग्रंथ ‘सहज प्रकाश‘ का प्रकाशन सन् 1920 में हुआ तथा इसका अंग्रेजी अनुवाद 1931 में प्रकाशित हुआ। सहजो बाई की रचनाओं में प्रगाढ़ गुरु भक्ति, संसार की ओर से पूर्ण विरक्ति, साधुता, मानव जीवन, प्रेम, सगुण-निर्गुण भक्ति, नाम स्मरण आदि विषयक छंद, दोहे और कुडलियां संकलित हैं।
सहजो बाई ने हरि से श्रेष्ठ गुरु को माना है। निम्न पंक्तियों में उन्होंने गुरु की अपेक्षा राम को त्यागने का उल्लेख किया है-
राम तजूं मैं गुरु न बिसारूं,
गुरु के सम हरि को न निहारूं।
हरि ने जन्म दियो जग माहीं,
गुरु ने आवागमन छुड़ाही।
24 जनवरी सन् 1805 ई. को भक्तिमती सहजो बाई ने वृंदावन में देहत्याग किया। प्रस्तुत है, सहजो बाई के कुछ नीतिपरक दोहे-
सहजो जीवत सब सगे, मुए निकट नहिं जायं,
रोवैं स्वारथ आपने, सुपने देख डरायं।
जैसे संडसी लोह की, छिन पानी छिन आग,
ऐसे दुख सुख जगत के, सहजो तू मत पाग।
दरद बटाए नहिं सकै, मुए न चालैं साथ,
सहजो क्योंकर आपने, सब नाते बरबाद।
जग देखत तुम जाओगे, तुम देखत जग जाय,
सहजो याही रीति है, मत कर सोच उपाय।
प्रेम दीवाने जो भए, मन भयो चकनाचूर,
छकें रहैं घूमत रहैं, सहजो देखि हजूर।
सहजो नन्हा हूजिए, गुरु के वचन सम्हार,
अभिमानी नाहर बड़ो, भरमत फिरत उजाड़।
बड़ा न जाने पाइहे, साहिब के दरबार,
द्वारे ही सूं लागिहै, सहजो मोटी मार।
साहन कूं तो भय घना, सहजो निर्भय रंक,
कुंजर के पग बेड़ियां, चींटी फिरै निसंक।
बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट..आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और ज्ञानवर्धक पोस्ट! धन्यवाद!
ReplyDeleteबड़े ही प्यारे दोहे पढ़वाये हैं आनन्द आ गया। वाकई यदि आप संसार के अनुसार करने लगें तो आप काम से गए, पर यदि संसार को समझ कर चलें तो संसार की सारी समस्याएं आपको कोई परेशानी नहीं दे पाएंगी।
ReplyDeleteatayadhik gyanvardhak v sundar pratuti.
ReplyDeleteसारे दोहे बहुत अच्छे लगे ...... सहजोबाई के विषय में जानकारी नहीं थी... अच्छा लगा जानकर आभार
ReplyDelete... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteमैने पहली बार इनका नाम सुना है। बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है दोहे भी बहुत अच्छे हैं। देहन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सहज़ लगा सहज़ोबाई का सहज़ योग, धन्यवाद. पुरा मनकों की माला को पुनः पुनः फ़ेरने से मानस में सत्य का प्राकट्य होता है।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट! धन्यवाद!
ReplyDeleteदोहे भी बहुत अच्छे हैं।
अरे...हुज़ूर, वाह! आप तो साहित्य और इतिहास की कक्षाएँ-सी चला रहे हैं...तब तो यहाँ बार-बार आना पड़ेगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आप ने, अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletehttp://deep2087.blogspot.com kabhi yahan bhi padharen
ReplyDeleteभक्तिमती सहजोबाई के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए धन्यवाद. इन के सहज और सरल दोहे आज भी प्रासंगिक हैं जिन्हें पढ़ने के बाद उनकी वाणी मन में देर तक गूंजती रहती है. पढ़वाने के लिए आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
सहजोबाई के बारे में जानना अच्छा लगा.
ReplyDelete.
ReplyDeleteWonderful piece of information in literature -- Thanks
.
बहुत अच्छा पोस्ट !
ReplyDeleteग्राम-चौपाल में पढ़ें...........
"अनाड़ी ब्लोगर का शतकीय पोस्ट" http://www.ashokbajaj.com/
Pahli bar Sahjobai ke bare me jana aur shikkshaprad dohon ka avlokan kiya.
ReplyDeleteसहजो बाइ के जीवन के सम्ब्न्ध मे और जानकारी दे सके तो बहुत अच्छा होगा.
ReplyDeleteगोविन्द गुंजन ( gunjan128@yahoo.co.in)
wah kya bat h, /Sahjo bai ji ke bare me jan kar bahut accha laga,
ReplyDeletei remember one doha
Sahjo ya sansar me yun raho jnyo jivya jal/mukh mahin, geev ghana bhaksan kare to bhi chikni nahin
Thank you ! Very Much I was searching everywhere.yet to get here !
ReplyDeleteOne of Her Line I remember is-
" Sheesh Ka Mana Satguru ,
Jiv Jud Ke Lakh Bar
Sahjo Dware Na Chhodiye
Tajiye Kulh Abhimaan...."
संत सहजोबाई की रचनाएँ अंतर्मन को छू गईं।इनमें जीवन की सच्चाई एवं सार्थकता सहज रूप में विद्यमान है ।
ReplyDeletesahaj prakash ka prakashan varsh kya hoga???is post me 1920 diya gya h lekin ek jagah wel vediyar press dwara 1962 me inki rachanao ko sahaj prakash nam se prakashit kiya h....kripya samadhan kare....
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