रामभक्ति के आचार्य स्वामी रामानंद का जन्म विक्रम संवत 1356 में हुआ।
इनके पिता का नाम पुण्यसदन तथा माता का नाम सुशीला देवी था। रामानंद ने स्वामी राघवानंद से दीक्षा ली। गुरु से उन्हें विशिष्टाद्वैत के सिद्धांतों के साथ साथ समस्त शास्त्रों और तत्वज्ञान की भी शिक्षा मिली। रामानंद स्वामी का केन्द्रीय मठ वाराणसी में पंचगंगा घाट पर आज भी विद्यमान है। उन्होंने भारत के विभिन्न तीर्थों की यात्रा करके शास्त्रार्थ में विपक्षियों को परास्त किया और अपने मत का प्रचार किया। उनके प्रयत्न से ही देश भर में राम नाम की महिमा फैली। उन्होंने भक्ति आंदोलन में उत्तर और दक्षिण को जोड़ने के लिए एक पुल का काम किया।
तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात गुरुभाइयों से मतभेद के कारण गुरु राघवानंद ने उन्हें नया सम्प्रदाय चलाने का परामर्श दिया। इस प्रकार रामानंद सम्प्रदाय का आरंभ हुआ। इस सम्प्रदाय का नाम श्री सम्प्रदाय या बैरागी सम्प्रदाय भी है। रामानंद ने उदार भक्ति का मार्ग दिखाया। उनके यहां भक्ति के द्वार सबके लिए खुले थे। कर्मकांड का महत्व इनके यहां बहुत कम था। स्वामी रामानंद के शिष्यों में अनंतानंद, सुखानंद, कबीर, रैदास तथा पीपा जैसे संत भी सम्मिलित हैं।
उनकी रचनाओं में कुछ संस्कृत की भी बताई जाती है। केवल दो का अभी तक हिंदी पदो ंके रूप में होना स्वीकार किया जाता है। इनमें से गुरुग्रंथ साहिब में केवल एक ही संग्रहीत है। प्रस्तुत है स्वामी रामानंद का एक पद-
कत जाइयो रे घर लागो रंगु,
मेरा चित न चलै मन भयो पंगु।
एक दिवस मन भयो उमंग,
घसि चोवा चंदन बहु सुगंध।
पूजन चाली ब्रह्म की ठाईं,
ब्रह्म बताइ गुरु मन ही माहिं।
जहं जाइए तहं जल पषान,
तू पूरि रहो है सब समान।
बेद पुरान सब देखे जोई,
उहां जाइ तउ इहां न होई।
सतगुरु मैं बलिहारी तोर।
रामानंद र्साइं रमत ब्रह्म,
गुरु सबद काटे कोटि करम।
भावार्थ-
कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है, परमतत्व की वास्तविक स्थिति का आनंद घर में ही प्राप्त हो गया। किंतु मेरा चित्त और मन नहीं मानता। एक दिन उमंग में चंदन आदि लगाकर पूजा के लिए मैं ईश्वर के स्थान पर गया किंतु गुरु ने बताया कि वह ब्रह्म तो मन में ही है। जल, थल सभी जगह वह परमतत्व समान रूप से उपस्थित है। सभी शास्त्रों को विचारपूर्वक देखने से ज्ञात हुआ कि वह तो यहीं, मन में है। हे सतगुरु, आपने मेरी सारी विकलता और भ्रम को दूर किया। ब्रह्म में रमण करने वाले गुरु के उपदेश से सारे कर्मों का विनाश हो जाता है।
बहुत सुन्दर रचना है ... और जानकारी भी ...
ReplyDeleteभावार्थ देने के लिए शुक्रिया ...
सभी शास्त्रों को विचारपूर्वक देखने से ज्ञात हुआ कि वह तो यहीं, मन में है।
ReplyDeleteयह जान लिया तो सब कुछ जान लिया.सार्थक पोस्ट.शुभकामनायें.
बहुत ही अच्छा ज्ञान... आचार्य स्वामी रामानंद से परिचय के लिए आभार
ReplyDeleteज्ञानवर्धक आलेख... आचार्य स्वामी रामानंद से परिचय के लिए आभार
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत आनंद आता है आपकी पोस्ट पढ़ कर ... ज्ञानवर्धक पोस्ट और भावार्थ के लिए भी धन्यवाद ...
ReplyDeleteआदरणीय सैल जी, उपेन्द्र जी, डोरोथी जी, संध्या जी और क्षितिजा जी, आप सभी के प्रति आभार।
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्द्धक आलेख
ReplyDeleteआचार्य स्वामी रामानंद से परिचय का शुक्रिया
वर्मा जी , आपने रामानंद जी का परिचय देकर एक अमूल्य कड़ी को हमारे सामने प्रस्तुत किया है , आपने उनके जिस पद्य का अनुवाद किया है बिलकुल सही और सटीक है ....शुभकामनायें
ReplyDeletebhoole bisre mahaguruon ayr santon ka parichay karane aur unke amritvachno ka raspaan karane ke liye aap ko bahut-bahut sadhuvad
ReplyDeleteguru govind dou khade, kake lagoo paav.
ReplyDeletebalihari guru aapne, jin govind diyo milay..... uchch stariy aalekh..
बहुत ही ज्ञानवर्द्धक..... आभार
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