संत सुंदरदास

सावधान क्यूं न होई



संत सुंदरदास, संत दादू दयाल के योग्यतम शिष्यों में से एक थे। इनका जन्म जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी दौसा नगर में विक्रम संवत 1653 की चैत्र सुदी 9 को हुआ था। इनके जन्म स्थान का खंडहर आज भी विद्यमान है। इनके पिता का नाम परमानंद तथा माता का नाम सती था। दादू जी की संवत 1658 में दौसा यात्रा के दौरान इनके पिता ने इन्हें दादू जी के चरणों में डाल दिया था। तभी से ये निरंतर दादू जी के सान्निध्य में रहते थे। दादू जी ने सुंदरदास को विद्योपार्जन के लिए काशी भेजा जहां 14 वर्षों तक इन्होंने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। अनेक वर्षों तक योगाभ्यास भी किया। आपने संपूर्ण भारत का भ्रमण करते हुए काव्य सृजन किया। 
संत सुंदरदास ने कुल 42 ग्रंथों की रचना की जिनका संग्रह सुंदर ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित हो चुका है। इनके दो बड़े ग्रंथ ज्ञान समुद्र और सुंदर विलास हैं। जिनमें से प्रथम में मुख्यतया नवधाभक्ति, अष्टांग योग, सांख्य और अद्वैत मत का पांडित्यपूर्ण विवेचन है तथा द्वितीय में 563 छदों द्वारा अन्य विषयों का प्रतिपादन हुआ है। दार्शनिक विषयों का समावेश होते हुए भी इनके ग्रंथों में भाषा एकाधिकार एवं काव्य कौशल के कारण सहज रोचकता है। इनका देहावसान विक्रम संत 1746 में सांगानेर में हुआ।
प्रस्तुत है संत सुंदरदास जी की एक रचना-

बार बार कह्यो तोहि, सावधान क्यूं न होइ,
ममता की मोट काहे, सिर को धरतु है।
मेरो धन मेरो धाम, मेरो सुत मेरी बाम,
मेरे पसु मेरे गाम, भूल्यो ही फिरतु है।
तू तो भयो बावरो, बिकाइ गई बुद्धि तेरी,
ऐसो अंधकूप गेह, तामे तू परतु है।
सुंदर कहत तोहि, नेकहु न आवे लाज,
काज को बिगार कै, अकाज क्यों करतु है।

भावार्थ-तुझे बार-बार समझाया गया किंतु तू सावधान क्यों नहीं होता। मोह-माया का बोझ अपने सिर पर ढो रहा है। मेरा धन, मेरा महल, मेरा पुत्र, मेरी पत्नी, मेरे पशु, मेरा गांव कहते हुए भ्रम में पड़ा हुआ है। तू बावला हो गया है, तेरी बुद्धि नष्ट हो चुकी है जो इस प्रकार संसार रूपी अंधेरे कुंए में गिर गया है। मोह-माया के बंधन को त्याग, इस कार्य को बिगाड़ कर अकार्य क्यों कर रहा है ?

13 comments:

  1. बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति...आभार..

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  2. सुन्दर रचना है ...
    आपके ब्लॉग पर आकर हमेशा ही भारतीय रचनाकारों के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है ... आभार ...

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  3. नया परिचय है संत सुंतरदास मेरे लिए. आभार. अपने दिमाग़ को धोने के लिए आपके ब्लॉग पर आना अच्छा है.

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  4. gyanvardhak prastuti;uttam pad chayan;bavarth saral shabdoo me prastut kar aapne sone par suhaga hi kar diya .

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  5. आनंद आ गया। ज्ञान की बातें। आभार!

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  6. इतिहास के संतों को वर्तमान से रू-ब-रू कराना एक बहुत ही प्रशंशनीय काम है ख़ास कर अगर संत साहित्य कार हों।

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  7. जानकारी के लिए आभार.... सुंदर प्रस्तुति

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  8. वर्मा जी आपके द्वारे आकर लगता है कि फिर से आस्तिक हो जाएँ..

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  9. जानकारी के लिए आभार...सुन्दर ज्ञानवर्धक रचना है ...

    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

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  10. आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.

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  11. दीपावली के इस पावन पर्व पर ढेर सारी शुभकामनाएं

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  12. .

    इस नए परिचय के लिए आभार।

    .

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  13. आभार तथा धन्यवाद्
    "काज को बिगार कै, अकाज क्यों करतु है"

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