तनहाई में जिनको सुकून सा मिलता है,
आईना भी उनको दुश्मन सा लगता है।
किसको आखि़र हम अपनी फरियाद सुनाएं,
हर चेहरा फरियादी जैसा ही दिखता है।
दिल में उसके चाहे जो हो, तुझको क्या,
होठों से तो तेरा नाम जपा करता है।
तेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
बात हुई क्या, उनमें अब सावन बसता है।
किसी परिंदे के पर चाहे, काटो फिर भी,
दूर उफ़क तक उसका मन उड़ता फिरता है।
ख़ामोशी भी कह देती हैं सारी बातें,
दिल की बातें कोई कब मुंह से कहता हैं।
वो तो दीवाना है, उसकी बातें छोड़ों,
अपने ग़म को ही अपनी ग़ज़लें कहता है।
-महेन्द्र वर्मा
बहुत बड़ी है जिंदगी की कहानी।
ReplyDeleteआदरणीय महेंदर वर्मा जी..
ReplyDeleteनमस्कार !
तेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
बात हुई क्या, उनमें अब सावन बसता है।
बेहतरीन ग़ज़ल कमाल है.......दिल से मुबारकबाद|
संजय भास्कर
महेंद्र जी!सुंदर भावों से सजी एक सुंदर ग़ज़ल...एक सुझाव..
ReplyDeleteकिसको आखि़र हम अपना फरियाद सुनाएं को
किसको आखि़र हम अपनी फरियाद सुनाएं, कर लें!!
तेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
ReplyDeleteबात हुई क्या, उनमें अब सावन बसता है।
किसी परिंदे के पर चाहे, काटो फिर भी,
दूर उफ़क तक उसका मन उड़ता फिरता है।
ख़ामोशी भी कह देती हैं सारी बातें,
दिल की बातें कोई कब मुंह से कहता हैं।
हर शेर संजोने लायक्……………बेहतरीन गज़ल ।
वो तो दीवाना है, उसकी बातें छोड़ों,
ReplyDeleteअपने ग़म को ही अपनी ग़ज़लें कहता है।
खुबसूरत शेर बहुत बहुत बधाई
सलिल जी, ग़ज़ल सराहने के लिए घन्यवाद।
ReplyDeleteआपने वर्तनी की त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षित किया, त्रुटि सुधार दी गई है...पुनः धन्यवाद।
आदरणीय उत्साही जी, भास्कर जी, वंदना जी और सुनील जी,
ReplyDeleteआप सब के प्रति आभार।
ख़ामोशी भी कह देती हैं सारी बातें,
ReplyDeleteदिल की बातें कोई कब मुंह से कहता हैं।
वो तो दीवाना है, उसकी बातें छोड़ों,
अपने ग़म को ही अपनी ग़ज़लें कहता है।
वाह , क्या बात कही है ..बहुत सुन्दर ...
तेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
ReplyDeleteबात हुई क्या, उनमें अब सावन बसता है।
बेहतरीन जज़्बात सुन्दर गज़ल
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ReplyDeleteतेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
बात हुई क्या, उनमें अब सावन बसता है...
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All the couplets are so close to reality.
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"किसको आखि़र हम अपनी फरियाद सुनाएं,
ReplyDeleteहर चेहरा फरियादी जैसा ही दिखता है"
सच कहा आपने,बिलकुल यही हालात है आजकल के
"तेरी जिन आंखों में फागुन का डेरा था,
बात हुई क्या, उनमें अब सावन बसता है"
क्या बात है महेंद्र जी,
अच्छे शेर कह रहे हैं आप
khamoshi bhi kah deti hai ...'' sabse achcha sher laga .
ReplyDeleteतनहाई में जिनको सुकून सा मिलता है,
ReplyDeleteआईना भी उनको दुश्मन सा लगता है।
बहुत खूब महेंद्र जी.. हर शेर लाजवाब है .... बेहतरीन प्रस्तुति ...
किसको आखि़र हम अपनी फरियाद सुनाएं,
ReplyDeleteहर चेहरा फरियादी जैसा ही दिखता है।
बेहतरीन ....
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार::क्षमा
bahoot sunder gazal.. har pankti bejod hai.
ReplyDeleteसंगीता जी, एम.वर्मा जी, दिव्या जी,क्षितिजा जी, मनोज जी, उपेन्द्र जी,
ReplyDeleteकुसुमेश जी, डॉ. मोनिका जी और शिखा जी,
आप सबके प्रति हृदय से आभार।
किसको आखि़र हम अपनी फरियाद सुनाएं,
ReplyDeleteहर चेहरा फरियादी जैसा ही दिखता है।
बढ़िया ग़ज़ल है!
प्रेमरस.कॉम
aakho me fagun ka dera our ab vha sawan ka bsera bhut hi khoobsoorat bimb .
ReplyDeletemarmik !adbhut shabd syojan !
बहुत बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteमहेन्द्र जी, खामोशी अक्सर सारी बातें कह देती है। आपने बहुत ही सुंदर गजल लिखी है। बधाईयां।
ReplyDelete---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्या आप सच्चे देशभक्त हैं?
महेंद्र जी आपकी रचना दमदार है
ReplyDeleteअच्छा लगा पढकर
वाह , खूबसूरत ग़ज़ल , बेहतरीन शेरो से सजी हुई . आभार .
ReplyDeleteख़ामोशी भी कह देती हैं सारी बातें,
ReplyDeleteदिल की बातें कोई कब मुंह से कहता हैं।
बहुत सुन्दर रचना !
किसको आखि़र हम अपनी फरियाद सुनाएं,
ReplyDeleteहर चेहरा फरियादी जैसा ही दिखता है।
सुंदर रचना.
किसको अपनी मन की फ़रियाद सुनायें, हर चेहरा फ़रियादी जैसा दिखता है, बेहतरीन शे'वर्मा जी मुबारकबाद्।
ReplyDeleteकिसी परिंदे के पर चाहे, काटो फिर भी,
ReplyDeleteदूर उफ़क तक उसका मन उड़ता फिरता है ...
दिल की गहराई से निकले हुवे शेर हैं सब ... आदाब है हमारा इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए .... सुभान अल्ला ..
5.5/10
ReplyDeleteसुंदर गजल है आपकी
कई पंक्तियाँ असरदार हैं जो ध्यान खींचती हैं :
"किसी परिंदे के पर चाहे, काटो फिर भी,
दूर उफ़क तक उसका मन उड़ता फिरता है।"
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
किसी परिंदे के पर चाहे, काटो फिर भी,
ReplyDeleteदूर उफ़क तक उसका मन उड़ता फिरता है।
ख़ामोशी भी कह देती हैं सारी बातें,
दिल की बातें कोई कब मुंह से कहता हैं।
बेहद खूबसूरत गजल. आभार...
सादर,
डोरोथी.
zindagi ki sachchaai se kareeb ...sunder ghazal...
ReplyDeleteवो तो दीवाना है, उसकी बातें छोड़ों,
ReplyDeleteअपने ग़म को ही अपनी ग़ज़लें कहता है।
bahut khoobsurat likhe hain......
वाह ...बहुत ही बढि़या ...।
ReplyDeleteख़ामोशी भी कह देती हैं सारी बातें,
ReplyDeleteदिल की बातें कोई कब मुंह से कहता हैं।
बहुत खूब सर।
सादर
khamoshi hi kah deti hai sari baaten,
ReplyDeletedil kee baten koi kab munh se kahata hai.
bahut sundar bhav.
bhav kab shabdon ke muhtaj hue hain
chehre aur aankhen sab kah deti hain.
हर शेर लाजवाब....
ReplyDeleteसादर..
bahut acchhi prastuti.
ReplyDeletemera blog apki raah dekh raha hai.