मराठी भाषा की गीता माने जानी वाली ‘ज्ञानेश्वरी‘ के रचयिता संत ज्ञानेश्वर महान संत गोरखनाथ की परम्परा में हुए। इनका जन्म सन 1275 ई. माना जाता है। जन्मस्थान आलंदी ग्राम है जो महाराष्ट्र् के पैठण के निकट है। इनके तिा का नाम विट्ठल पंत था। अपने बड़े भाई ग्यारह वर्षीय निवृत्तिनाथ से आठ वर्षीय ज्ञानेश्वर ने दीक्षा ली और संत बन गए। नाथपंथी, हठयोगी होते हुए, वेदांत के प्रखर विद्वान होने के बावजूद भक्ति के शिखर को छूने वाले संत ज्ञानेश्वर ने चार पुरुषार्थों के अतिरिक्त भक्ति को पांचवे पुरुषार्थ के रूप में स्थापित किया।
संत ज्ञानेश्वर, जो ज्ञानदेव के नाम से भी विख्यात हैं, वारकरी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। वारकरी का अर्थ है- यात्रा करने वाला। संत ज्ञानेश्वर सदा ही यात्रारत रहे। इन्होंने उज्जयिनी, काशी, गया, अयोध्या, वृंदावन, द्वारिका,पंढरपुर आदि तीर्थों की यात्राएं कीं। ज्ञानेश्वरी के पश्चात अपने गुरु की प्रेरणा से अपने आध्यात्मिक विचारों को आकार देते हुए एक स्वतंत्र ग्रंथ ‘अमृतानुभव‘ की रचना की। इस ग्रंथ में 806 छंद हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ चांगदेवपासष्टी, हरिपाठ तथा योगवशिष्ठ टीका है।
तीर्थयात्रा से लौटकर संत ज्ञानेश्वर ने अपनी समाधि की तिथि निश्चित की। शक संवत 1218 कृष्णपक्ष त्रयोदशी, गुरुवार तदनुसार 25 अक्ठूबर 1296 को मात्र 22 वर्ष की अल्पायु में संत ज्ञानेश्वर ने आलंदी में समाधि ली।
प्रस्तुत है नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित उनका एक पद-
सोई कच्चा वे नहिं गुरु का बच्चा।
दुनिया तजकर खाक रमाई, जाकर बैठा बन मा।
खेचरी मुद्रा बज्रासन मा, ध्यान धरत है मन मा।
तीरथ करके उम्मर खोई, जागे जुगति मो सारी।
हुकुम निवृति का ज्ञानेश्वर को, तिनके उपर जाना।
सद्गुरु की जब कृपा भई तब, आपहिं आप पिछाना।
भावार्थ-
बाह्याचरण, सन्यास लेकर, शरीर पर राख मलकर, वन में वास करके और विभिन्न मुद्राओं में आसन लगाने से सच्चा वैराग्य उत्पन्न नही होता। ऐसे ही तीर्थों में जाकर स्नान पूजा करना भी व्यर्थ है। इस संसार में गुरु के आदेशों पर चलने से अध्यात्म सधता है और आत्म तत्व की पहचान होती है।
बचपन में संत ज्ञानेश्वर पर बनी फिल्म देखी थी मैंने.. उसका एक गीत आज भी याद है..ज्योत से ज्योत जगाते चलो,प्रेम की गंगा बहाते चलो..आज आपने वो यादें जगादीं!!
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ReplyDeleteगुरु के आदेशों पर चलना ही सच्ची साधना है !
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बहुत ही अच्छी सीख . २२ साल की इतनी कम उम्र मे समाधी ले लेना बहुत बड़ी छति है .संत ज्ञानेश्वर जी के विचार बहुत ही प्रेरणादायी है.
ReplyDeleteसुन्दर ग्यान वर्धक कोटेशन, आभार वर्मा जी।
ReplyDeleteसारगर्भित रचना . बहुत सुंदर .बधाई
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायी
ReplyDeleteआप सभी के प्रति हृदय से आभार।
ReplyDeleteसंत ज्ञानेश्वर ने तो बहुत ही गूढ बातें बताई है और नीति की सिक्षा दी है। उनके बारे में बताकर आपने हमारा ज्ञान बढाय। आभार आपका। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार-श्री गुरुवे नमः
बिल्कुल सही और सच्ची राह दिखायी है……………आभार पढवाने के लिये।
ReplyDelete'गुरु बिन ज्ञान न आये' ... ज्ञानवर्धक पोस्ट .... धन्यवाद
ReplyDeleteसंत ज्ञानेश्वर जी की इस रचना की मुझे जानकारी नही थी आप का आभार । ज्ञानेश्वरी गीता का ही मराठी अनुवाद है पर यह केवल शब्दशः अनुवाद नही वरन टीका कही जा सकती है । एक एक श्लोक कभी कभी 20-25 ओवियों में विस्तारित हुआ है ।
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति दिमागी खुराक देती है. शुक्रिया.
ReplyDeleteगुरु के आदेश पर चलना ही निष्काम कर्म है और मुक्ति का मार्ग है.
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