तिथि, माह और वर्ष की गणना के लिए ईस्वी सन् वाले कैलेण्डर का प्रयोग आज पूरे विश्व में हो रहा है। यह कैलेण्डर आज से 2700 वर्ष पूर्व प्रचलित रोमन कैलेण्डर का ही क्रमशः संशोधित रूप है। 46 ई. पूर्व में इसका नाम जूलियन कैलेण्डर हुआ और 1752 ई. से इसे ग्रेगोरियन कैलेण्डर कहा जाने लगा।
रोमन कैलेण्डर की शुरुआत रोम नगर की स्थापना करने वाले पौराणिक राजा रोम्युलस के पंचांग से होती है। वर्ष की गणना रोम नगर की स्थापना वर्ष 753 ई. पूर्व से की जाती थी। इसे संक्षेप में ए.यू.सी. अर्थात एन्नो अरबिस कांडिटाइ कहा जाता था, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘शहर की स्थापना के वर्ष से‘ हैं। रोम्युलस के इस कैलेण्डर में वर्ष में दस महीने होते थे। इन महीनों में प्रथम चार का नाम रोमन देवताओं पर आधारित था, शेष छह महीनों के नाम क्रम संख्यांक पर आधारित थे। दस महीनों के नाम क्रमशः इस प्रकार थे- मार्टियुस,एप्रिलिस, मेयुस, जूनियुस, क्विंटिलिस, सेक्स्टिलिस, सेप्टेम्बर, आक्टोबर, नोवेम्बर और डिसेम्बर। मार्टियुस जिसे अब मार्च कहा जाता है, वर्ष का पहला महीना था। नए वर्ष का आरंभ मार्टियुस अर्थात मार्च की 25 तारीख को होता था क्योंकि इसी दिन रोम के न्यायाधीष शपथ ग्रहण करते थे। इस कैलेण्डर में तब जनवरी और फरवरी माह नहीं थे।
लगभग 700 ई. पूर्व रोम के द्वितीय नरेश न्यूमा पाम्पलियस ने कैलेण्डर में दो नए महीने - जेन्युअरी और फेब्रुअरी - क्रमशः ग्यारहवें और बारहवें महीने के रूप में जोड़े। यह कैलेण्डर 355 दिनों के चांद्र वर्ष पर आधारित था। इसमें 7 महीने 29 दिनों के, 4 महीने 31 दिनों के और फेब्रुअरी महीना 28 दिनों का होता था। इस कैलेण्डर का उपयोग रोमवासी 45 ई. पूर्व तक करते रहे।
सन् 46 ई. पूर्व में रोमन सम्राट जूलियस सीज़र ने अनुभव किया कि त्योहार और मौसम में अंतर आने लगा है। इसका कारण यह था कि प्रचलित कैलेण्डर चांद्रवर्ष पर आधारित था जबकि ऋतुएं सौर वर्ष पर आधारित होती हैं। जूलियस सीज़र ने अपने ज्योतिषी सोसिजेनस की सलाह पर 355 दिन के वर्ष में 10 दिन और जोड़कर वर्ष की अवधि 365 दिन 6 घंटे निर्धारित किया। वर्ष की अवधि में जो छह घंटे अतिरिक्त थे वे चार वर्षों में कुल 24 घंटे अर्थात एक दिन के बराबर हो जाते थे। अतः सीज़र ने प्रत्येक चौथे वर्ष का मान 366 दिन रखे जाने का नियम बनाया और इसे लीप ईयर का नाम दिया। लीप ईयर के इस एक अतिरिक्त दिन को अंतिम महीने अर्थात फेब्रुअरी में जोड़ दिया जाता था। जूलियस सीज़र ने क्विंटिलिस नामक पांचवे माह का नाम बदलकर जुलाई कर दिया क्योंकि उसका जन्म इसी माह में हुआ था।
जूलियस सीज़र द्वारा संशोधित रोमन कैलेण्डर का नाम 46 ई. पूर्व से जूलियन कैलेण्डर हो गया। इसके 2 वर्ष पश्चात सीज़र की हत्या कर दी गई। आगस्टस रोम का नया सम्राट बना। आगस्टस ने सेक्स्टिलिस महीने में ही युद्धों में सबसे अधिक विजय प्राप्त की थी इसलिए उसने इस महीने का नाम बदलकर अपने नाम पर आगस्ट कर दिया।
जूलियन कैलेण्डर अब प्रचलन में आ चुका था। किंतु कैलेण्डर बनाने वाले पुरोहित लीप ईयर संबंधी व्यवस्था को ठीक से समझ नहीं सके । चौथा वर्ष गिनते समय वे दोनों लीप ईयर को शामिल कर लेते थे। फलस्वरूप प्रत्येक तीन महीने में फेब्रुअरी माह में एक अतिरिक्त दिन जोड़ा जाने लगा। इस गड़बड़ी का पता 50 साल बाद लगा और तब कैलेण्डर को पुनः संशोधित किया गया। तब तक ईसा मसीह का जन्म हो चुका था किंतु ईस्वी सन् की शुरुआत नहीं हुई थी। जूलियन कैलेण्डर के साथ रोमन संवत ए.यू.सी. का ही प्रयोग होता था। ईस्वी सन् की शुरुआत ईसा के जन्म के 532 वर्ष बाद सीथिया के शासक डाइनीसियस एक्लिगुस ने की थी। ईसाई समुदाय में ईस्वी सन् के साथ जूलियन कैलेण्डर का प्रयोग रोमन शासक शार्लोमान की मृत्यु के दो वर्ष पश्चात सन् 816 ईस्वी से ही हो सका।
जूलियन कैलेण्डर रोमन साम्राज्य में 1500 वर्षों तक अच्छे ढंग से चलता रहा। अपने पूर्ववर्ती कैलेण्डरों से यह अधिक सही था। इतने पर भी इसका वर्षमान सौर वर्ष से 0.0078 दिन या लगभग 11 मिनट अधिक था। बाद के 1500 वर्षों में यह अधिकता बढ़कर पूरे 10 दिनों की हो गई।
1582 ई. में रोम के पोप ग्रेगोरी तेरहवें ने कैलेण्डर के इस अंतर को पहचाना और इसे सुधारने का निश्चय किया। उसने 4 अक्टूबर 1582 ई. को यह व्यवस्था की कि दस अतिरिक्त दिनों को छोड़कर अगले दिन 5 अक्टूबर की बजाय 15 अक्टूबर की तारीख होगी, अर्थात 5 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक की तिथि कैलेण्डर से विलोपित कर दी गई। भविष्य में कैलेण्डर वर्ष और सौर वर्ष में अंतर नहो, इसके लिए ग्रेगोरी ने यह नियम बनाया कि प्रत्येक 400 वर्षों में एक बार लीप वर्ष में एक अतिरिक्त दिन न जोड़ा जाए। सुविधा के लिए यह निर्धारित किया गया कि शताब्दी वर्ष यदि 400 से विभाज्य है तभी वह लीप ईयर माना जाएगा। इसीलिए सन् 1600 और 2000 लीप ईयर थे किंतु सन् 1700, 1800 और 1900 लीप ईयर नहीं थे, भले ही ये 4 से विभाज्य हैं।
ग्रेगोरी ने जूलियन कैलेण्डर में एक और महत्वपूर्ण संशोधन यह किया कि नए वर्ष का आरंभ 25 मार्च की बजाय 1 जनवरी से कर दिया। इस तरह जनवरी माह जो जूलियन कैलेण्डर में 11वां महीना था, पहला महीना और फरवरी दूसरा महीना बन गया।
इटली, डेनमार्क और हालैंड ने ग्रेगोरियन कैलेण्डर को उसी वर्ष अपना लिया। ग्रेट ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों ने 1752 ई.में, जर्मनी और स्विटज़रलैंड ने 1759 ई. में, आयरलैंड ने 1839 ई. में, रूस ने 1917 ई. में और थाइलैंड ने सबसे बाद में, सन् 1941 में इस नए कैलेण्डर को अपने देश में लागू किया।
-महेन्द्र वर्मा
बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट. नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें !
ReplyDeleteआकाशवाणी पटना से सन् 1972 में मेरी एक वार्त्ता प्रसारित हुई थी, कैलेंडर का इतिहास.. आज आपके माध्यम से पुनः मेरे पास वापस आई.
ReplyDeleteबाद में उसी वर्ष मैंने एक नाटक लिखा था, जिसमें एक पात्र के माध्यम से कैलेंडर, कॉमिक,स्वप्न, चाभी ताला और एनसाइक्लोपीडिया का इतिहास बताया था.
बहुत अच्छा और तथ्यपरक लेख!!
अंग्रेज़ी कैलेंडर के बारे में इतनी जानकारी देने के लिए आभार. मेरे लिए इसका इतिहास एकदम नया है.
ReplyDeleteश्री भूषणजी से पूर्ण सहमत...
ReplyDeleteअंग्रेज़ी कैलेंडर के बारे में इतनी जानकारी देने के लिए आभार. मेरे लिए इसका इतिहास एकदम नया है.
ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आभार.
ReplyDeleteआप को सपरिवार नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
नूतन वर्ष आपके लिये शुभ और मंगलमय हो...
ReplyDeleteइतनी अच्छी जानकारी के लिये आभार............नूतन वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरमिया काकी
आदरणी यmahendra verma जी
ReplyDeleteनमस्कार जी
कलेंडर का बारे में इतनी बढ़िया जानकरी के लिए आपका धन्यवाद ....आने वाला नव वर्ष 2011 आपके लिए खुशियों की बहार लाये ..ताकि आप हमारा मार्गदर्शन यूँ ही करते रहें .. आभार
जानकारीपरक एवं ज्ञानवर्धक आलेख
ReplyDeleteअच्छी जानकारी।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट. नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें !
ReplyDeletebahut si gyaan ki baatein batayin aapne..
ReplyDeletebahut bahut dhanyawaad....
बहुत अच्छी जानकारी ..
ReplyDeleteबहुत ज्ञानवर्धक आलेख ... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDelete... shubhaa-shubh nav varsh !!
ReplyDeleteमहेन्द्र जी, बहुत ही रोचक जानकारी आपने उपलब्ध करा दी। आभार।
ReplyDelete---------
साइंस फिक्शन और परीकथा का समुच्चय।
क्या फलों में भी औषधीय गुण होता है?
इतनी विस्तृत जानकारी के लिए आभार महेंद्र जी। निसंदेह एक संग्रहणीय लेख।
ReplyDeleteज्ञान वर्द्धक आलेख ...
ReplyDeleteऐसा विस्तृत वर्णन पहली बार पढ़ा
आभार !
नव वर्ष 2011 की शुभकामनाएं
(aapki gazalein bhi bahut psand aaeeN)
इतनी नई जानकारी के लिए आभार। नववर्ष की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteइस वृहत और नवीन जानकारी (मेरे लिए ) के लिए आपका बहुत बहुत आभार . नव वर्ष की हार्दिक सुभकामनाये .
ReplyDeleteआपकी ये पोस्ट महत्वपूर्ण जानकारी वाली है। सहेजने लायक़ है।
ReplyDeleteआप व आपके परिवार वालों को नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
jankari se bhara gyanvardhak post.
ReplyDeletenav varsh mangalmay ho.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
ReplyDeleteतय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
वैसे तो सदैव ही हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है यह पाश्चात्य नव-वर्ष का प्रथम दिन है, अवसरानुकूल है आज शुभेच्छा प्रकट करूँ………
ReplyDeleteआपके हितवर्धक कार्य और शुभ संकल्प मंगलमय परिपूर्ण हो, शुभाकांक्षा!!
आपका जीवन ध्येय निरंतर वर्द्धमान होकर उत्कर्ष लक्ष्यों को प्राप्त करे।
bahut sari baatonb se aparichit tha...bahut mahatvapoorn jankari di aapne....nav varsh aapke aur aapke parivar ke liye mangalkari ho..
ReplyDeletesaadar
Happy New Year 2011 to you,your all family.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की हार्दिक शुभकामना !
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteकैलेंडर के बारे में बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख प्रस्तुत किया है आपने।
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