जीवन




स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन,
हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन।


श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत,
नियति के आक्रोश से स्तब्ध जीवन।


पूर्ण न होतीं कभी भी कामनाएं,
लालसाओं से सदा विक्षुब्ध जीवन।


जिन विधानों से हुई रचना जगत की,
क्या उन्हीं से है नहीं आबद्ध जीवन ?


ज्ञात हो जिसको बताए सत्य क्या है,
कर्म का संकल्प या प्रारब्ध जीवन।


शास्त्र कहता है सदा चलते रहो पर,
है अधूरे मार्ग सा अवरुद्ध जीवन।


भाव से न अभाव से संबंध इसका,
मात्र श्वासों से रहा संबद्ध जीवन।


                                                           -महेन्द्र वर्मा

32 comments:

  1. श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत,
    नियति के आक्रोश से स्तब्ध जीवन।

    जीवन की बहुत सार्थक मीमांसा..हर पंक्ति विचारणीय..बहुत सुन्दर

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  2. मानव इसी में रच लेता है जीवन-सौंदर्य.

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  3. स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन,
    हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन।

    ग़ज़ल का मत्ला बहुत अच्छा है.

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  4. ज्ञात हो जिसको बताए सत्य क्या है,
    कर्म का संकल्प या प्रारब्ध जीवन।

    मन की कश्मकश को बहुत सुंदर रूप दिया है -
    अभिभूत कर गयी आपकी रचना -
    बधाई एवं शुभकामनायें











    कर्म का संकल्प या प्रारब्ध जीवन।

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  5. स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन,
    हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन।

    बिल्कुल सही कहा अगर ऐसा हो जाता तो सभी बुद्ध होते।

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  6. शास्त्र कहता है सदा चलते रहो पर,
    है अधूरे मार्ग सा अवरुद्ध जीवन।
    ....sach hi kaha hai adhure man se koi kaam pura kahan hota hai..
    sundar prastuti..

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  7. शास्त्र कहता है सदा चलते रहो पर,
    है अधूरे मार्ग सा अवरुद्ध जीवन।

    बहुत अच्छी रचना है. आभार और शुभकामनाएँ.

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  8. .सटीक बात लिखी है .लोगों पर असर पड़ना चाहिए

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  9. जीवन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती अच्छी रचना ...

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  10. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  11. गहरी नीति की बातों के ग़ज़ल के शे’रों में व्यक्त किया गया है। भाव और प्रवाह तो देखते बनता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    बालिका दिवस
    हाउस वाइफ़

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  12. एकदम सही बात कही है....बहुत अच्छी रचना है. आभार

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  13. महेंद्र वर्मा जी! जीवन के हर पहलू की विवेचना और हर रंग और दर्शन का परिचय देती है यह ग़ज़ल!!

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  14. .

    @-हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन...

    इस पंक्ति में ही सारा दर्शन भरा हुआ है। जहाँ स्वार्थ है , वहां बुद्ध कहाँ !

    .

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  15. स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन,
    हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन।

    वाह!!! महेंद्र जी .... बेहतरीन शब्द , बेहतरीन भाव , बेहतरीन सन्देश ... लाजवाव रचना ...

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  16. पूर्ण न होतीं कभी भी कामनाएं,
    लालसाओं से सदा विक्षुब्ध जीवन...
    बहुत अच्छी रचना. आभार.

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  17. महेन्‍द्र जी, हमेशा की तरह एक शानदार गजल। हार्दिक बधाई।

    -------
    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  18. स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन,
    हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन।


    महेंद्र जी
    बहुत सुंदर रचना है...सभी का जीवन अगर बुद्ध हो जाए तो फिर झगड़े और रोना किस बात का रहे....
    बधाई...

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  19. बहुत ही सुंदर रचना !!

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  20. बहुत सुंदर ...बस यही है जीवन.... आपने हर रंग को समेट लिया

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  21. महेंद्र जी , बहुत ही अच्छी प्रस्तुति. सफल जीवन की सूक्ति बताती हुई........

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  22. आदरणीय महेन्द्र जी
    सादर अभिवादन !

    श्रेष्ठ रचना है … रोचकता भी , गांभीर्य भी !

    ज्ञात हो जिसको बताए सत्य क्या है,
    कर्म का संकल्प या प्रारब्ध जीवन।


    अति उत्तम !

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  23. आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.

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  24. बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना !
    गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप को ढेरों शुभकामनाये

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  25. गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    बहुत ही सुंदर रचना बधाई...........,

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  26. श्रम हुआ निष्फल, कभी पुरुषार्थ आहत,
    नियति के आक्रोश से स्तब्ध जीवन।
    सारगर्भित रचना,गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई....

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  27. बहुत सुन्दर शब्दों मै पिरोई हुई रचना !

    गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !

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  28. भाव से न अभाव से संबंद्ध इसका'
    मात्र स्वांसों से रहा संबद्ध जीवन।

    बेहतरीन शे'र , उम्दा गज़ल।

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  29. शास्त्र कहता है सदा चलते रहो पर,
    है अधूरे मार्ग सा अवरुद्ध जीवन।


    भाव से न अभाव से संबंध इसका,
    मात्र श्वासों से रहा संबद्ध जीवन।
    man ko sparsh karti behtrin rachna hai ye ,gantantra divas ki badhai .

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  30. पूर्ण न होतीं कभी भी कामनाएं,
    लालसाओं से सदा विक्षुब्ध जीवन।

    एक दम सटीक अभिव्यक्ति ....जीवन भी क्या है ..हम इसे अंतिम समय तक नहीं समझ पाते बाकि सब चीजों को समझने की कोशिश हम करते हैं ...काश हम जिन्दगी को समझ पाते ....शुक्रिया आपका इस सार्थक रचना के लिए

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  31. प्रशंसा को शब्दहीन हूँ...

    नमन आपकी लेखनी को...

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  32. @ स्वार्थ का परमार्थ से है युद्ध जीवन ,
    हो नहीं सकता सभी का बुद्ध जीवन !
    बहुत गंभीर और विचारणीय पंक्तियाँ . अच्छी गज़ल.आभार .

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