बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा,
है कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा।
वक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही,
छोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा।
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
फूल मुरझाने लगे हैं चमन के,
खो गई है रुत सुहानी, या ख़ुदा।
उल्लुओं ने पंख नोचे हंसिनी के,
दुश्मनी लगती पुरानी, या ख़ुदा।
हंस रहे होगे हमारे हाल पर,
आपकी है मेहरबानी, या ख़ुदा।
ख़ाक है संसार, माज़ी के सिवा,
है यहां हर चीज़ फ़ानी, या ख़ुदा।
-महेन्द्र वर्मा
-----------------
उफ़क - क्षितिज, उल्लू - लक्ष्मी का वाहन
हंसिनी /हंस - सरस्वती का वाहन
माज़ी - अतीत, फ़ानी - नश्वर
शानदार गजल , बधाई
ReplyDeleteवक्त की फिरकी उफ़क पर जा रही,
ReplyDeleteछोड़ती अपनी निशानी या ख़ुदा।
ख़ाक है संसार माज़ी के सिवा,
है यहां हर चीज़ फ़ानी या ख़ुदा।
लाज़वाब अशआर , बेहतरीन ग़ज़ल, क्या बात है वर्मा जी, इरशाद।
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
unke ehsaason ki udaanen hain jabardast
hogi kayamat yaa khuda !
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
बढिया गजलें । आभार...
बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा,
ReplyDeleteहै कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा।
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
वाह दोनों शेर गजब के बन पड़े हैं ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
पूरी ग़ज़ल सुन्दर है !
शानदार और बेहतरीन ग़ज़ल.
ReplyDeleteबुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा,
है कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा।
क्या बात है. पूरा भारतीय दर्शन इसमें समाया हुआ है.
ख़ाक है संसार, माज़ी के सिवा,
ReplyDeleteहै यहां हर चीज़ फ़ानी, या ख़ुदा....
....बेहतरीन!
सच्चाई का बयां बखूबी किया है.धन्यवाद.
ReplyDeleteबेहतरीन गजल। हर शेर दाद के काबिल।
ReplyDeleteवक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही,
ReplyDeleteछोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा।
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
ये दोनो शेर तो लाजवाब हैं पूरी गज़ल ही बहुत अच्छी लगी । बधाई इस गज़ल के लिये।
वाह बेहद शानदार ग़ज़ल ..........हर शेर लाजवाब.
ReplyDelete... behatreen ... prasanshaneey gajal !!
ReplyDeleteबहुत ही गहरे एहसास है हर नज़्म में ...... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteपांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
जो बात मुझे अच्छी लगी कि आप न तो ज़्यादा क्रांति की बात करते हैं, न चालू इश्किया शायरी की। इंसान और इंसानियत ही आपकी शायरी की बुनियादी लय है।
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
शानदार ग़ज़ल...
aap bhi achchhe sher kahate hain...badhai...shubhkamnaye....
ReplyDeleteआद.महेंद्र जी,
ReplyDeleteपहले सोचा सबसे बढ़िया शेर लिख कर फिर अपनी बात कहूँ मगर ग़ज़ल में से सबसे बढ़िया शेर चुनना नामुमकिन है !
सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं !
इस ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
'उल्लुओं ने पंख नोचे हंसिनी के
ReplyDeleteदुश्मनी लगती पुरानी या खुदा '
बेहतरीन शेर ..
पूरी ग़ज़ल मुकम्मल... बहुत अच्छी |
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा। ...
बहुत लाजवाब ... क्या अंदाज़ है ग़ज़ल का ... सुभान अल्ला ... मज़ा आ गया ..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
बहुत उम्दा गज़ल. बधाई .
ReplyDeleteपांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
फूल मुरझाने लगे हैं चमन के,
खो गई है रुत सुहानी, या ख़ुदा।
बहुत शानदार गज़ल ...
या खुदा! बहुत शानदार ग़ज़ल!
ReplyDeleteहर शेर में एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन छुपा हुआ है।
ReplyDelete........बेहतरीन ग़ज़ल, क्या बात है वर्मा जी
ReplyDelete...हर शेर लाजवाब.
ReplyDeleteबेहद शानदार ग़ज़ल| हर शेर लाजवाब|
ReplyDeleteपांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
बहुत उम्दा कलाम पढ़ने को मिला है
वर्मा जी, बहुत बहुत मुबारकबाद.
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
वाह वाह क्या शेर है.
बहुत प्यारी ग़ज़ल.
ख़ाक है संसार, माज़ी के सिवा,
ReplyDeleteहै यहां हर चीज़ फ़ानी, या ख़ुदा।
ग़ज़ब के शेर, खूबसूरत ग़ज़ल.......
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
बहुत गहरे भाव -
बधाई एवं शुभकामनाएं
पांव धरती पर गड़े सबके मगर,
ReplyDeleteख़्वाब बुनते आसमानी, या ख़ुदा।
शानदार गजल, हर शेर लाजवाब
bouth he aacha post hai ji
ReplyDeleteMusic Bol
Lyrics Mantra
महेन्द्र जी, जीवन की निस्सारता को आपने बखूबी समझा है। बहुत सुंदर।
ReplyDelete---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
वाह वाह वर्मा जी - जीवन सार प्रस्तुत करती लाजवाब ग़ज़ल
ReplyDeleteEk behtareen rachna ke liye Badhai!!
ReplyDeleteवक़्त की फिरकी उफ़क पर जा रही,
ReplyDeleteछोड़ती अपनी निशानी, या ख़ुदा।
हर शे'र नया सा लगा ....
बहुत खूब .....!!
बुलबुले सी ज़िदगानी, या ख़ुदा,
ReplyDeleteहै कोई झूठी कहानी, या ख़ुदा।
bahut khoob...
bahut hi steek gazal hai...
bahut hi khobsorat si ghazal badhai bhai mahendraji
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteऔर क्या कहूँ ???
रचना के स्तर का प्रसस्ति शब्द संधान सरल है क्या ?