गीत मैं गाने लगा हूं,
स्वप्न फिर बुनने लगा हूं।
तमस से मैं जूझता था,
कुछ न मन को सूझता था,
हृदय के सूने गगन में,
सूर्य सा जलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
आंसुओं के साथ जीते,
वर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
भावनाओं ने उकेरे,
चित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
-महेन्द्र वर्मा
ek geet gaane ke kram men vyakti ke mann men aane wale kuch bhavon ka bahut accha citran kiya hai aapne... wah
ReplyDeleteवाह... ये गीत न जाने कितनो का ह्रदय-गीत होगा...
ReplyDeleteवाह! बहुत ही प्रवाहमय गीत दिल मे उतर गया।
ReplyDeleteभावनाओं ने उकेरे,
ReplyDeleteचित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
बहुत सुंदर रचना -
गीत्मायी,प्रवाहमयी ,सुखमयी....!!
बधाई एवं शुभकामनाएं
bahut sundar bhavabhivyakti ke liye hardik shubhkamnaye .
ReplyDeleteआंसुओं के साथ जीते,
ReplyDeleteवर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत..गीत का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है और मन गुनगुनाने के लिए मज़बूर हो जाता है..
HRIDAY KE SOONE GAGAN ME
ReplyDeleteSURY SA JALNE LAGA HOON
SUNDAR GEET.
kantkon ke beech surbhit suman sa khilne laga hoon .shabdon se bhavon ko bahut sundar roop se abhivyakt kiya hai aapne.bahut pasand aayee
ReplyDeleteयूं ही गीत गाते गाते सफ़र रुचिपूर्ण हो जाता है , बढ़िया गीत ..
ReplyDeleteभावनाओं ने उकेरे,
ReplyDeleteचित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
आद. वर्मा जी,
इतने सुन्दर गीत के बारे में अपना अभिमत लिखने लिए शब्द कहाँ से लाऊं समझ नहीं पा रहा हूँ !
इस गीत के शब्दों के बीच जो धड़क रहा है उसकी अनुगूँज मेरे हृदय को तरंगित कर रही है !
शब्द ,भाव और प्रवाह सब कुछ है इस गीत में !
आभार !
आंसुओं के साथ जीते,
ReplyDeleteवर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
.गीत गाने का कारण जो आप ने बताये उसे पढ़ कर मै निशब्द हो गया हूँ
कंटकों के बीच सुरभित-
ReplyDeleteसुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
आपका यह शास्वतगान यूंही सदा चलता रहे.
आपकी इस कविता भाषा की लहरों में जीवन की हलचल साफ देख सकते हैं।
ReplyDeleteभावनाओं ने उकेरे,
ReplyDeleteचित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
वर्मा जी बहुत सुंदर कविता रची है, भाव और लय का अद्भुत संगम, ढेर सारी बधाइयाँ.
भूल कर सारी व्यथाएं
ReplyDeleteमैं इसे गाने लगा हूँ
धन्यवाद् वर्मा जी - आभार
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteशुभ कामनाएं
बहुत सुन्दर गीत बधाई भाई महेन्द्रजी
ReplyDeleteबहुत ही प्रवाहमय गीत|बढ़िया अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteसुन्दर गीत बधाई
ReplyDeleteभावनाओं ने उकेरे,
चित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
तिमिर के बीच सूर्य बनकर, व्यथा के बीच मुस्कान बनकर और कंटकों में सुरभित पुष्प बनकर जो गीत आपने गाया है वह ऊर्जा और स्फूर्ति का अनंत स्रोत है..
ReplyDeleteआपकी रचनाओं में नूतन भावों के साथ साथ संदेश और शब्द माधूर्य भी दिखाई देता है!!
सहज तरल प्रवाहमयी रचना में छिपा मौन संगीत मन में देर तक गूंजता रहता है. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
.गीत प्रेरणास्पद है.
ReplyDeleteआपके सुझावानुसार लेख १० ता. को प्रकाशित होगा.
बहुत अच्छी प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लगा आपके ब्लॉग में आकर, सुन्दर रचना, साधुवाद स्वीकार करें.
ReplyDeleteआंसुओं के साथ जीते,
ReplyDeleteवर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
geet gaane ki sunder kalpana..........zarur gaiye koi madhur geet..........
वर्मा जी बहुत सुंदर कविता रची है, बहुत अच्छी प्रस्तुति....ढेर सारी बधाइयाँ.
ReplyDeleteवसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए...वर्मा जी
ReplyDeleteकुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
भूल कर सारी व्यथाएं,
ReplyDeleteस्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
बेहतरीन रचना !
.
आंसुओं के साथ जीते,
ReplyDeleteवर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
बहुत ही खूबसूरत गीत बुना है आपने........
आंसुओं के साथ जीते,
ReplyDeleteवर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
जीवंत ....प्रवाहमयी गीत....
भूल कर सारी व्यथायें , ख़ुद को मैं छलने लगा हूं।
ReplyDeleteशाश्वत सार्थक सामयिक सुन्दर शीरीं गीत के लिये महेन्द्र भाई को मुबारकबाद।
गीत मैं गाने लगा हूं,
ReplyDeleteस्वप्न फिर बुनने लगा हूं।
बधाई ....
इसकी कोई न कोई ख़ास वजह होगी .....
भूल कर सारी व्यथाएं,
ReplyDeleteस्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
सार्थक ..बहुत सुन्दर .अच्छा लगा....
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
सुंदर गीत के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteआभार
गीत मैं गाने लगा हूं,
ReplyDeleteस्वप्न फिर बुनने लगा हूं।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
i liked d positivity in the poem.
ReplyDeletegeet me gaane laga hoon, swapn mei bunne laga hoon. lovely.
भावनाओं ने उकेरे,
ReplyDeleteचित्र सुधियों के घनेरे,
कंटकों के बीच सुरभित-
सुमन सा खिलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
bahut hi sunder evam bhavpurna kavita .... behatarin prastuti.
बहुत प्यारा गीत।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
आंसुओं के साथ जीते,
ReplyDeleteवर्ष कितने आज बीते,
भूल कर सारी व्यथाएं,
स्वयं को छलने लगा हूं,
गीत मैं गाने लगा हूं।
बहुत सुन्दर,सही और सार्थक अभिवक्ति है .
वाह वाह , क्या बात है.
आह...मन खिल गया इस अप्रतिम रचना को पढ़...
ReplyDeleteह्रदयहारी मुग्धकारी अद्वितीय गीत...
bohot pyaara sa geet hai.....goonj raha hai zehn mein ab tak.....bohot sundar :)
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