एक दिया तो जल जाने दे,
सूरज को कुछ सुस्ताने दे।
पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।
एक सिरा तो थामो तुम भी,
उलझा है जो सुलझाने दे।
चिंगारी रख ऐसी दिल में,
अंगारों को शरमाने दे।
कैद न कर पंछी पिंजरे में,
उसे मुक्ति का सुर गाने दे।
यादें, इतनी जल्दी न जा,
आंखों को तो भर जाने दे।
बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।
-महेन्द्र वर्मा
एक दिया तो जल जाने दे,
ReplyDeleteसूरज को कुछ सुस्ताने दे।
पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।
बहुत खूब .......सहजता से जीवन का अर्थ समेट लिया इन पंक्तियों में..........
बादल हूं बरसूंगा, पहले
ReplyDeleteपरवत से तो टकराने दे।
भावनाओं को सहजता से अभिव्यक्त किया है आपने ...
पलट रहा क्यूं आईने को,
ReplyDeleteजो सच है वो दिखलाने दे।
एक सिरा तो थामो तुम भी,
उलझा है जो सुलझाने दे।
kya baat hai sir....sunday subah subah mehfil jama di....bohot khoob !
बहुत ही सुन्दर रचना.....शुभकामनायें|
ReplyDeleteपलट रहा क्यूं आईने को,
ReplyDeleteजो सच है वो दिखलाने दे।
वाह जनाब, बहुत सुंदर गजल धन्यवाद
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
यथार्थ भावों की अभिव्यक्ति सुन्दर तरीके से की है.
ReplyDeleteवर्मा सा! कमाल की ग़ज़ल है.. आपने जो भी कहा है सब लाजवाब है.. आपके अशार रूमानियत से दूर हक़ीक़त की एक ऐसी दुनिया तामीर करते हैं कि सुनने वाला हर शेर पर सोचने को मजबूर हो जाता है!! ये शेर वाह वाह से ज़्यादा अपनी अनुगूँज पैदा करते हैं दिलो दिमाग़ पर!!
ReplyDelete(इसे तो और छोटी बहर में भी कहा जा सकता था)
पलट रहा क्यूं आईने को,
ReplyDeleteजो सच है वो दिखलाने दे।
हर शेर कुछ सन्देश दे रहा है और आपने में एक अर्थ छिपाए हुए है बहुत सुंदर, बधाई
आपने भावनाओं को सहजता से अभिव्यक्त किया है| धन्यवाद|
ReplyDeleteबादल हूं बरसूंगा, पहले
ReplyDeleteपरवत से तो टकराने दे।
वाह! उम्दा शेर!!
बादल हूं बरसूंगा, पहले
ReplyDeleteपरवत से तो टकराने दे।
उत्तम प्रस्तुति. वाह...
यादें, इतनी जल्दी न जा,
ReplyDeleteआंखों को तो भर जाने दे।
बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।
mahendra ji bahut hi gahre ehsas ke sunder nazm....
एक दिया तो जल जाने दे,
ReplyDeleteसूरज को कुछ सुस्ताने दे.......
.....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
एक सिरा तो थामो तुम भी,
ReplyDeleteउलझा है जो सुलझाने दे।
चिंगारी रख ऐसी दिल में,
अंगारों को शरमाने दे।
BEHAD PRABHAWSHAALI ANDAAZ AUR SAARGARBHIT SAMPRESHAN.
पलट रहा क्यूं आईने को,
ReplyDeleteजो सच है वो दिखलाने दे।
बहुत सार्थक और प्रभावी गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा..
बड़ी प्यारी सौम्य रचना लगी ..आनंद आ गया ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDelete'क़ैद न कर पंछी पिंजरे में
ReplyDeleteउसे मुक्ति का सुर गाने दे '
उम्दा शेर..सुन्दर ग़ज़ल
बहुत ही सुन्दर रचना, आभार.
ReplyDeleteबरसें, झूम कर बरसों बरस बरसें.
ReplyDeleteयादें, इतनी जल्दी न जा,
ReplyDeleteआंखों को तो भर जाने दे।
बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।
साधारण शब्दों में बहुत ही उत्कृष्ट ग़ज़ल कही है आपने..........
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ReplyDeleteपलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे॥
वाह! क्या बात लिखी है महेंद्र जी , आनंद आ गया ।
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अभी अभी आपकी सुन्दर - सी ग़ज़ल पढ़ी.निम्न शेर पर जैसे ही नज़र पड़ी,मज़ा गया.
ReplyDeleteपलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे
आइना तो सच बोलेगा ही. ज़िया नटहौरी साहब का एक शेर याद आ गया . आप भी देखिये:-
अब तो मुमकिन ही नहीं दौरे-जहालत का इलाज,
आइना जिसको दिखाया वो बुरा मान गया.
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने -
एक दिया तो जल जाने दे,
सूरज को कुछ सुस्ताने दे।
पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।
सारे अश्'आर कुछ न कुछ कहने को प्रेरित करते हैं
वाह ! बहुत बढ़िया !
♥ ♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं! :)
बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जीवन के सार को सजों दिया आपने।
ReplyDelete---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
एक अर्थ छिपाए हुए है बहुत सुंदर, बधाई
प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
एक सिरा तो थामो तुम भी,
ReplyDeleteउलझा है जो सुलझाने दे।
क्या बात है महेन्द्र जी. बहुत सुन्दर.
महेंद्र जी ..आपकी गजल हमेशा लाजवाब होती है... बहुत सुन्दर ... आपकी गज़ल कल चर्चामंच पर होगी... शुक्रवार को... आप वह भी आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा ...सादर
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
शानदार रचना
ReplyDeleteसभी शेर कुछ न कुछ संदेश लिए हुए है।
ReplyDeleteखासकर, 'पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।'
शानदार, जानदार, मजेदार रचना।
बादल हूं बरसूंगा, पहले
ReplyDeleteपरवत से तो टकराने दे।
जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी ! हर शेर लाजवाब और हर लफ्ज़ बेशकीमती है ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
उलझा है जो सुलझाने दे।
ReplyDeleteबहुत खूब महेंद्र भाई| सुंदर ग़ज़ल|
क्या कहूँ ... कुछ भी कहने के लिए जगह कहाँ छोड़ी आपने ... हरेक शेर बेहतरीन है ... एकदम गजब !
ReplyDeleteपलट रहा क्यूं आईने को,
ReplyDeleteजो सच है वो दिखलाने दे।
बहुत खूबसूरत गज़ल ...हर शेर मुक्कमल ..
चिंगारी रख ऐसी दिल में,
ReplyDeleteअंगारों को शरमाने दे।
सुंदर गज़ल मन में उतरती है.