नवगीत




पंछी के कोटर में 
सपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।


गगन तिमिर निरख रहा
तारों का क्रंदन,
रजनी के भाल, चंद्र
लेप गया चंदन।


दृग संपुट खोल रहे
भोर के उजाले।


जुगनू की देह हुई
रश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।


नीरव के अधरों के
तोड़ सभी ताले।

                        -महेन्द्र वर्मा

39 comments:

  1. पंछी के कोटर में
    सपनों के जाले।
    चुगती है संध्या भी
    नेह के निवाले।
    बहुत ही भावमयी रचना।

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  2. पंछी के कोटर में
    सपनों के जाले।
    चुगती है संध्या भी
    नेह के निवाले।

    बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर..

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  3. गगन तिमिर निरख रहा
    तारों का क्रंदन,
    रजनी के भाल, चंद्र
    लेप गया चंदन।

    जुगनू की देह हुई
    रश्मि पुंज वर्तन,
    नूपुर छनकाता है
    झींगुर का नर्तन।

    वाह!वाह!वाह!
    शिल्प के कसाव के तो कहने ही क्या हैं, विम्बों का भी कोई जवाब नहीं !
    इस उत्कृष्ट नव गीत के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
    आभार !

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  4. आदरणीय महेंद्र जी
    नमस्कार !
    बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर..

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  5. रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
    कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  6. कभी-कभी अपनी कमतरी का एहसास होता है । काव्य समझने की शक्ति कम है , इसलिए कविता का अर्थ ठीक से नहीं समझ सकी । वैसे पढने में बहुत अच्छी लगी प्रस्तुति।

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  7. अत्यन्त भावपूर्ण उत्तम प्रस्तुति.
    आभार सहित...

    शुक्रिया भी... शिकायत भी...!

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  8. बहुत खूबसूरत नवगीत है भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..



    चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  9. आपका शब्द-संयोजन बहुत सुद्ढ़ है वर्मा जी। सशज तरीके से इतनी खूबसूरत अभिव्यकित, पढ़कर मजा आ जाता है। पढ़ने के बाद लगता है कि हम भी लिख सकते हैं, लेकिन सबके वश का नहीं ऐसा सुंदर लिखना।
    आभार स्वीकारें सर।

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  10. जुगनू की देह हुई
    रश्मि पुंज वर्तन,
    नूपुर छनकाता है
    झींगुर का नर्तन।
    bahut sundar.
    sanjay ji ne bilkul sahi kaha hai.

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  11. गगन तिमिर निरख रहा
    तारों का क्रंदन,
    रजनी के भाल, चंद्र
    लेप गया चंदन।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति......

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  12. पंछी के कोटर में
    सपनों के जाले।
    चुगती है संध्या भी
    नेह के निवाले।
    kya kahoon shabd jaise jam hokar rah gaye hon bahut shandar prastuti..

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  13. दृग संपुट खोल रहे
    भोर के उजाले।


    जुगनू की देह हुई
    रश्मि पुंज वर्तन,
    नूपुर छनकाता है
    झींगुर का नर्तन।


    नीरव के अधरों के
    तोड़ सभी ताले।
    bahut hi pyaari rachna ,bha gayi ,holi parv ki badhai .

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  14. भागते-भटकते लौटे के लिए ठंडी लेप की तरह.

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  15. सुंदर काव्य बिंबों से सजी रचना.

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  16. सुंदर अभिव्यक्ति ,कोमल नवगीत

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  17. जुगनू की देह हुई
    रश्मि पुंज वर्तन,
    नूपुर छनकाता है
    झींगुर का नर्तन।
    निशा के नख शिख सौन्दर्य वर्णन की सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  18. पंछी के कोटर में, सपनों के जाले,
    चुगती है संध्या भी, नेह के निवाले।

    बेहतरीन अभिव्यक्ति, वर्मा जी को तहे-दिल बधाई।

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  19. दृग सम्‍पुट............वाह वाह
    माटी की सुगंध बिखेरता उत्तम नवगीत
    बधाई महेंद्र भाई

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  20. अद्भुत!
    कसा हुआ शिल्प और अनूठे बिबों ने नव गीत को कई बार पढने पर मज़बूर किया।

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  21. महेंद्र भाई मेरे पास आप का ईमेल पता नहीं है| कृपया मुझे navincchaturvedi@gmail.com पर एक टेस्ट मेल भेजने की कृपा करें|

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  22. नवगीत अत्यन्त सुन्दर बन पडा है ।

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  23. बहुत खूबसूरत भाव.
    खूबसूरत अभिव्यक्ति.
    खूबसूरत शब्द संयोजन .
    सलाम.

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  24. वर्मा साहब!
    इतने सुन्दर शब्दों में आपने जादू बिखेरा है की बस सादगी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता.. पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो ठुमक चलत रामचंद्र की पैजनियाँ बज रही हैं!!

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  25. पंछी के कोटर में
    सपनों के जाले।
    चुगती है संध्या भी
    नेह के निवाले।


    गगन तिमिर निरख रहा
    तारों का क्रंदन,
    रजनी के भाल, चंद्र
    लेप गया चंदन।

    बहुत सुंदर

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  26. आदरणीय महेंद्र वर्मा जी, बहुत ही सुन्दर है आपकी रचना.

    पंछी के कोटर में
    सपनों के जाले।
    चुगती है संध्या भी
    नेह के निवाले।

    इन पंक्तियाँ का तो क्या कहना, आभार.

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  27. बहुत सुन्दर रचना |

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  28. बेहतरीन अभिव्यक्ति...जयशंकर प्रसाद याद आ गए...

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  30. बहुत सुन्दर नवगीत बन पड़ा है .आपको बधाई इस नवगीत की.

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  31. जुगनू की देह हुई
    रश्मि पुंज वर्तन,
    नूपुर छनकाता है
    झींगुर का नर्तन।

    वर्मा जी,
    बड़ी प्यारी सी लगी आपकी रचना। बधाई!!

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  32. एक बहुत अच्छी ओर सुंदर रचना धन्यवाद

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  33. गीत ,,,
    भाव और अभिव्यक्ति
    का एक अनुपम सौजन्य बन कर
    हम तक पहुंचा है ...

    अभिवादन .

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  34. आदरणीय महेंद्र जी नमस्कार !
    कृपया थोडा सरल शब्दों में लिखें मुझ जैसे अज्ञानी को समझने में बहुत दिक्कत हो रही है.
    शायद प्रकृति का बहुत शूक्ष्म चित्रण किया है आपने !
    कुछ गलत हो तो क्षमा करें !!

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  35. झींगुर, जुगनू, रजनी तारे, की प्राकृतिक छटा का सजीव चित्रण

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  36. bahut sunder bhavo ko liye alankrut rachana chaap chod gayee....

    ek arse baad itnee sunder hindi padne ko milee .
    aabhar

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  37. गगन तिमिर निरख रहा
    तारों का क्रंदन,
    रजनी के भाल, चंद्र
    लेप गया चंदन।..
    महेंद्र जी ... बहुत ही सुंदर भाव लिए है ये नवगीत ..... शब्दों और अर्थों का लाजवाब संयोजन ......

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  38. Bachapan me padhi kavita ki yaad dila di...bahut sundar hai yah ...navgeet

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