पंछी के कोटर में
सपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।
गगन तिमिर निरख रहा
तारों का क्रंदन,
रजनी के भाल, चंद्र
लेप गया चंदन।
दृग संपुट खोल रहे
भोर के उजाले।
जुगनू की देह हुई
रश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।
नीरव के अधरों के
तोड़ सभी ताले।
-महेन्द्र वर्मा
पंछी के कोटर में
ReplyDeleteसपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।
बहुत ही भावमयी रचना।
पंछी के कोटर में
ReplyDeleteसपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर..
गगन तिमिर निरख रहा
ReplyDeleteतारों का क्रंदन,
रजनी के भाल, चंद्र
लेप गया चंदन।
जुगनू की देह हुई
रश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।
वाह!वाह!वाह!
शिल्प के कसाव के तो कहने ही क्या हैं, विम्बों का भी कोई जवाब नहीं !
इस उत्कृष्ट नव गीत के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
आभार !
आदरणीय महेंद्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर..
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
कभी-कभी अपनी कमतरी का एहसास होता है । काव्य समझने की शक्ति कम है , इसलिए कविता का अर्थ ठीक से नहीं समझ सकी । वैसे पढने में बहुत अच्छी लगी प्रस्तुति।
ReplyDeleteअत्यन्त भावपूर्ण उत्तम प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार सहित...
शुक्रिया भी... शिकायत भी...!
बहुत खूबसूरत नवगीत है भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
आपका शब्द-संयोजन बहुत सुद्ढ़ है वर्मा जी। सशज तरीके से इतनी खूबसूरत अभिव्यकित, पढ़कर मजा आ जाता है। पढ़ने के बाद लगता है कि हम भी लिख सकते हैं, लेकिन सबके वश का नहीं ऐसा सुंदर लिखना।
ReplyDeleteआभार स्वीकारें सर।
जुगनू की देह हुई
ReplyDeleteरश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।
bahut sundar.
sanjay ji ne bilkul sahi kaha hai.
गगन तिमिर निरख रहा
ReplyDeleteतारों का क्रंदन,
रजनी के भाल, चंद्र
लेप गया चंदन।
बेहतरीन अभिव्यक्ति......
पंछी के कोटर में
ReplyDeleteसपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।
kya kahoon shabd jaise jam hokar rah gaye hon bahut shandar prastuti..
दृग संपुट खोल रहे
ReplyDeleteभोर के उजाले।
जुगनू की देह हुई
रश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।
नीरव के अधरों के
तोड़ सभी ताले।
bahut hi pyaari rachna ,bha gayi ,holi parv ki badhai .
भागते-भटकते लौटे के लिए ठंडी लेप की तरह.
ReplyDeleteसुंदर काव्य बिंबों से सजी रचना.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ,कोमल नवगीत
ReplyDeleteजुगनू की देह हुई
ReplyDeleteरश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।
निशा के नख शिख सौन्दर्य वर्णन की सुन्दर अभिव्यक्ति .
पंछी के कोटर में, सपनों के जाले,
ReplyDeleteचुगती है संध्या भी, नेह के निवाले।
बेहतरीन अभिव्यक्ति, वर्मा जी को तहे-दिल बधाई।
दृग सम्पुट............वाह वाह
ReplyDeleteमाटी की सुगंध बिखेरता उत्तम नवगीत
बधाई महेंद्र भाई
अद्भुत!
ReplyDeleteकसा हुआ शिल्प और अनूठे बिबों ने नव गीत को कई बार पढने पर मज़बूर किया।
महेंद्र भाई मेरे पास आप का ईमेल पता नहीं है| कृपया मुझे navincchaturvedi@gmail.com पर एक टेस्ट मेल भेजने की कृपा करें|
ReplyDeleteनवगीत अत्यन्त सुन्दर बन पडा है ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव.
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति.
खूबसूरत शब्द संयोजन .
सलाम.
वर्मा साहब!
ReplyDeleteइतने सुन्दर शब्दों में आपने जादू बिखेरा है की बस सादगी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता.. पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो ठुमक चलत रामचंद्र की पैजनियाँ बज रही हैं!!
गागर में सिमटे हों जैसे सागर के भाव।
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
पंछी के कोटर में
ReplyDeleteसपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।
गगन तिमिर निरख रहा
तारों का क्रंदन,
रजनी के भाल, चंद्र
लेप गया चंदन।
बहुत सुंदर
आदरणीय महेंद्र वर्मा जी, बहुत ही सुन्दर है आपकी रचना.
ReplyDeleteपंछी के कोटर में
सपनों के जाले।
चुगती है संध्या भी
नेह के निवाले।
इन पंक्तियाँ का तो क्या कहना, आभार.
बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति...जयशंकर प्रसाद याद आ गए...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत बन पड़ा है .आपको बधाई इस नवगीत की.
ReplyDeleteजुगनू की देह हुई
ReplyDeleteरश्मि पुंज वर्तन,
नूपुर छनकाता है
झींगुर का नर्तन।
वर्मा जी,
बड़ी प्यारी सी लगी आपकी रचना। बधाई!!
एक बहुत अच्छी ओर सुंदर रचना धन्यवाद
ReplyDeleteगीत ,,,
ReplyDeleteभाव और अभिव्यक्ति
का एक अनुपम सौजन्य बन कर
हम तक पहुंचा है ...
अभिवादन .
आदरणीय महेंद्र जी नमस्कार !
ReplyDeleteकृपया थोडा सरल शब्दों में लिखें मुझ जैसे अज्ञानी को समझने में बहुत दिक्कत हो रही है.
शायद प्रकृति का बहुत शूक्ष्म चित्रण किया है आपने !
कुछ गलत हो तो क्षमा करें !!
झींगुर, जुगनू, रजनी तारे, की प्राकृतिक छटा का सजीव चित्रण
ReplyDeletebahut sunder bhavo ko liye alankrut rachana chaap chod gayee....
ReplyDeleteek arse baad itnee sunder hindi padne ko milee .
aabhar
गगन तिमिर निरख रहा
ReplyDeleteतारों का क्रंदन,
रजनी के भाल, चंद्र
लेप गया चंदन।..
महेंद्र जी ... बहुत ही सुंदर भाव लिए है ये नवगीत ..... शब्दों और अर्थों का लाजवाब संयोजन ......
Bachapan me padhi kavita ki yaad dila di...bahut sundar hai yah ...navgeet
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