रात ने जब-जब किया श्रृंगार है,
चांद माथे पर सजा हर बार है।
ओस, जैसे अश्रु की बूंदें झरीं,
चांदनी रोती रही सौ बार है।
नीलिमा लिपटी सुबह आकाश से,
क्षितिज का मुंह लाज से रतनार है।
खिलखिलाकर खिल उठी है कुमुदिनी,
किरण ने उस पर लुटाया प्यार है।
ढीठ बादल देख इतराता हुआ,
सूर्य का चेहरा हुआ अंगार है।
दिवस के मन में उदासी छा गई,
सांझ उसका छूटता घर-बार है।
हैं यही सब रंग जीवन में मनुज के,
लोग कहते हैं यही संसार है।
-महेन्द्र वर्मा
आदरणीय महेंद्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
वाह ! बहुत सार्थक प्रस्तुति..
नव वर्ष में हमेशा ये बहार रहे !
ReplyDeleteमेरी शुभ कामना हमेशा ये स्नेह बना रहे !!
sundar rchana.
हैं यही सब रंग जीवन में मनुज के,
ReplyDeleteलोग कहते हैं यही संसार है।
वाह वाह .
जीवन के विभिन्न रंगों से सजी गीतिका बहुत बहुत प्यारी है.
नीलिमा लिपटी सुबह आकाश से,
ReplyDeleteक्षितिज का मुंह लाज से रतनार है।
बेहतरीन लाजवाब।
प्रकृति, खास कर सुबह का इतना मनोरम चित्रण राम नरेश त्रिपाठी के खण्ड काव्य पथिक में पढा था। याद आ गया
राग रथी रवि राग पथी सविराग विनोद बसेरा
प्रकृति भवन के सब विभवों से सुंदर सरस सवेरा।
ओस, जैसे अश्रु की बूंदें झरीं,
ReplyDeleteचांदनी रोती रही सौ बार है
बेहतरीन गीतिका
ओस, जैसे अश्रु की बूंदें झरीं,
ReplyDeleteचांदनी रोती रही सौ बार है।
बहुत सुन्दर..नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!
महेन्द्र भाई इस गज़ल के सारे अशआर उम्दा लगे लेकिन मक़्ता तो लाज़वाब है, ज़िन्दगी की फ़िलासफ़ी को मुकम्मल तौर से बयां कर रही है।
ReplyDeleteहैं यही सब रंग जीवन में मनुज के,
ReplyDeleteलोग कहते हैं यही संसार है।
वाह....बहुत उम्दा ....नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
हैं यही सब रंग जीवन में मनुज के,
ReplyDeleteलोग कहते हैं यही संसार है।
bahut sundar ...नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
सुंदर गीत के लिए आभार
ReplyDeleteनवरात्रि तिहार के गाड़ा गाड़ा बधई
दिवस के मन में उदासी छा गई,
ReplyDeleteसांझ उसका छूटता घर-बार है।
हैं यही सब रंग जीवन में मनुज के,
लोग कहते हैं यही संसार है।
sukh -dukh ke rango ki yahan khinchi hui hai rekha ,jeevan ke dono pahlu ko bakhoobi saheja hai aapne .ati sundar .aabhari hoon aapki .
नीलिमा लिपटी सुबह आकाश से,
ReplyDeleteक्षितिज का मुंह लाज से रतनार है।
bahut sundar panktiyan-navvarsh-samvatsar kee hardik shubhkamnayen
आपकी रचनाएँ धाराप्रवाह, सरल और मनमोहक रहती हैं ! शुभकामनायें भाई जी !
ReplyDeleteबीती विभावरी जाग री----
ReplyDeleteमानव के उत्थान से पतन तक , उदय से अस्त तक . हर शेर भाव विभोर करते हुए .
'नीलिमा लिपटी सुबह आकाश से '
ReplyDeleteक्षितिज का मुंह लाज से रतनार है |
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महेंद्र जी ,
बहुत अच्छी गीतिका (हिंदी ग़ज़ल ) ....हर बंद (शेर ) सुन्दर
जिंदगी से सारे रंग आपकी इस रचना में झिलमिला रहे हैं। सच ही कहा है - "यही है जीवन का रंग रूप" । कहीं होठों पर मुस्कुराहटें हैं तो साथ-साथ आँसू भी छलक पड़ते हैं । जीवन इन्द्रधनुषी है ।
ReplyDeleteखिलखिलाकर खिल उठी है कुमुदिनी,
ReplyDeleteकिरण ने उस पर लुटाया प्यार है।..
Is geetika mein to madhur prakriti ka chitran hai ... bahut hi lajawaab hai ...
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteनवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
बेहतरीन लाजवाब।
ReplyDeleteसुंदर गीत के लिए आभार!!
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं
जितनी सुन्दर भाषा उतनी ही सुन्दर भावना ... बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteयह गीतिका है या पेंटिंग!! वर्मा साहब मन मोह लिया आपने.. प्रकृति का इतना सुन्दर और सजीव चित्रण देखकर मुग्ध हूँ!!
ReplyDeleteदिवस के मन में उदासी छा गई,
ReplyDeleteसांझ उसका छूटता घर-बार है।
बहुत खुबसूरत अहसास और उनको सुन्दर शब्दों से सजाया . बधाई
हमेशा की तरह सहज रूप से सब सिंगार संजो दिये है सर, बहुत शानदार।
ReplyDeleteढीठ बादल देख इतराता हुआ,
ReplyDeleteसूर्य का चेहरा हुआ अंगार है।
सुन्दर बिम्ब दिया है
बेहतरीन रचना
खिलखिलाकर खिल उठी है कुमुदिनी,
ReplyDeleteकिरण ने उस पर लुटाया प्यार है।
बहुत ही सुंदर!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुंदर गीत के लिए आभार|
ReplyDeleteगागर में सागर से हैं सारे के सारे शेर।
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प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्यादा खतरनाक है ?
bilkul yahi sansar hai..........
ReplyDeleteyu kahen to rangmanch hai......
"aus jaise ashru kee boonden jharin ,chaandnee roti rhi sau baar hai "
ReplyDeletesundram manoharam "geetikaa" saansaar hai .
veerubhai .
ढीठ बादल देख इतराता हुआ,
ReplyDeleteसूर्य का चेहरा हुआ अंगार है।
Behtareen!!!