नारायण स्वामी


दो दिन कौ मेहमान



नारायण स्वामी का जन्म विक्रम संवत 1886 में रावलपिंडी में हुआ। ये बाल्यावस्था से ही संतों और भगवद्भक्तों में विशेष रुचि रखते थे। संवत 1900 में ये वृंदावन की यात्रा के लिए निकले और वहीं रहने लगे। जीविका निर्वाह के लिए लालबाबू के मंदिर के कार्यालय में नौकरी कर ली। दिन भर काम करते और रात को मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण के दर्शन करते तथा पद रचना करते। 
नारायण स्वामी प्रायः केशीघाट पर खपटिया बाबा के घेरे में यमुना तट पर रहते थे। वृंदावन की रासमंडली में उनके पदों का गायन होता था। कुछ दिनों बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर पूर्ण वैराग्य ले लिया। नारायण स्वामी ने ब्रज विहार नामक एक ग्रंथ की रचना की थी। उसमें भगवान की लीलाओं का श्रृगाररस से ओत-प्रोत सरस वर्णन हुआ है। उनके दोहे और पद बड़े ही उपदेशप्रद और सरल हैं। श्रीगोवर्धन के समीप फाल्गुन कृष्ण एकादशी संवत 1957 को उन्होंने देहत्याग किया।

प्रस्तुत है, नारायण स्वामी का एक पद-

मूरख, छांड़ि वृथा अभिमान।
औसर बीति चल्यौ है तेरो, दो दिन कौ मेहमान।
भूप अनेक भयो पृथ्वी पर, रूप तेज बलवान।
कौन बच्यो या काल ब्याल तें, मिट गए नाम निसान।
धवल धाम धन गज रथ सेना, नारी चंद्र समान।
अंत समै सब ही कों तजकै, जाय बसे समसान।
तजि सतसंग भ्रमत बिषयन में जा बिधि मरकट स्वान।
छिन भरि बैठि न सुमरनि कीन्हों, जासों होय कल्यान।
रे मन मूढ़ अनत जनि भटकै, मेरी कहो अब मान।
नारायण ब्रजराज कुंवर सों, बेगहि करि पहिचान।


भावार्थ-
अरे मूर्ख मन, तू व्यर्थ का अभिमान त्याग दे। तेरा समय बीत चुका है, इस संसार में अब तू केवल दो दिन का मेहमान है। इस पृथ्वी पर रूप, तेज और बलयुक्त अनेक राजा हुए किंतु सब काल के गाल में समा गए। धन, संपत्ति, रथ सेना आदि को अंतिम समय में छोड़कर श्मशान में जाना पड़ा। जैसे कुत्ता मरे हुए जीवों के आस-पास विचरण करता है, उसी तरह तू सतसंग को छोड़कर विषयों में भटक रहा है। कुछ क्षण बैठ कर हरि को स्मरण नहीं करता जिससे तेरा कल्याण होगा। अब और मत भटक, श्रीकृष्ण के साथ शीघ्र ही पहचान बना ले।

31 comments:

  1. आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
    नमस्कार !
    ... प्रशंसनीय रचना - बधाई

    ReplyDelete
  2. भूप अनेक भयो पृथ्वी पर, रूप तेज बलवान।
    कौन बच्यो या काल ब्याल तें, मिट गए नाम निसान।

    रूप, तेज और बल के धनी लोगों का निशान बेशक मिट जाये, सच्चे भक्तों का नाम हमेशा जीवित रहता है। अच्छा परिचय करवाया आपने।

    वर्मा जी, शायद नारायण स्वामी के देहत्याग वाले वर्ष में कुछ गलती हो गई है। आपका ईमेल एड्रेस नहीं था, इसलिये यहीं लिखा है। धृष्टता के लिये क्षमा।

    ReplyDelete
  3. आपकी ये ब्लॉग अनेक लोगों के लिए मार्ग दर्शक बनेगी. बहुत गहन अध्ययन और विवेचना के बाद ही ऐसा लेख लिखा जाता है. नारायण स्वामी तथा उनकी रचना के बारे में परिचय करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.
    आज के हालात में बहुत सही विषय चुना आपने. ये सब बातें हमें सिर्फ अपनों की मृत्यु के समय ही याद आती है उसके बाद सब कुछ भूल के हम फिर वही पुराने ढर्रे पर चलने लगते हैं -ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. भाई महेंद्र जी बहुत ही सुंदर पोस्ट /एक अद्भुत संत कवि के बारे में जानकारी बहुत ही सुखद और ज्ञानवर्धक लगी आपको इस पुनीत कार्य के लिए नमन और शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  5. त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित कराने के लिए धन्यवाद, संजय जी। संशोधन कर दिया है।

    ReplyDelete
  6. धवल धाम धन गज रथ सेना, नारी चंद्र समान।
    अंत समै सब ही कों तजकै, जाय बसे समसान।

    जीवन का यही एक शास्वत सत्य है..इतने महान संत से परिचय कराने के लिये आभार..

    ReplyDelete
  7. जब आपसे जुडा था, तब कई संत कवियों और उनकी रचनाओं से परिचय हुआ. फिर आपकी काव्य वर्षा में स्नान का आनंद लिया. आज पुनः एक सैट कवि की रचना से परिचय हुआ. आभार!!

    ReplyDelete
  8. संत नारायण स्वामी जी के बारे में जानना और उनका पद पढ़ना सुखद है.आभार.

    ReplyDelete
  9. अति उत्तम ,सार्थक ,ज्ञान और भक्ति के भावों से ओतप्रोत शानदार पोस्ट के लिए बधाई व आभार.संत नारायण स्वामीजी के बारे में जानने को मिला यह मेरा सौभाग्य है.

    ReplyDelete
  10. अति सुँदर . सलिल जी ने जो कहा है मै भी वैसे ही सोचता हूँ .

    ReplyDelete
  11. वाह वाह ...इस सत्संग में बैठ कर आनंद आ गया ....

    ReplyDelete
  12. आपने इतिहास के संतों से और उनकी रचानाओ से हमें रू-ब-रू करा कर हम पर अहसान कर रहे हैं आप इसके लिये धन्यवाद के पात्र हैं।

    ReplyDelete
  13. अरे मूर्ख मन, तू व्यर्थ का अभिमान त्याग दे। तेरा समय बीत चुका है, इस संसार में अब तू केवल दो दिन का मेहमान है। इस पृथ्वी पर रूप, तेज और बलयुक्त अनेक राजा हुए किंतु सब काल के गाल में समा गए।
    kitni uchit baate hai ,.sun

    ReplyDelete
  14. भूप अनेक भयो पृथ्वी पर, रूप तेज बलवान।
    कौन बच्यो या काल ब्याल तें, मिट गए नाम निसान।
    धवल धाम धन गज रथ सेना, नारी चंद्र समान।
    अंत समै सब ही कों तजकै, जाय बसे समसान।

    Bahut arthpoorn panktiyan hain....Padhwane ka aabhar...

    ReplyDelete
  15. इस संत कवि परिचय के लिए आभार । अकेले ही संसार में आगमन होता है और अकेले ही एक दिन चुप-चाप चले जाना होता है।

    ReplyDelete
  16. जीवन की सच्चाई जो कल थी वही आज भी है !संत कवि नारायण स्वामी जी के दुर्लभ पद पढ़ कर अच्छा लगा !
    उनके पदों को पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने के लिए आभार !

    ReplyDelete
  17. नारायण स्वामी पर जानकारी रुचिकर लगी !

    ReplyDelete
  18. उत्तम प्रस्तुति जीवन के यथार्थ की ।

    ReplyDelete
  19. bahut achcha laga narayan swami ke baare me jaankar. saath hi swami ki rachna bhi bahut hi achchi lagi. dhanyawaad .

    ReplyDelete
  20. नारायण स्वामी और उनकी किसी रचना से यह मेरा पहला परिचय रहा. सुखद अनुभूति और आपको धन्यवाद.

    ReplyDelete
  21. नारायण स्वामी पर जानकारी रुचिकर लगी| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  22. आदरणीय महेंद्र जी ,
    संत नारायण स्वामी जी के बारे में जानकार बड़ा अच्छा लगा |

    स्वामी जी का पद जीवन की क्षणभंगुरता को स्पष्ट करते हुए ईश्वरोन्मुख होने की सबल प्रेरणा देता है |

    ReplyDelete
  23. इनके बारे में जानकार अच्छा लगा ! आभार आपका !!

    ReplyDelete
  24. बहुत ही सुन्दर, भावार्थ तो बहुत ही सुन्दर लगा. आभार.

    ReplyDelete
  25. आत्म कल्याण की ओर प्रेरित करने वाला पद ।

    ReplyDelete
  26. आपका मेरे ब्लॉग पर राम-जन्म के शुभावसर पर हार्दिक स्वागत है.
    'राम-जन्म-आध्यात्मिक चिंतन-१'मेरी नई पोस्ट है.

    ReplyDelete