अब हमारे शहर का दस्तूर है यह



घबराइये मत

इस ज़माने की चलन से चौंकिये मत,
कीजिये कुछ, थामकर सिर बैठिये मत।


आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है,
भूलकर भी खिड़कियों को खोलिये मत।


अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
हादसों के बीच रहिये भागिये मत।


मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।



रौशनी तो झर रही है तारकों से,
अब अंधेरी रात को तो कोसिये मत।


                                                                       -महेन्द्र वर्मा




24 comments:

  1. मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।
    bahut prernadayak prastuti.badhai.

    ReplyDelete
  2. आदरणीय महेंद्र जी
    नमस्कार !
    मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।
    वाह ! बहुत सार्थक प्रस्तुति.....हरेक शेर लाज़वाब..

    ReplyDelete
  3. सटीक और सार्थक प्रस्तुति.व्यवस्था के ऊपर तीखा व्यंग्य छिपा है आपकी अभिव्यक्ति में. 'कीजिये कुछ' कहकर कर्म करने के लिए भी प्रेरित किया है.सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

    ReplyDelete
  4. अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
    हादसों के बीच रहिये भागिये मत।

    Great couplets !

    Each one is carrying wonderful philosophy in it.

    .

    ReplyDelete
  5. अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
    हादसों के बीच रहिये भागिये मत।

    बेहतरीन गज़ल. हरेक शेर जीवन से जुड़ा हुआ और बहुत उम्दा..आभार

    ReplyDelete
  6. रौशनी तो झर रही है सितारों से,
    अमावस की रात को अब कोसिये मत।
    बहुत बढ़िया .....कितने सकारात्मक भाव हैं....

    ReplyDelete
  7. मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।

    वर्मा जी एक शेर याद आ रहा है
    जो बात कर रहा था अभी खेलने की आग से ,
    जरा सी आग क्या लगी की मोम सा पिघल गया |
    गजल बहुत अच्छी लगी बधाई हो...

    ReplyDelete
  8. मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।


    रौशनी तो झर रही है सितारों से,
    अमावस की रात को अब कोसिये मत।

    बहुत अच्छी गज़ल ..

    ReplyDelete
  9. देश के गर्म माहौल, बेहिस समाज और बेसरोकार इंसान की सच्ची तस्वीर..
    मकता दुबारा ध्यान चाहता है!

    ReplyDelete
  10. आप बहुत दिल से लिखते हैं ..बहुत ही गहन और चिंता जगती रचना ..

    ReplyDelete
  11. मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।

    बहुत गहन ..अर्थपूर्ण ..आज के समय को बयां करती हुई ..उत्तम प्रस्तुति ..

    ReplyDelete
  12. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (9-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  13. भूल कर भी खिडकियां खेालिये मत । वाह क्या बात है। अब हमारे शहर में बारात हो या वारदात
    अब किसी भी बात पर खुलती नहीं है खिडकियां
    ओैर जो लोग मोम के घरों में बैठे है वह भी छुप कर

    ReplyDelete
  14. आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है,
    भूलकर भी खिड़कियों को खोलिये मत।
    अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
    हादसों के बीच रहिये भागिये मत।

    बहुत खूब लिखा है आपने! इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई!

    ReplyDelete
  15. अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
    हादसों के बीच रहिये भागिये मत।...

    बहुत ही लाजवाब शेर ... और ग़ज़ल के बारे मैं क्या कहूँ .. बस सुभान अल्ला ...

    ReplyDelete
  16. अब हमारे शहर का दस्तूर है यह ,
    हादसों के बीच रहिये ,भागिए मत ।
    वक्त किसके लिए कब ठाहरा है ,
    वक्त को लगाम दीजिये मत ।
    अच्छी प्रस्तुति !
    अच्छी रचना पढवाने के लिए आपका शुक्रिया .

    ReplyDelete
  17. सुंदर गज़ल भाई महेंद्र जी बधाई और शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  18. वाह , सुँदर रचना . यथार्थ को बयां करती हुई .

    ReplyDelete
  19. आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है,
    भूलकर भी खिड़कियों को खोलिये मत।

    बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने ... सुन्दर ग़ज़ल !

    ReplyDelete
  20. 'मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो

    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत '

    ...............बिलकुल सही कहा वर्मा जी ....बढ़िया शेर

    ..................उम्दा ग़ज़ल

    ReplyDelete
  21. मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
    आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।
    रौशनी तो झर रही है सितारों से,
    अमावस की रात को अब कोसिये मत
    ...wah! umda gajal!

    ReplyDelete
  22. अमावस की रात को अब कोसिये मत.

    बिलकुल नहीं साहब अब तो आदत पड गई है । वाकई सामूहिक रुप से कुछ करने का यही वक्त है ।

    ReplyDelete
  23. रौशनी तो झर रही है सितारों से,
    अमावस की रात को अब कोसिये मत।

    मैं आपकी ग़ज़लों का कायल हूँ. बहुत ख़ूब. वाह.

    ReplyDelete
  24. खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें|

    ReplyDelete