नवगीत


पोखर को सोख रही
जेठ की दुपहरी,
मरुथल की मृगतृष्णा
सड़कों पर पसरी।


धू-धू कर धधक रहे
किरणों के शोले,
उग आए धरती के 
पांव पर फफोले।


शीतलता बंदी है 
सूर्य की कचहरी।
मरुथल की मृगतृष्णा
सड़कों पर पसरी।


उबली हवाओं की 
पोटली खुली है,
बुधियारिन नीम तले
छांव सी रही है।


जमुहाई लेती है
मुंह खोले गगरी।
पोखर को सोख रही
जेठ की दुपहरी।

                             -महेन्द्र वर्मा

40 comments:

  1. bahut sateek chitran jethh ki dopahri ka .aabhar

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  2. गर्मी की तपिश को शब्दों में बखूबी व्यक्त किया है और सूर्य की कचहरी तो वाह वाह ....

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  3. जमुहाई लेती है
    मुंह खोले गगरी।
    पोखर को सोख रही
    जेठ की दुपहरी।



    जेठ की दोपहरी का बहुत सुंदर और सजीव चित्रण है ..बिलकुल अलग बिम्बों का प्रयोग ..
    बहुत अच्छी लगी रचना ..!!

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  4. उबली हवाओं की
    पोटली खुली है,
    बुधियारिन नीम तले
    छांव सी रही है।

    ये बिंबित पंक्तियाँ सुंदर तरीके से संप्रेषित हुई हैं. क्या बात है!!
    महेंद्र जी बहुत अच्छी कविता!!

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  5. जेठ की दोपहरी का बहुत सुन्दर चित्रण किया है।

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  6. सजीव चित्रण कर दिया है गर्मी का ..

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  7. बेहतरीन रचना ,वर्मा जी को मुबारकबाद्।

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  8. धरती के पांव पर फफोले, ठिठकने को बाध्‍य करता है. बढि़या रचना.

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  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  10. बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

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  11. प्रतीक और प्रतिमानों का अभिनव प्रयोग .ग्रीष्म पर अनुपम कविता.बुधियारिन का प्रयोग, आपका अंचल के प्रति उत्कट प्रेम स्पष्ट दर्शाता है.

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  12. गर्मी के दिनों का सटीक चित्रण ... सुन्दर वर्णन ...
    ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?

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  13. नवीन बिम्बों से इस नव गीत के अर्थ में चार चांद लग रहे हैं।

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  14. प्रकृति के मानवीकरण के साथ साथ अनेक बिम्बों को समेटे है रचना का फलक ।
    शीतलता बन्दी है ,सूरज की कचेहरी है ....

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  15. जेठ की दुपहरिया की क्या शानदार उपमायें दी है सरजी

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  16. धू-धू कर धधक रहे
    किरणों के शोले,
    उग आए धरती के
    पांव पर फफोले।
    शीतलता बंदी है
    सूर्य की कचहरी।
    मरुथल की मृगतृष्णा
    सड़कों पर पसरी।
    बहुत सुन्दरता से आपने गर्मी के मौसम को शब्दों में पिरोया है! प्रशंग्सनीय रचना!

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  17. ये शब्द कहाँ से ले आते हैं आप ? बहुत ही सुन्दर तरीके से शब्दों का प्रयोग किया है आपने ! ये गर्मी की तपिश और ये बुधियारिन वाह भाई वाह सुन्दर प्रस्तुति है आपकी ! धन्यवाद

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  18. उबली हवाओं की
    पोटली खुली है,
    बुधियारिन नीम तले
    छांव सी रही है।
    garmi ke mausam ka sundar varnan .wakai jhuls rahe hai sab......

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  19. बहुत सुंदर कविता, गरमी पर बहुत कवितायें पढ़ी, पर ये शानदार है
    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  20. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  21. उबली हवाओं की
    पोटली खुली है,
    बुधियारिन नीम तले
    छांव सी रही है।

    बहुत खूब ....लाज़वाब प्रस्तुति..

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  22. सन्दर्भित दृश्यों को शब्दंकित करता सुंदर नवगीत

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  23. जेठ की दुपहरी और गर्मी की तपिश को बहुत सुनार्ता से उकेरा है आप ने बधाई हों निम्न बहुत अच्छी पंक्तियाँ
    धू-धू कर धधक रहे
    किरणों के शोले,
    उग आए धरती के
    पांव पर फफोले।
    शुक्ल भ्रमर 5

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  24. 'शीतलता बंदी है

    सूर्य की कचहरी |

    मरुथल की मृगतृष्णा

    सड़कों पर पसरी '

    ................... अति सुन्दर ...........प्यारा नवगीत

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  25. पोखर को सोख रही
    जेठ की दुपहरी।....

    बिलकुल ही नए अंदाज़ में लिखा है आपने। , बहुत पसंद आई ये रचना।

    .

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  26. गर्मी का अति सुंदर चित्रण - आपका नव गीत पढ़ ही नहीं गुनगुना भी रहा हूँ - आभार

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  27. बहुत बढि़या। इस पर कविवर बिहारी का दोहा याद आ रहा है, ''देख दुपहरी जेठ की, छॉंहौ चाहत छॉंह।''

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  28. बेहतरीन नवगीत वर्मा साहब।

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  29. सूरज के धूप वाले चाबुक की मार झेलते हुए आपके इस नवगीत को अनुभव किया जा सकता है इन दिनों!!

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  30. मौसम के अनुकूल नवगीत ...बहुत सुंदर

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  31. 'anvgeet'' dupahari ko bilkul jeevant kar deta hai....

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  32. varmaji, apne ghar ka pataa mail kare. aapko ''sadbhavana darpan'' bhejani hai. mera email hai-girishpankaj1@gmai.com

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  33. जेठ की दुपहरिया अब जाने वाली है , भीगी फुहारे आने वाली है . . सुँदर शब्द रचना .

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  34. पोखर को सोख रही
    जेठ की दुपहरी।
    शुभकामनायें आपको !

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  35. बहुत ही सुन्दर और शानदार ..ठंडक पहुंचाती रचना

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  36. वाह ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है

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  37. Bahut khoobsurat rachna hai...

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