दुनिया अद्भुत ग्रंथ है, पढ़िये जीवन माहिं,
एक पृष्ठ भर बांचते, जो घर छोड़त नाहिं।
दुर्जन साथ न कीजिए, यद्यपि विद्यावान,
सर्प भले ही मणि रखे, विषधर ही पहचान।
पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्ति में, लगते वर्ष अनेक,
पर कलंक की क्या कहें, लगता है पल एक।
प्रसन्नता को जानिए, जैसे चंदन छाप,
दूसर माथ लगाइए, उंगली महके आप।
पुष्पगंध विसरण करे, चले पवन जिस छोर,
किंतु कीर्ति गुणवान की, फैले चारों ओर।
प्रेम भाव को मानिए, सर्वश्रेष्ठ वरदान,
जीवन सुरभित हो उठे, गूंजे सुखकर गान।
व्यथा सिखाती है हमें, सीख उसे पहचान,
ग्रंथों में भी न मिले, ऐसा अनुपम ज्ञान।
-महेन्द्र वर्मा
अच्छे लगे दोहे।
ReplyDeleteसातों दोहे व निन्यानवे शब्द सब के सब
प्रेरक एवं सार्थक दोहे। बधाई।
ReplyDelete---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
नीतिपरक,जीवनोपयोगी एवं प्रेरक दोहे ..........
ReplyDeleteवर्मा साहब!
ReplyDeleteआज चरण स्पर्श की अनुमति दें!!
ऐसे दोहे बाँच के, जीवन हुआ सवर्थ,
साधारण से शब्द में गूढ अनोखे अर्थ!
पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्ति में, लगते वर्ष अनेक,
ReplyDeleteपर कलंक की क्या कहें, लगता है पल एक।
bahut sahi kaha hai aapne .aabhar.
हर दोहा सही सन्देश और सीख देता हुआ ...
ReplyDeleteEk se badhkar ek dohe.bahut achchha laga.
ReplyDeleteदुर्जन साथ न कीजिए, यद्यपि विद्यावान,
ReplyDeleteसर्प भले ही मणि रखे, विषधर ही पहचान।
bahut sateek v sach ko udghatit karti rachna .aabhar
दुर्जन साथ न कीजिए, यद्यपि विद्यावान,
ReplyDeleteसर्प भले ही मणि रखे, विषधर ही पहचान...
जावन का सार है इन दोहों में ... बहुत ही लाजवाब ...
एक से बढ कर एक दोहे,
ReplyDelete" सर्प भले ही मणि रखे , विषधर ही पहचान्"
सबसे ख़ास लगा।
प्रसन्नता को जानिए, जैसे चंदन छाप,
ReplyDeleteदूसर माथ लगाइए, उंगली महके आप।
यह बहुत सुंदर लगा.
वाह महेंद्र जी आपकी एक और विधा से परिचित हुआ , अतुलनीय दोहे मर्म को भेदते आर-आर चले जाते है और गहरे घाव कर जाते है , अभिवादन सहित बधाई
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
एक से एक दोहे।
ReplyDeleteबहुत बार कह चुका हूँ ये बात, सहज और सरल भाषा में आप बहुत खूबसूरती से प्रेरणा दे देते हैं।
बहुत पसंद आये दोहे, वर्मा साहब आपका आभार।
कबीर के दोहों से अर्थवान...
ReplyDeleteसाधारण से शब्द में गूढ अनोखे अर्थ!
ReplyDeleteअभिवादन सहित बधाई
बढि़या दोहे, सुबोध, मन में उतर जाने वाले.
ReplyDeleteवाकई बेहतरीन ...बार बार पढने लायक ! !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सात्विक,शुद्ध विचार हैं जिसके,वही है संत.
ReplyDeleteवर्मा जी का हर दोहा , अपने आप में ग्रन्थ.
दुर्जन साथ न कीजिए ,यद्यपि विद्या वान,
ReplyDeleteसर्प भले ही मणि रखे ,विषधर ही पहचान ।
महेंद्र वर्मा जी "संत परम्परा "को पुनर्जीवित लार रहें हैं आप इन नीतिपरक सौद्देश्य दोहों से ।
बद अच्छा बदनाम बुरा ,
बिन पैसे इंसान बुरा ,
काम सभी का एक ही है ,
पर कठ्मोज़ी का नाम बुरा .
speechless
ReplyDeleteचमत्कृत करने वाले दोहे.
ReplyDeleteसभी दोहे एक से बढ़कर एक.
वाह.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआजकल ऐसे दोहों का अकाल सा पड़ गया है,प्रेरणादायक ,उपदेशात्मक प्रयास !
ReplyDeleteव्यथा सिखाती है हमें, सीख उसे पहचान,
ReplyDeleteग्रंथों में भी न मिले, ऐसा अनुपम ज्ञान।wah bhai bahut hi badiyaa dohe likhe aapne.badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
गूढ़ अर्थ लिए ज्ञानवर्धक दोहे - धन्यवाद् वर्मा जी
ReplyDeleteसारे दोहे बहुत सुन्दर...बधाई
ReplyDeleteव्यथा सिखाती है हमें, सीख उसे पहचान,
ReplyDeleteग्रंथों में भी न मिले, ऐसा अनुपम ज्ञान।
...गहन अर्थ समेटे और सार्थक सन्देश देते बहुत सुन्दर दोहे..
हर दोहा सही सन्देश और सीख देता हुआ| धन्यवाद्|
ReplyDeleteप्रसन्नता को जानिए, जैसे चंदन छाप,
ReplyDeleteदूसर माथ लगाइए, उंगली महके आप।
अद्भुत...वाह...कमाल के दोहें हैं सभी के सभी...बधाई स्वीकारें महेंद्र जी.
नीरज
अच्छे लगे सुंदर दोहे |गहन अर्थ समेटे हैं | बधाई
ReplyDeleteआशा
दुर्जन साथ न कीजिए, यद्यपि विद्यावान,
ReplyDeleteसर्प भले ही मणि रखे, विषधर ही पहचान।
sahee........
bahut sarthak hain sabhi dohe.....
सारे दोहे एक से बढ़कर एक है। शानदार ।
ReplyDeleteप्रसन्नता को जानिए, जैसे चंदन छाप,
ReplyDeleteदूसर माथ लगाइए, उंगली महके आप।
सुंदर ...बहुत सुंदर
bhai mahendra ji bahut hi sundar dohe badhai
ReplyDeleteबढिया दोहे...
ReplyDeleteअत्यन्त प्रेरक व सार्थक दोहे ।
ReplyDeleteआपकी सन्देश देती हुई रचनाये पढ़कर मन अन्दर से प्रफुल्लित हो गया. साथ साथ ज्ञानवर्धन भी हुआ.
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक दोहों के लिए सहृदय बधाई स्वीकार करें महेंद्र भाई| 'प्रसन्नता' और 'गुणवान' वाले दोहे तो जैसे खुद माँ शारदे आप की झोली में डाल गई हैं| जय हो| इन्हें बड़े ही जतन से सँभालियेगा और ज़्यादा से ज़्यादा शुभचिंतकों तक पहुँचा कर उन्हें अनुग्रहित कीजिएगा|
ReplyDeleteमहेन्द्र जी,
ReplyDeleteआरजू चाँद सी निखर, जिन्दगी रौशनी से भर जाए,
बारिशें हो वहाँ वे खुशियों की, जिस तरफ आपकी नजर जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
सुँदर और रुचिकर नीति के दोहे . आभार
ReplyDeleteव्यथा सिखाती है हमें ,सीख उसे पहचान ,
ReplyDeleteग्रंथों में भी न मिले ऐसा अनुपम ज्ञान ।
घूमते हुए आये थे कुछ और नया मिलेगा -
पता चला नया एक दिन पुराना सौ दिन .
प्रसन्नता को जानिए, जैसे चंदन छाप,
ReplyDeleteदूसर माथ लगाइए, उंगली महके आप।
बहुत सुन्दर दोहे..
आदरणीय भाई जी महेन्द्र जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर और प्रेरक दोहों के लिए बधाई और आभार !
नीरज जी और नवीन जी जैसे पारखी विद्वान जिन दोहों को अधिक पसंद करके गए हैं उनका ज़ादू मुझे भी लुभा रहा है । बहुत बहुत श्रेष्ठ और शालीन लेखन के लिए पुनः बधाई !
… और हां , कल आपका जन्मदिन भी तो था … एक बार पुनः जन्मदिन की बधाई और मंगलकामनाएं मेरे इस दोहे के साथ -
बढ़े प्रतिष्ठा मान धन , वैभव यश सम्मान !
जन्मदिवस शुभकामना ! हे गुणवंत सुजान !!
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णका
ek se badkar ek doha......
ReplyDeleteAabhar