किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।


सरे बज़्म जी भर सताया किसी ने,
मेरा कर्ज सारा चुकाया किसी ने।


थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।


सुकूने-जिगर यक-ब-यक खो गया है,
या वक़्ते- फ़रागत चुराया किसी ने।


मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।


वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।


कोई कह रहा था कि इंसानियत हूं,
मगर नाम उसका मिटाया किसी ने।


दीवानगी बेतरह बढ़ चली जब,
मेरा हाल मुझको सुनाया किसी ने।

बज़्म- महफिल
वक़्ते फ़रागत- आराम का समय
नामवर- प्रसिद्ध
हमनफ़स- साथी

                                                  -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

  1. मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
    किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।
    ऐसे ही ज़िन्दगी हंसते गाते बढ़ती जाती है। बेहतरीन ग़ज़ल।

    ReplyDelete
  2. वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
    कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
    bahut sunder ...
    badhai.

    ReplyDelete
  3. भावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण !

    ReplyDelete
  4. थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
    तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
    ........................
    वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
    कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।

    बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. वाह.

    ReplyDelete
  5. आदरणीय भाई महेंद्र जी बहुत सुंदर गज़ल बधाई |इधर कुछ व्यस्त था लेकिन अब कुछ राहत मिली है |

    ReplyDelete
  6. "वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
    कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।"
    वाह !!!क्या बात है अजमाया तो हर किसी को जाता है पर सबका अंदाज़ अलग होता है कहीं आजमाया जाना सुकुं देता है तो कहीं गम
    आभार

    ReplyDelete
  7. @थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
    तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।

    हलचल की शुरुवात ठहरे हुए पानी में
    ऐसा भी वक्त आता है जिन्दगानी में ॥

    सुंदर गजल के लिए आभार वर्मा जी।
    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  8. कोई कह रहा था कि इंसानियत हूँ ,
    मगर नाम उसका मिटाया किसी ने ।
    मिले नामवर हमनफस ज़िन्दगी में ,
    किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने ।
    भाई साहब बहुत उदास करने वाली ग़ज़ल ,ज़िन्दगी के इतना करीब और बहुत अच्छा काम करतें हैं आप ,मुश्किल अल्फाजों के मायने बतलाके।
    हमनफस शब्द प्रयोग बहुत अच्छा लगा साथी के लिए .वक्ते फरागत हमारे लिए थोड़ा अबूझ था .भाव बढा दिया आपने ग़ज़ल का .आइन्दा भी लफ्जों के संस्कार और मानी बतातें चलें .आभार .

    ReplyDelete
  9. मिले नामवर हमनफस ज़िन्दगी में ,
    किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने ।
    बहुत ही बढ़िया गज़ल,
    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. बेहद सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  11. भावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण|

    ReplyDelete
  12. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल !सम-सामयिक जीवनशैली की तनिक झलक दिखलाती हुई !आभार सहित !

    ReplyDelete
  13. वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
    कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
    शानदार गजल अच्छे शेर मुबारक हो

    ReplyDelete
  14. "मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
    किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।"

    गज़ब ढाया है वर्मा साहब, गज़ब।

    ReplyDelete
  15. मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
    किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।

    बेहतरीन पंक्तियाँ..... सुंदर रचना

    ReplyDelete
  16. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

    ReplyDelete
  17. थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
    तभी एक पत्थर गिराया किसी ने ...

    बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का .. निहायत ही खूबसूरत गज़ल है ..

    ReplyDelete
  18. वर्मा सा’ब!! सबसे अपनी गैरहाजिरी की माफी.. फिर आज की गज़ल पर.. रुक जाता हूँ कुछ भी कहने के पहले.. यह गज़ल एक पूरा तजुर्बा बयान करती है.. और बहुत कुछ सिखाती है!! बहुत ही खूबसूरत!!

    ReplyDelete
  19. wo maasoom saa, ghamzadaa lag rahaa thaa..
    ki जैसे उसे आजमाया किसी ने

    bahut sundar she'r...

    ReplyDelete
  20. .

    मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
    किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने...

    ------

    अगर इस भरी दुनिया में सिर्फ एक भी है हँसाने के लिए तो इतना काफी है। रुलाने वालों से ज़िन्दगी नहीं चलती।

    A single rose can be my garden , a single friend my world .

    .

    ReplyDelete
  21. सभी शेर बहुत प्यारे है.
    ये शेर :-
    थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
    तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
    अहा, क्या बात है.

    ReplyDelete
  22. 'कोई कह रहा था कि इंसानियत हूँ

    मगर नाम उसका मिटाया किसी ने '

    .....................वाह महेंद्र जी ! कितनी सरलता से बहुत बड़ी बात कही आपने

    .............हर शेर जानदार

    .............उम्दा ग़ज़ल

    ReplyDelete
  23. सुँदर ग़ज़ल , हर शेर बहुत कुछ कहता है . आभार .

    ReplyDelete
  24. वाह....

    सभी के सभी शेर मन को छू जाने वाले...

    बेहतरीन ग़ज़ल...

    ReplyDelete
  25. दीवानगी बेतरह बढ़ चली जब,
    मेरा हाल मुझको सुनाया किसी ने।

    शानदार प्रस्तुति .....

    ReplyDelete
  26. खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें श्रीमान

    ReplyDelete
  27. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने |खूबसूरत ग़ज़ल|बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  28. आप तो सर हिंदी ग़ज़ल के सम्राट बन गए हैं. टिप्पणी नहीं मनन करते हैं आपकी ग़ज़लों पर.

    ReplyDelete
  29. महेंद्र जी,
    आपकी ये ग़ज़ल काफी उम्दा बन पड़ी है, लेकिन इन दो लाइनों में कुछ ख़ास असर है, कि-
    ''थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
    तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।''

    ReplyDelete