सरे बज़्म जी भर सताया किसी ने,
मेरा कर्ज सारा चुकाया किसी ने।
थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
सुकूने-जिगर यक-ब-यक खो गया है,
या वक़्ते- फ़रागत चुराया किसी ने।
मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।
वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
कोई कह रहा था कि इंसानियत हूं,
मगर नाम उसका मिटाया किसी ने।
दीवानगी बेतरह बढ़ चली जब,
मेरा हाल मुझको सुनाया किसी ने।
बज़्म- महफिल
वक़्ते फ़रागत- आराम का समय
नामवर- प्रसिद्ध
हमनफ़स- साथी
-महेन्द्र वर्मा
acchi ghazal hui hai mahendra sir...:)
ReplyDeletesaadar
बढिया भाव हैं, बधाई।
ReplyDeleteमिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
ReplyDeleteकिसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।
ऐसे ही ज़िन्दगी हंसते गाते बढ़ती जाती है। बेहतरीन ग़ज़ल।
वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
ReplyDeleteकि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
bahut sunder ...
badhai.
भावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण !
ReplyDeleteथकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
ReplyDeleteतभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
........................
वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. वाह.
आदरणीय भाई महेंद्र जी बहुत सुंदर गज़ल बधाई |इधर कुछ व्यस्त था लेकिन अब कुछ राहत मिली है |
ReplyDelete"वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
ReplyDeleteकि जैसे उसे आजमाया किसी ने।"
वाह !!!क्या बात है अजमाया तो हर किसी को जाता है पर सबका अंदाज़ अलग होता है कहीं आजमाया जाना सुकुं देता है तो कहीं गम
आभार
@थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
ReplyDeleteतभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
हलचल की शुरुवात ठहरे हुए पानी में
ऐसा भी वक्त आता है जिन्दगानी में ॥
सुंदर गजल के लिए आभार वर्मा जी।
शुभकामनाएं
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteकोई कह रहा था कि इंसानियत हूँ ,
ReplyDeleteमगर नाम उसका मिटाया किसी ने ।
मिले नामवर हमनफस ज़िन्दगी में ,
किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने ।
भाई साहब बहुत उदास करने वाली ग़ज़ल ,ज़िन्दगी के इतना करीब और बहुत अच्छा काम करतें हैं आप ,मुश्किल अल्फाजों के मायने बतलाके।
हमनफस शब्द प्रयोग बहुत अच्छा लगा साथी के लिए .वक्ते फरागत हमारे लिए थोड़ा अबूझ था .भाव बढा दिया आपने ग़ज़ल का .आइन्दा भी लफ्जों के संस्कार और मानी बतातें चलें .आभार .
मिले नामवर हमनफस ज़िन्दगी में ,
ReplyDeleteकिसी ने हंसाया रुलाया किसी ने ।
बहुत ही बढ़िया गज़ल,
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteभावनाओं का सुंदर शब्द चित्रण|
ReplyDeleteहमेशा की तरह शानदार गजल।
ReplyDelete---------
टेक्निकल एडवाइस चाहिए...
क्यों लग रही है यह रहस्यम आग...
bahoot umda likha janab
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल !सम-सामयिक जीवनशैली की तनिक झलक दिखलाती हुई !आभार सहित !
ReplyDeleteवो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
ReplyDeleteकि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
शानदार गजल अच्छे शेर मुबारक हो
"मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
ReplyDeleteकिसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।"
गज़ब ढाया है वर्मा साहब, गज़ब।
मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
ReplyDeleteकिसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।
बेहतरीन पंक्तियाँ..... सुंदर रचना
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteथकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
ReplyDeleteतभी एक पत्थर गिराया किसी ने ...
बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का .. निहायत ही खूबसूरत गज़ल है ..
वर्मा सा’ब!! सबसे अपनी गैरहाजिरी की माफी.. फिर आज की गज़ल पर.. रुक जाता हूँ कुछ भी कहने के पहले.. यह गज़ल एक पूरा तजुर्बा बयान करती है.. और बहुत कुछ सिखाती है!! बहुत ही खूबसूरत!!
ReplyDeletebahut khoob .aabhar
ReplyDeletewo maasoom saa, ghamzadaa lag rahaa thaa..
ReplyDeleteki जैसे उसे आजमाया किसी ने
bahut sundar she'r...
.
ReplyDeleteमिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने...
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अगर इस भरी दुनिया में सिर्फ एक भी है हँसाने के लिए तो इतना काफी है। रुलाने वालों से ज़िन्दगी नहीं चलती।
A single rose can be my garden , a single friend my world .
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सभी शेर बहुत प्यारे है.
ReplyDeleteये शेर :-
थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
अहा, क्या बात है.
'कोई कह रहा था कि इंसानियत हूँ
ReplyDeleteमगर नाम उसका मिटाया किसी ने '
.....................वाह महेंद्र जी ! कितनी सरलता से बहुत बड़ी बात कही आपने
.............हर शेर जानदार
.............उम्दा ग़ज़ल
सुँदर ग़ज़ल , हर शेर बहुत कुछ कहता है . आभार .
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteसभी के सभी शेर मन को छू जाने वाले...
बेहतरीन ग़ज़ल...
दीवानगी बेतरह बढ़ चली जब,
ReplyDeleteमेरा हाल मुझको सुनाया किसी ने।
शानदार प्रस्तुति .....
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें श्रीमान
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने |खूबसूरत ग़ज़ल|बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआप तो सर हिंदी ग़ज़ल के सम्राट बन गए हैं. टिप्पणी नहीं मनन करते हैं आपकी ग़ज़लों पर.
ReplyDeleteमहेंद्र जी,
ReplyDeleteआपकी ये ग़ज़ल काफी उम्दा बन पड़ी है, लेकिन इन दो लाइनों में कुछ ख़ास असर है, कि-
''थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।''