दिल ही हूं मजबूर रहा हूं,
इसीलिए मशहूर रहा हूं।
चलता आया उसी लीक पर,
दुनिया का दस्तूर रहा हूं।
नए दौर में सच्चाई का,
चेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
वो नज़दीक बहुत हैं मेरे,
जिनसे अब तक दूर रहा हूं।
चोट लगी तो फूल झरे हैं,
मैं भी इक संतूर रहा हूं।
कहते हैं सब कभी किसी की,
आंखों का मैं नूर रहा हूं।
अब मुझको आना न जाना,
मैं तो बस मग़्फ़ूर रहा हूं।
.............................................
संतूर- एक वाद्ययंत्र
मग़्फ़ूर-जिसे मोक्ष प्राप्त हो गया हो
-महेंद्र वर्मा
वाह..वाह..वाह..
ReplyDeleteयह ग़ज़ल तो सीधी दिल में उतर गई. उम्दा अशआर से भरी...
नए दौर में सच्चाई का,
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
छोटे बहर की ग़ज़ल का सौन्दर्य ही अलग होता है। उक्त शे’र में आपने कितनी बड़ी सच्चाई को बयान कर दिया है। बहुत पसंद आई यह ग़ज़ल।
@चोट लगी तो फूल झरे हैं,
ReplyDeleteमैं भी इक संतूर रहा हूं।
गजब का शेर बन पड़ा है।
आभार
चोट लगी तो फूल झरे हैं,
ReplyDeleteमैं भी इक संतूर रहा हूं।
bahut hi umda ...seedhe dil se nikli hai ...
gahbhir..gahan baat karti hui ...sunder ghazal...
सुंदर गजल ,बधाई
ReplyDeleteगहरे भावों से लबरेज़ सुन्दर और प्रभावी ग़ज़ल है,सभी शेर अच्छे.
ReplyDeleteवाह,क्या बात है.
मै भी आपको याद ज़रूर रहा हूँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,गागर मे सागर !
दिल के मार्फ़त दिल की बात ग़ज़ल में पिरो दी हरेक अशआर सच्चा मोती, ग़ज़ल माला में शैर की हर शैर एक बयाँ हकीकत का -
ReplyDeleteवो नज़दीक बहुत हैं मेरे ,
जिनसे अब तक दूर रहा हूँ .महेंद्र वर्मा जी स्वत :स्फूर्त दिल से निकले अलफ़ाज़ हैं ये .
"नए दौर में सच्चाई का,
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
...
चोट लगी तो फूल झरे हैं,
मैं भी इक संतूर रहा हूं।"
वाह वर्मा जी गजब का लिखा है
बेहतरीन ग़ज़ल " अब तो मुझको आना ना जाना,
ReplyDeleteमैं तो बस मग़्फ़ूर रहा हूं। बेहतरीन शे"र, बधाई वर्मा जी।
चोट लगी तो फूल झरे हैं,
ReplyDeleteमैं भी इक संतूर रहा हूं।
Bahut Sunder....Behtreen Gazal
वाह एक सुंदर ग़ज़ल.
ReplyDeleteवर्मा साहब!!
ReplyDeleteछोटे बहर में कही गयी आपकी सारी गज़लें मुझे बेहद पसंद हैं.. यह भी उसी का हिस्सा है.. संतूर के मन की बात मन में बस गयी.. याद आया एक पुराना गीत:
जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है,
जो साज़ पे गुज़री है वो किस दिल को पता है!!
बेहतरीन भावों से सजी गज़ल!!
बहुत सुन्दर भावो से सजी गज़ल्।
ReplyDeleteनए दौर में सच्चाई का,
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
गहन भाव समेटे बेहतरीन प्रस्तुति ...!!!
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत शब्दों का समायोजन....
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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दिल को छूते भाव |बधाई |आप मेरे ब्लॉग पर आए आभार |
ReplyDeleteआशा
नए दौर में सच्चाई का,
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
वाह सर, बेहतरीन गज़ल कही आपने....
सादर...
नए दौर में सच्चाई का,
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
bahut sahi baat kahi aapne
चोट लगी तो फूल झरे हैं,
मैं भी इक संतूर रहा हूं।
bahut sunder gazal
rachana
बेहतरीन और उम्दा गजल
ReplyDeleteचोट लगी तो फूल झरे हैं,
ReplyDeleteमैं भी इक संतूर रहा हूं।
बेहद खूबसूरत गजल.आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
नए दौर में सच्चाई का
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं
सच्चे और सार्थक भाव लिए हुए
ग़ज़ल का हर शेर अपना प्रभाव छोड़ रहा है
हर छोटी-बड़ी बात को
बड़े सलीक़े से कह दिया गया है ... वाह !!
शानदार गजल। हर शेर में वजन है।
ReplyDeleteवाह, छोटा बहर और सुन्दर भाव!
ReplyDeletebehad prabhavshali......har sher ko hazaron lakhon daad............naye dour me sachchai ka...........wah kya kahne
ReplyDeleteछोटी बहर पर ग़ज़ल कहने में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं, पर आपने तो लगता है इसे आसानी से निभा दिया है| 'संतूर' वाला शेर कालजयी शेर है वर्मा जी - इसे जतन से सँभाल कर रखिएगा| नमन|
ReplyDeleteohh !!! bahut hi pyaari si aur sundar gazal....
ReplyDeleteनए दौर में सच्चाई का,
ReplyDeleteचेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।
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Awesome creation !
I'm falling short of words to praise this excellent creation .
Loving it .
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बेहतरीन शेर,बेहतरीन ग़ज़ल,हर शेर अर्थपूर्ण !!!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteशानदार गजल गजब का लिखा है ..... वर्मा जी
बिलकुल सच कहा आपने....
ReplyDeletesab ke sab achhe lage...aur alag se...kamaal hai
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर गज़ल सर जी ..
ReplyDeleteएक एक शेर मोहब्बत और विरह कि मिसाल है ..
बधाई
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
कम लफ्जों में बडी बात कहना कोई आपसे सीखे।
ReplyDelete------
कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....
नए दौर में सच्चाई का
ReplyDeleteचेहरा हूँ , बेनूर रहा हूँ ,
.................सच्चा शेर, वर्मा जी !
छोटी बहर की खूबसूरत ग़ज़ल , हर शेर अर्थपूर्ण
अब मुझको आना न जाना,
ReplyDeleteमैं तो बस मग़्फ़ूर रहा हूं।
बहुत ही गहरा शेर कहा है आपने, वो भी इतने कम शब्दों में! वाह!
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है!