सबसे उत्तम मित्र


ग्रंथ श्रेष्ठ गुरु जानिए , हमसे कुछ नहिं लेत,
बिना क्रोध बिन दंड के, उत्तम विद्या देत।


संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र,
कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र।


मन-भीतर के मैल को, धोना चाहे कोय,
नीर नयन-जल से उचित, वस्तु न दूजा कोय।


मन की चंचल वृत्ति से, बिगड़े सारे काज,
जिनका मन एकाग्र है, उनके सिर पर ताज।


करुणा के भीतर निहित, शीतल अग्नि सुधर्म,
क्रूर व्यक्ति का हृदय भी, कर देती है नर्म।


गुण से मिले महानता, ऊंचे पद से नाहिं,
भला शिखर पर बैठ कर, काग गरुड़ बन जाहि ?


मनुज सभ्यता में नहीं, उनके लिए निवास, 
जो हर क्षण दिखता रहे, खिन्न निराश उदास।


                                                                                     -महेंद्र वर्मा

38 comments:

  1. वाह, एकदम शास्‍त्रीय कोटि की.

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर सन्देश और शिक्षाप्रद प्रस्तुति ,बधाई

    ReplyDelete
  3. बेहद सुन्दर रचना ... और नैतिकता के लिए प्रेरित करती हुवी ..

    ReplyDelete
  4. मन की चंचल व्रित्ती से बिगड़े सारे काज,
    जिनका मन एकाग्र है, उनके सर पर ताज।

    लजवाब दोहे । बधाई।

    ReplyDelete
  5. वाह! अति उत्तम दोहे प्रस्तुत किये हैं आपने.
    हर एक अनमोल है.


    संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र,
    कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र।

    आपसे संगति कर हमारा हृदय भी पवित्र होता है.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.

    ReplyDelete
  6. “कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र।”
    बहुत बड़ी बात कही है आपने हर दोहे के माध्यम से। मैंने अकसरहां पाया है कि मेरा एकांत मेरा सबसे बड़ा मददगार साबित हुआ है।

    ReplyDelete
  7. वाह महेंद्र जी उत्तम दोहे , साहित्य की अमूल्य धरोहर बने यही शुभकामनाये

    ReplyDelete
  8. कोई भी दोहा रीतिकालीन दोहों से कमतर नहीं. साधुवाद...साधुवाद...

    एक दोहा मेरी ओर से आपको सप्रेम प्रेषित है :-
    वोट प्रणाली पापिनी, राखे दया न हाय ।
    प्रेम प्रीति विश्वास को, पहले खाती धाय ।।

    ReplyDelete
  9. हर दोहा सार्थक सन्देश देता हुआ ... बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  10. संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र,
    कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र।

    गुण से मिले महानता, ऊंचे पद से नाहिं,
    भला शिखर पर बैठ कर, काग गरुड़ बन जाहि ?

    हर एक दोहा शिक्षाप्रद है , आप ऐसे ही शिक्षाप्रद दोहे लिखते रहिये . हमलोग अनुकरण का प्रयास करते रहेंगे.

    ReplyDelete
  11. महेंद्र वर्मा जी ,नीतिपरक दोहे रहीम और कबीर की याद ताज़ा कर रहें हैं ।
    गुण से मिले महानता ,ऊँचें पड़ से नाहिं ,
    भला शिखर पर बैठ कर ,काग गरुण बन जाहिं .

    ReplyDelete
  12. सार्थक सन्देश देते बहुत उत्तम दोहे..

    ReplyDelete
  13. सुंदर और सार्थक संदेश के लिए आभार...
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  14. उत्तम हिंदी दोहे सामाजिक सन्देश देते हुए !

    ReplyDelete
  15. भाई महेंद्र जी सुन्दर और सार्थक दोहे बधाई और शुभकामनायें

    ReplyDelete
  16. मन की चंचल वृत्ति से, बिगड़े सारे काज,
    जिनका मन एकाग्र है, उनके सिर पर ताज।
    sarthak prastuti

    ReplyDelete
  17. सुन्दर सीख देता हर दोहा सटीक और सार्थक्।

    ReplyDelete
  18. गुण से मिले महानता, ऊंचे पद से नाहिं,
    भला शिखर पर बैठ कर, काग गरुड़ बन जाहि ?
    हर दोहा अनमोल मोती है ! जीवन में उतारने योग्य ज्ञान से भरी हैं सारी पंक्तियाँ !
    आभार !

    ReplyDelete
  19. अमर रचनाएं हैं यह दोहा संग्रह !
    शुभकामनायें ...

    ReplyDelete
  20. बहुत ही बढ़िया दोहे हैं यें, संग्रह करने योग्य,
    साभार,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  21. संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र,
    कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र....

    Mahendra ji ,

    Thanks for the precious collection of couplets. I have very few friends but hey are genuinely with pure and pious heart. One such friend is you !

    Great collection !

    ReplyDelete
  22. बड़े बड़ाई न करें बड़े न बोलें बोल ,रहिमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल ।
    आपकी प्रस्तुतियां इसी स्तर को सकालीन सन्दर्भ दे रहें हैं .

    ReplyDelete
  23. सुंदर और सार्थक संदेश के लिए आभार...
    सादर,

    ReplyDelete
  24. महेंद्र जी
    हर दोहा सार्थक सन्देश देता हुआ ...!

    ReplyDelete
  25. Bahut hee saarthak dohe.neetiparak doho me aapka sachmuch koi saanee nahee.

    ReplyDelete
  26. महेंद्र जी!
    इन सुभाषित ने तो सुवासित कर दिया जीवन.. एक एक दोहा अमूल्य है! आभार आपका!

    ReplyDelete
  27. गति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र,
    कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र।

    गुण से मिले महानता, ऊंचे पद से नाहिं,
    भला शिखर पर बैठ कर, काग गरुड़ बन जाहि ?
    महेंद्र जी ..!!अति उत्तम शिक्षा प्रद रचना ..दोहों का भावपूर्ण स्वरुप ...
    शुभकामनाएं !!!

    ReplyDelete
  28. ब्लॉग अमृत कलश पर आने के लिए आभार |ऐसा ही स्नेह बनाए रखिये |
    आशा

    ReplyDelete
  29. संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र,
    कभी-कभी एकांत भी सबसे उत्तम मित्र। ..

    सटीक ... यूँ तो सभी डोके एक से बढ़ कर एक ... पर इसमें जीवन का दर्शन कूट कूट कर भरा है ..

    ReplyDelete
  30. दोहों को जीवंत करती इस अद्भुत पोस्ट के लिए बारम्बार साधुवाद महेंद्र जी| विशुद्ध दोहे और जीवन व्यवहार को बाक़ायदा निरूपित करते दोहे| यह महत्कर्म जारी रहे, यही निवेदन करूंगा|



    घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द

    ReplyDelete
  31. sant kabeer ke doho kee shrenee me hai ye anmol dohe inka palda bhee utna hee bharee hai...... meree nazar me.
    anmol ratn hai ye bhee .

    ReplyDelete
  32. भावपूर्ण अभिव्यक्ति........ बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  33. गुण से मिले महानता, ऊंचे पद से नाहिं,
    भला शिखर पर बैठ कर, काग गरुड़ बन जाहि ?

    बहुत सुंदर ...अर्थपूर्ण भाव

    ReplyDelete
  34. बेहद सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  35. बहुत खूब लिखा है आपने !शानदार और सार्थक रचना!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    ReplyDelete
  36. सभी दोहे जीवनोपयोगी ....
    भाव और शब्द सौन्दर्य अद्वितीय

    ReplyDelete
  37. बहुत अच्छे और सार गर्भित दोहे |बधाई
    आशा

    ReplyDelete