आश्विन के अंबर में
रंगों की टोली,
सूरज की किरणों ने
पूर दी रंगोली।
नेह भला अपनों का,
मीत बना सपनों का,
संध्या की आंखों में
चमकती ठिठोली।
आश्विन के अंबर में,
रंगों की टोलीं।
उष्णता पिघलती है,
आस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
सूरज की किरणों ने
पूर दी रंगोली।
-महेंद्र वर्मा
bahut sunder navgeet ...
ReplyDeleteउष्णता पिघलती है,
ReplyDeleteआस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
ऋतु परिवर्तन के साथ आया नवगीत बहुत सुंदर बन पड़ा है.
वाह, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteशीतलता भोली
ReplyDeleteअद्भुत अद्भुत अद्भुत
आ. महेंद्र जी शब्दों की कारीगरी में आप का सानी नहीं
जय हो
पूर दी रंगोली।
ReplyDeleteनव-गीत में "पूरना" का नव-प्रयोग हृदय-स्पर्शी लगा.प्रकृति का कोमल चित्रण अतुलनीय.
बहुत सुन्दर --
ReplyDeleteप्रस्तुति ||
बधाई |
khoobsurat prastuti...man ko moh lene wale shabd...
ReplyDeleteनेह भला अपनों का,
ReplyDeleteमीत बना सपनों का,
तारों की आंखों में
चमकती ठिठोली।
आश्विन के अंबर में
रंगों की टोली,
सूरज की किरणों ने
पूर दी रंगोली।
एक लय प्यार की लिए हुए है यह गीत .जैसे प्रेम और लय पर्यायवाची हों .बहुत सुन्दर बिम्ब और शब्द चयन गीत में किया गया है .
भाई महेंद्र जी बहुत ही सुन्दर प्रतीकों बिम्बों से सज्जित नवगीत बधाई
ReplyDeleteनेह भला अपनों का,
ReplyDeleteमीत बना सपनों का,
तारों की आंखों में
चमकती ठिठोली।
आश्विन के अंबर में,
रंगों की टोलीं।
......bahut sunder aur prerak bhaaw....
उष्णता पिघलती है,
ReplyDeleteआस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
.........behtarin....
hamlog ek pariwar ki bhanti hai....aur hame is pariwaar ko aur mazbut karna hai....aapke lekhan ne isame bahut hi mahtwpurn bhumika nibhaai hai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत
ReplyDeleteउष्णता पिघलती है,
ReplyDeleteआस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
आशा और विश्वास से भरा नवगीत मन को बहुत अच्छा लगा।
आश्विन के अम्बर में
ReplyDeleteरंगों की टोली
कार्तिक की अगवानी में
हँस कर यूँ बोली-
बीत गयी वर्षा की
आँख मिचोली
घर-घर घटाओं ने घट भरे अन्न के
हर्षित गृहलक्ष्मी झूमे अलबेली
वाह बहुत ही मनभावन नवगीत है।
ReplyDeleteगीत की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरा बहुत सुन्दर गीत...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 19-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteआश्विन के अंबर में
ReplyDeleteरंगों की टोली,
सूरज की किरणों ने
पूर दी रंगोली।
दृश्यात्मकता से परिपूर्ण बहुत सुन्दर गीत....
नवगीत, नवरूप और नवाभिव्यक्ति... जेठ में शीतल छाया का आनंद आता है यहाँ आकर!!
ReplyDeleteउष्णता पिघलती है,
ReplyDeleteआस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
शीतलता को भोला करार देकर आपने सही न्याय किया है और आसोज के बादलों में खिली रंगोली भी बहुत खूबसूरत है
सरस, सहज सुन्दर गीत...
ReplyDeleteआनंद आ गया..
सादर बधाई...
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ReplyDeleteउष्णता पिघलती है,
आस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली....
शीतलता के भोलेपन का एहसास आप जैसे सुहृदय लोग ही समझ सकते हैं। उष्णता को तो पिघलना ही होता है। शीतलता स्थायित्व की ओर जो ले जाती है।
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बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteसुंदर शब्द रंगोली.
ReplyDeleteसारगर्भित एवं सुंदर।
ReplyDelete------
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
बहुत सुंदर गीत.
ReplyDeleteनवगीत बहुत सुंदर बन पड़ा है.
ReplyDeleteआनंद आ गया.
उष्णता पिघलती है,
ReplyDeleteआस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
आस जगाती पंक्तियाँ . आभार
नव बिम्बों से सजा प्यारा नवगीत ...
ReplyDeleteनेह भला अपनों का,
ReplyDeleteमीत बना सपनों का,
संध्या की आंखों में
चमकती ठिठोली।
.... बहुत खूब ! अद्भुत प्रस्तुति
आपकी हर रचना में कुछ न कुछ नूतनता होती है.पूर दी , चमकती ठिठोली, शीतलता भोली वाह !!!! बिल्कुल ही नये प्रयोग.सही अर्थों में नव-गीत.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से आपने प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया है !
ReplyDeleteबहुत ही मधुर .. आशा लिए ये नवगीत ... नयी ऊर्जा देता है महेंद्र जी ... लाजवाब ..
ReplyDeleteगीत के भाव ,बुनावट, बिम्ब प्रयोग और प्रवाह ने मन को आनंद रस में आबद्ध कर दिया....
ReplyDeleteआह...
अद्वितीय लिखा है आपने...
आनंद आ गया...
बहुत बहुत आभार...
♥
ReplyDeleteआदरणीय महेंद्र वर्मा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर नवगीत है -
आश्विन के अंबर में,
रंगों की टोलीं।
उष्णता पिघलती है,
आस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
सूरज की किरणों ने
पूर दी रंगोली।
आपकी लेखनी भी हमेशा आनंदित करती है …
मां सरस्वती की कृपा बनी रहे …
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उष्णता पिघलती है,
ReplyDeleteआस नई खिलती है,
आने को आतुर है,
शीतलता भोली।
आपकी कविता मन को आंदोलित कर गयी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
... बहुत ही मधुर ..
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